बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही सीमांचल क्षेत्र की सियासत गरमा गई है। केंद्र सरकार की पहल पर चुनाव आयोग ने सीमावर्ती जिलों—कटिहार, किशनगंज, अररिया और पूर्णिया—में संदिग्ध विदेशी नागरिकों की पहचान और मतदाता सूची से नाम हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस अभियान के केंद्र में नेपाली, बांग्लादेशी और रोहिंग्या मूल के अवैध नागरिक बताए जा रहे हैं।
चुनाव आयोग का सख्त रुख
चुनाव आयोग और गृह मंत्रालय के निर्देश पर स्थानीय प्रशासन ने सीमावर्ती गांवों और शहरी बस्तियों में सर्वे शुरू कर दिया है। आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र और अन्य दस्तावेजों की गहन जांच की जा रही है। जिन लोगों के दस्तावेज संदिग्ध पाए जा रहे हैं, उनके नाम मतदाता सूची से हटाने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है।
राजनीतिक हलचल तेज
इस कार्रवाई ने आरजेडी और कांग्रेस जैसी पार्टियों की नींद उड़ा दी है, जो परंपरागत रूप से सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाकों में मजबूत जनाधार रखती हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि यह कवायद ‘टारगेटेड वोटर क्लीनिंग’ है, जिसका उद्देश्य विशेष समुदाय के वोटरों को चुनावी प्रक्रिया से बाहर करना है। हालांकि भाजपा इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और चुनावी पारदर्शिता से जोड़ रही है।
भाजपा की रणनीति और विपक्ष की उलझन
भाजपा ने लंबे समय से सीमांचल में घुसपैठ और अवैध वोटिंग को चुनावी मुद्दा बनाया है। इस बार वह इस पर और आक्रामक नजर आ रही है। सीमांचल में जनसभाओं और प्रचार अभियानों के दौरान भाजपा नेताओं ने स्पष्ट किया है कि "एक भी अवैध वोटर नहीं चलेगा।" वहीं आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन इसे ध्रुवीकरण की राजनीति करार दे रहा है, लेकिन इस अभियान से उनके कई बूथ स्तरीय समीकरण गड़बड़ा सकते हैं।
चुनाव परिणामों पर असर तय
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यह अभियान व्यापक स्तर पर चला तो सीमांचल की 24 से अधिक विधानसभा सीटों पर इसका सीधा असर पड़ेगा। अवैध वोटरों के नाम हटने से जहां भाजपा को फायदा मिल सकता है, वहीं आरजेडी-कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है।