हिमाचल प्रदेश एक बार फिर प्राकृतिक आपदा की चपेट में है। बीते कुछ दिनों से जारी मूसलधार बारिश और भूस्खलनों ने पूरे राज्य को हिला कर रख दिया है। अब तक 51 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि दर्जनों लोग अभी भी लापता बताए जा रहे हैं। राज्य के कई हिस्सों में सड़कों का नामोनिशान मिट गया है, पुल बह गए हैं और गांव के गांव जलमग्न हो गए हैं। अनुमान है कि राज्य को अब तक करीब 500 करोड़ रुपये की आर्थिक क्षति हो चुकी है।
आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में किन्नौर, मंडी, कुल्लू, चंबा और शिमला शामिल हैं। जगह-जगह बादल फटने और नदी-नालों में उफान के चलते गांवों का संपर्क बाकी दुनिया से कट गया है। एनडीआरएफ और सेना की टीमें लगातार राहत और बचाव कार्यों में जुटी हुई हैं। सड़कों पर मलबा और टूटे पुलों के कारण कई इलाकों तक पहुंचना मुश्किल हो रहा है।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने हालात की समीक्षा करते हुए केंद्र सरकार से तत्काल सहायता की मांग की है। उन्होंने कहा कि राज्य एक अभूतपूर्व आपदा से जूझ रहा है और राहत कार्यों में तेजी लाई जा रही है। मुख्यमंत्री ने मृतकों के परिजनों को चार-चार लाख रुपये मुआवजे की घोषणा की है और बेघर हुए लोगों के लिए अस्थायी शिविरों की व्यवस्था की जा रही है।
राज्य सरकार के अनुसार 1000 से अधिक घर आंशिक या पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। 200 से ज्यादा सड़कें पूरी तरह बंद हैं और कई पुल बह चुके हैं। बागवानी और कृषि क्षेत्र को भी भारी नुकसान पहुंचा है। सेब की फसल तबाह हो गई है, जिससे किसानों को गहरी आर्थिक चोट लगी है।
जलवायु परिवर्तन और अनियोजित विकास को इस तबाही की बड़ी वजह माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में ऐसे हादसों की तीव्रता और आवृत्ति दोनों बढ़ सकती हैं, अगर पर्यावरण संतुलन पर ध्यान नहीं दिया गया।