लंबे इंतजार और गहन चर्चा के बाद आखिरकार ऑनलाइन गेमिंग विधेयक लोकसभा से पास हो गया। सरकार ने इसे डिजिटल युग में आवश्यक बताते हुए तर्क दिया कि बिना नियमन के ऑनलाइन गेमिंग उद्योग देश की अर्थव्यवस्था और युवाओं दोनों पर नकारात्मक असर डाल रहा था। बताया जा रहा है कि अवैध प्लेटफॉर्म और कर चोरी के कारण देश को हर साल करीब 20 हजार करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ रहा था।
सरकार का तर्क
वित्त मंत्रालय और आईटी मंत्रालय की संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया कि पिछले कुछ वर्षों में ऑनलाइन गेमिंग की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है। लाखों युवा इसमें शामिल हो रहे हैं, लेकिन नियमन की कमी के कारण धोखाधड़ी, लत और कर राजस्व में भारी नुकसान सामने आ रहा था। नए बिल के तहत कंपनियों को लाइसेंस लेना अनिवार्य होगा और किसी भी तरह की अवैध सट्टेबाजी या बिना पंजीकरण वाले प्लेटफॉर्म पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
पेनल्टी और सजा का प्रावधान
बिल में प्रावधान किया गया है कि नियमों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों और व्यक्तियों पर 50 लाख रुपये तक का जुर्माना और तीन साल तक की सजा हो सकती है। इसके अलावा नाबालिगों को किसी भी प्रकार के मनी-आधारित गेम खेलने से रोकने के लिए विशेष प्रावधान शामिल किए गए हैं।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों ने बिल का समर्थन तो किया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि सरकार को मनोरंजन और ई-स्पोर्ट्स को सट्टेबाजी से अलग करना चाहिए। उनका मानना है कि यदि नियमन बहुत सख्त हो गया तो यह उद्योग की वृद्धि को बाधित कर सकता है। हालांकि, सरकार का कहना है कि बिल संतुलित है और इसका उद्देश्य केवल अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाना है।
युवाओं और उद्योग पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न केवल युवाओं को गेमिंग की लत और वित्तीय जोखिम से बचाया जा सकेगा, बल्कि उद्योग को भी पारदर्शिता और निवेश के नए अवसर मिलेंगे। भारत में ऑनलाइन गेमिंग सेक्टर की सालाना वृद्धि दर 25% से अधिक है और आने वाले वर्षों में यह वैश्विक स्तर पर एक बड़ा बाजार बन सकता है।
लोकसभा से पारित यह ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025 केवल अवैध गतिविधियों पर रोक लगाने का कदम नहीं है, बल्कि यह सरकार का प्रयास है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था को सुरक्षित और पारदर्शी बनाया जा सके। अब नजर राज्यसभा पर है, जहां से मंजूरी मिलने के बाद यह कानून का रूप ले लेगा।