ग़ज़ा पट्टी में जारी संघर्ष के बीच इसराइल की कथित ‘ग़ज़ा सिटी पर स्थायी क़ब्ज़े’ की योजना को लेकर मुस्लिम देशों ने गंभीर आपत्ति जताई है। कई इस्लामिक देशों ने संयुक्त बयान जारी कर चेतावनी दी है कि अगर इसराइल ने ग़ज़ा में सैन्य कब्ज़े की दिशा में कदम बढ़ाया तो इसका असर न केवल मध्य पूर्व बल्कि पूरे विश्व की शांति और स्थिरता पर पड़ेगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, हाल ही में इसराइली मंत्रिमंडल में ग़ज़ा सिटी को लंबे समय तक सैन्य नियंत्रण में रखने और वहां नई प्रशासनिक व्यवस्था लागू करने पर चर्चा हुई। इस योजना में कथित तौर पर ग़ज़ा के कुछ हिस्सों में सैन्य ठिकाने स्थापित करने और सीमाओं पर कड़ी निगरानी रखने की बात शामिल है। इस पर तुर्की, क़तर, ईरान, सऊदी अरब और जॉर्डन समेत कई देशों ने आपत्ति जताई है।
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन ने इसराइल की योजना को “अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन” बताया और कहा कि ग़ज़ा के लोग अपने आत्मनिर्णय के अधिकार से वंचित नहीं किए जा सकते। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की। क़तर के विदेश मंत्रालय ने भी बयान जारी कर कहा कि इस तरह का कदम क्षेत्र में तनाव को और भड़का देगा और मानवीय संकट को गहरा करेगा।
ईरान ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर ग़ज़ा पर कब्ज़ा करने का प्रयास हुआ तो यह ‘प्रतिरोध आंदोलन’ को और मजबूत करेगा और इसके नतीजे में इसराइल को लंबे समय तक अस्थिरता का सामना करना पड़ेगा। वहीं सऊदी अरब ने कहा कि ग़ज़ा के भविष्य का निर्णय वहां के निवासियों की इच्छा के अनुसार होना चाहिए, न कि किसी बाहरी थोपे गए राजनीतिक एजेंडे के तहत।
संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ ने भी अप्रत्यक्ष रूप से इस मुद्दे पर चिंता जताई है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा कि ग़ज़ा में स्थायी कब्ज़ा न केवल वहां के लोगों के अधिकारों का हनन है, बल्कि यह शांति वार्ता की संभावनाओं को भी खत्म कर देगा। उन्होंने सभी पक्षों से संयम बरतने और वार्ता की मेज पर लौटने की अपील की।
ग़ज़ा सिटी पहले से ही मानवीय संकट से जूझ रही है। वहां बिजली, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी है। संयुक्त राष्ट्र राहत एजेंसियों के मुताबिक, संघर्ष शुरू होने के बाद से हजारों लोग विस्थापित हो चुके हैं और हालात लगातार बिगड़ रहे हैं। ऐसे में कब्ज़े की योजना, वहां के आम नागरिकों की मुश्किलें और बढ़ा सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इसराइल अगर ग़ज़ा पर लंबे समय तक सैन्य नियंत्रण बनाए रखता है, तो इससे न केवल हमास और अन्य गुटों का प्रतिरोध तेज होगा, बल्कि मुस्लिम देशों के साथ उसके संबंध भी गंभीर रूप से प्रभावित होंगे। फिलहाल सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच इसराइल इस योजना को आगे बढ़ाता है या नहीं।