2021 में पंजाब की राजनीति उस समय हिल गई जब शिरोमणि अकाली दल (SAD) के वरिष्ठ नेता बिक्रम सिंह मजीठिया का नाम एक बहुचर्चित ड्रग्स केस में सामने आया। मजीठिया, जो पंजाब के पूर्व मंत्री और प्रभावशाली राजनेता हैं, पर नशीले पदार्थों की तस्करी और बड़े पैमाने पर अवैध लेन-देन में शामिल होने के गंभीर आरोप लगे।
मामले की शुरुआत और जांच
यह मामला वर्ष 2013 में फतेहगढ़ साहिब पुलिस द्वारा पकड़े गए कुछ नशा तस्करों से शुरू हुआ था, जिनमें जगदीश भोला, जो एक पूर्व पुलिस अधिकारी थे, प्रमुख रूप से शामिल थे। भोलासहित कई अन्य आरोपियों ने पूछताछ में मजीठिया का नाम लिया और आरोप लगाया कि वह ड्रग्स नेटवर्क को राजनीतिक संरक्षण देते थे।
540 करोड़ के अवैध लेनदेन का आरोप
जांच एजेंसियों का दावा है कि ड्रग्स से जुड़ी हवाला और अन्य संदिग्ध वित्तीय गतिविधियों के माध्यम से लगभग 540 करोड़ रुपये का अवैध लेन-देन हुआ। मनी लॉन्ड्रिंग और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से संबंधों की कड़ियों को भी जांच के दायरे में लाया गया। प्रवर्तन निदेशालय (ED) और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने मामले को गंभीरता से लेते हुए गहरी जांच शुरू की।
गिरफ्तारी और राजनीतिक प्रतिक्रिया
2021 में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान बिक्रम मजीठिया पर NDPS एक्ट की धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया और उन्हें गिरफ्तार किया गया। उनकी गिरफ्तारी को SAD ने राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया, वहीं कांग्रेस और अन्य दलों ने इसे कानून का सही प्रयोग बताया। मजीठिया ने अदालत में अग्रिम जमानत की भी कोशिश की, लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया।
जनता और राजनीति पर प्रभाव
इस केस ने पंजाब की राजनीति को झकझोर दिया। नशे के खिलाफ लड़ाई में इसे एक प्रतीकात्मक जीत के रूप में देखा गया, जबकि विरोधियों ने इसे राजनीतिक स्टंट भी बताया। आम जनता में यह संदेश गया कि चाहे कोई कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं है।
बिक्रम मजीठिया की गिरफ्तारी सिर्फ एक व्यक्ति का मामला नहीं, बल्कि यह पंजाब में फैले नशे के नेटवर्क के खिलाफ एक निर्णायक कदम है। यह मामला न्यायिक प्रक्रिया में अभी भी चल रहा है, और इसके परिणाम आने वाले समय में पंजाब की राजनीति को गहराई से प्रभावित कर सकते हैं।