यूक्रेन में पिछले तीन वर्षों से जारी युद्ध को लेकर अब एक नई कूटनीतिक उम्मीद नजर आ रही है। रूसी सरकार ने पहली बार खुले तौर पर संकेत दिया है कि अगर कुछ अहम शर्तें मानी जाती हैं, तो राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के बीच सीधी मुलाकात संभव हो सकती है। इसके साथ ही, रूस ने यूक्रेन में संघर्षविराम (सीजफायर) को लेकर भी अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट की हैं।
रूस ने रखी सीजफायर की शर्तें
रूसी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि यदि यूक्रेन "नाटो की सदस्यता छोड़ने" और "डोनबास व क्रीमिया को रूस का हिस्सा मानने" जैसे प्रस्तावों को स्वीकार करता है, तभी पुतिन-जेलेंस्की की बैठक और संघर्षविराम की दिशा में गंभीर पहल संभव है।
रूसी प्रवक्ता के अनुसार, "हम वार्ता के लिए हमेशा तैयार हैं, लेकिन वार्ता केवल तब सार्थक होगी जब यूक्रेन व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाएगा।"
जेलेंस्की प्रशासन की प्रतिक्रिया
यूक्रेनी सरकार ने अब तक इन शर्तों पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, कीव सरकार रूस की क्षेत्रीय मांगों को मानने के पक्ष में नहीं है। राष्ट्रपति जेलेंस्की कई बार कह चुके हैं कि यूक्रेन की संप्रभुता और सीमाएं गैर-परिवर्तनीय हैं, और कोई भी वार्ता तभी संभव होगी जब रूस पीछे हटेगा।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजर
संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और अमेरिका समेत दुनिया के कई बड़े देशों की निगाहें अब इस प्रस्ताव पर टिकी हुई हैं। अमेरिका ने बयान जारी कर कहा कि वह हर उस पहल का समर्थन करेगा जो युद्ध समाप्ति की दिशा में ठोस कदम हो, लेकिन यूक्रेन की स्वतंत्रता और भूभागीय अखंडता से समझौता नहीं हो सकता।
शांति वार्ता के संकेत क्यों अहम?
तीन साल से जारी युद्ध ने दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं, नागरिक जीवन और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बुरी तरह प्रभावित किया है। लाखों लोगों को विस्थापन झेलना पड़ा है, हजारों जानें गई हैं और वैश्विक अनिश्चितता बढ़ी है। ऐसे में पुतिन-जेलेंस्की की संभावित मुलाकात को युद्ध समाप्ति की दिशा में पहला सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले हफ्तों में यदि मध्यस्थ देशों की भूमिका प्रभावी रही, तो शांति वार्ता के दरवाजे खुल सकते हैं। हालांकि, फिलहाल कोई सीधी वार्ता की तारीख तय नहीं हुई है।