अमेरिका में नस्लीय भेदभाव और पुलिस बर्बरता के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शनों ने अब राजनीतिक टकराव का रूप ले लिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रदर्शनकारियों को काबू में करने के लिए पहले से तैनात नेशनल गार्ड के बाद अब मरीन सैनिकों को भी सड़कों पर उतारने का संकेत दिया है। इससे हालात और तनावपूर्ण हो गए हैं, विशेष रूप से कैलिफोर्निया में जहां राज्य सरकार और संघीय प्रशासन के बीच सीधा टकराव देखा जा रहा है।
लॉस एंजेलिस से सैक्रामेंटो तक तनाव
कैलिफोर्निया के कई शहरों में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षाबलों के बीच झड़पें जारी हैं। लॉस एंजेलिस, सैक्रामेंटो और ओकलैंड जैसे शहरों में व्यापक तोड़फोड़, आगजनी और लूटपाट की घटनाएं सामने आई हैं। प्रदर्शन शांतिपूर्ण ढंग से शुरू हुए थे, लेकिन जैसे-जैसे स्थिति बिगड़ी, ट्रंप प्रशासन ने इसे 'कानून व्यवस्था' की समस्या करार देते हुए सैन्य介入 का फैसला लिया।
मरीन की तैनाती पर गवर्नर की आपत्ति
कैलिफोर्निया के गवर्नर गैविन न्यूज़म ने मरीन की तैनाती पर गंभीर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह कदम न केवल संघीय व्यवस्था के खिलाफ है, बल्कि इससे नागरिक स्वतंत्रता और राज्य की स्वायत्तता को खतरा है। उन्होंने राष्ट्रपति ट्रंप पर "तानाशाही मानसिकता" के आरोप लगाते हुए कहा कि विरोध प्रदर्शन को सैन्य बल से दबाने की कोशिश लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन है।
ट्रंप का रुख: सख्ती ही समाधान
राष्ट्रपति ट्रंप ने ट्वीट के माध्यम से दोहराया कि “जब गवर्नर नियंत्रण नहीं रख सकते, तो फेडरल सरकार को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा।” उन्होंने हिंसक प्रदर्शनकारियों को "अराजकतावादी" और "देशद्रोही" बताया। ट्रंप का मानना है कि कड़ी कार्रवाई ही ऐसे प्रदर्शनों को रोका जा सकता है।
मानवाधिकार संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया
मरीन की तैनाती और विरोध प्रदर्शनों पर बल प्रयोग की आशंका को देखते हुए कई मानवाधिकार संगठनों ने चिंता जाहिर की है। ह्यूमन राइट्स वॉच और एसीएलयू जैसी संस्थाओं ने इस कदम को अलोकतांत्रिक बताते हुए अमेरिकी संविधान के उल्लंघन की बात कही है। वे मानते हैं कि विरोध प्रदर्शन लोकतंत्र का हिस्सा हैं, न कि राष्ट्रीय सुरक्षा का संकट।
क्या टकराव बढ़ेगा?
स्थिति बेहद संवेदनशील हो चुकी है। एक ओर राज्य सरकारें प्रदर्शनकारियों से शांतिपूर्ण संवाद की बात कर रही हैं, वहीं ट्रंप प्रशासन सैन्य बल के जरिए स्थिति पर काबू पाना चाहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जल्द समाधान नहीं निकला, तो यह राजनीतिक टकराव राष्ट्रीय संकट में बदल सकता है।