नई दिल्ली/दमिश्क, 25 जुलाई 2025 — पश्चिम एशिया एक बार फिर रणनीतिक खींचतान और भू-राजनीतिक हलचलों का केंद्र बनता दिख रहा है। सीरिया, जो पहले ही गृहयुद्ध, बाहरी हस्तक्षेप और आतंकी हमलों से जूझ रहा है, अब चार हिस्सों में विभाजित होने की आशंका से घिरा है। इस चर्चा को और हवा दी है इज़राइल की महत्वाकांक्षी ‘डेविड कॉरिडोर’ परियोजना ने, जिससे पूरे क्षेत्र में रणनीतिक हलचल तेज हो गई है।
क्या है ‘डेविड कॉरिडोर’ योजना?
इज़राइल द्वारा प्रस्तावित ‘डेविड कॉरिडोर’ एक बहुस्तरीय भू-रणनीतिक प्रोजेक्ट है, जो मिडिल ईस्ट में इज़राइल को जॉर्डन, इराक और कुर्द क्षेत्रों से होते हुए खाड़ी देशों तक जोड़ने की योजना है। यह गलियारा न केवल व्यापारिक पहुंच का माध्यम बनेगा, बल्कि इसका उद्देश्य सैन्य रणनीतिक लाभ भी है। विश्लेषकों के अनुसार, यह योजना अमेरिका, फ्रांस और कुछ खाड़ी देशों के गुप्त समर्थन से आगे बढ़ रही है।
सीरिया के विभाजन की पृष्ठभूमि
सीरिया पिछले एक दशक से गृहयुद्ध की चपेट में है। राष्ट्रपति बशर अल-असद की सत्ता को चुनौती देने वाले विद्रोही गुट, कुर्द बल, इस्लामिक स्टेट और विदेशी शक्तियां—इन सबके कारण देश की अखंडता पहले ही खतरे में पड़ चुकी है। अब, 'डेविड कॉरिडोर' के साथ-साथ कई विश्लेषकों का मानना है कि सीरिया को चार क्षेत्रों में बांटने की पश्चिमी साजिश को गति मिल सकती है:
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अलावी शासित क्षेत्र – बशर अल-असद के वफादारों द्वारा नियंत्रित तटीय क्षेत्र।
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कुर्द स्वायत्त क्षेत्र – उत्तर-पूर्वी सीरिया में कुर्द मिलिशिया का नियंत्रण।
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सुन्नी बहुल विद्रोही क्षेत्र – जहां अब भी विपक्षी ताकतें सक्रिय हैं।
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इस्राइली प्रभाव क्षेत्र – दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में प्रस्तावित 'डेविड कॉरिडोर' का मार्ग।
क्यों बढ़ रही है अंतरराष्ट्रीय हलचल?
मॉस्को और तेहरान को इस परियोजना पर खासा ऐतराज है। रूस ने इस कॉरिडोर को "सीरिया की संप्रभुता के विरुद्ध सीधा हस्तक्षेप" बताया है, वहीं ईरान ने इसे पश्चिमी दबदबे को मजबूत करने की कोशिश करार दिया है। दूसरी ओर, अमेरिका और कुछ यूरोपीय देश इसे पश्चिम एशिया में "स्थिरता और व्यापार का नया अध्याय" मान रहे हैं।
भारत की स्थिति
भारत, जो सीरिया के पुनर्निर्माण कार्यों में निवेश करने की तैयारी में है, इस संभावित बंटवारे और इजराइल-प्रेरित कॉरिडोर को लेकर सतर्क है। नई दिल्ली के लिए यह न केवल कूटनीतिक चुनौती है, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता से भी जुड़ा मामला है।
स्थानीय विरोध और चिंता
सीरिया की जनता और विभिन्न गुटों ने भी इस योजना पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। दमिश्क में हजारों नागरिकों ने सड़कों पर उतरकर "सीरिया एक था और एक रहेगा" के नारे लगाए। सोशल मीडिया पर भी इस योजना की आलोचना तेज हो गई है, जहाँ इसे "आधुनिक उपनिवेशवाद" का नाम दिया जा रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह योजना आगे बढ़ती है, तो इससे पश्चिम एशिया की राजनीति में नया भूचाल आ सकता है। यह सिर्फ सीरिया तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि लेबनान, ईरान, तुर्की और इराक तक इसकी गूंज सुनाई दे सकती है।