नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर देशवासियों को विदेशी उत्पादों के बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग के लिए प्रेरित किया है। उनका यह संदेश न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए है, बल्कि इसका सीधा संकेत चीन जैसी देशों को रणनीतिक चेतावनी देने की ओर भी है।
हाल के वर्षों में भारत-चीन संबंधों में लगातार तनाव देखने को मिला है। गलवान घाटी की झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच राजनयिक और आर्थिक मोर्चों पर खटास बढ़ी है। इसके मद्देनज़र भारत सरकार ने न केवल चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया, बल्कि रक्षा, दूरसंचार और इंफ्रास्ट्रक्चर में चीन की भागीदारी भी सीमित कर दी।
आर्थिक सशक्तिकरण की ओर बढ़ते कदम
प्रधानमंत्री मोदी के 'लोकल के लिए वोकल' अभियान के तहत देश में मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत की सोच को व्यापक समर्थन मिल रहा है। विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का सीधा असर भारतीय बाजार पर पड़ता है, जिससे घरेलू उत्पादकों को मजबूती मिलती है और स्थानीय रोजगार में वृद्धि होती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत जैसे विशाल उपभोक्ता बाजार में यदि विदेशी कंपनियों की निर्भरता कम की जाए, तो आर्थिक सुरक्षा के साथ-साथ रणनीतिक दबाव भी उत्पन्न किया जा सकता है, विशेषकर उन देशों पर जो भारत की संप्रभुता को चुनौती देते हैं।
चीन को सबक सिखाना क्यों जरूरी?
चीन की विस्तारवादी नीति, सीमाओं पर अतिक्रमण और आर्थिक घुसपैठ ने भारत को सतर्क कर दिया है। 'बहिष्कार' केवल एक भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक नीतिगत कदम बन चुका है, जो व्यापारिक निर्भरता को संतुलित करने के लिए उठाया जा रहा है।
भारत में चीनी उत्पादों की भारी मौजूदगी इलेक्ट्रॉनिक्स, खिलौने, कपड़े और औद्योगिक उपकरणों में देखी जाती है। ऐसे में उपभोक्ताओं को भी स्वदेशी विकल्प चुनकर राष्ट्रहित में योगदान देना होगा।