पंजाब इस समय विनाशकारी बाढ़ की चपेट में है। सितंबर 2025 में आई यह आपदा पिछले चार दशकों की सबसे बड़ी मानी जा रही है। राज्य सरकार की आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार अब तक 37 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि साढ़े 3 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं।
बारिश का पानी अचानक बढ़ने और नदियों के उफान पर आने से कई जिलों में हालात बेहद गंभीर बने हुए हैं। राहत व बचाव कार्य युद्ध स्तर पर चल रहे हैं, लेकिन तबाही का मंजर 1988 की बाढ़ की याद दिला रहा है। हजारों लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाने को मजबूर हैं।
कृषि पर भी इसका बड़ा असर देखने को मिला है। धान और कपास की फसलें पानी में डूब गईं, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है। खेतों में खड़ी फसलें बर्बाद होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है।
सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएँ राहत कार्यों में जुटी हैं। मुख्यमंत्री ने बाढ़ प्रभावित जिलों का दौरा कर हालात का जायजा लिया और प्रभावित परिवारों को हरसंभव मदद का भरोसा दिया। राज्य प्रशासन की ओर से अस्थायी राहत शिविर बनाए गए हैं, जहाँ हजारों लोगों को भोजन और आश्रय उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके अलावा सेना और एनडीआरएफ की टीमों को भी तैनात किया गया है।
परिवहन व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है। कई सड़कें और पुल पानी में बह गए हैं, जिससे गाँव-गाँव का संपर्क टूट चुका है। बिजली और पेयजल आपूर्ति भी प्रभावित हुई है। लोग पीने के साफ पानी और दवाइयों की किल्लत का सामना कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि बदलते जलवायु पैटर्न और लगातार हो रही भारी बारिश ने इस आपदा को और विकराल बना दिया। पर्यावरणविदों का कहना है कि यदि समय रहते जल प्रबंधन और बाढ़ नियंत्रण के ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में पंजाब सहित पूरे उत्तर भारत को इसी तरह की आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है।
फिलहाल, सबसे बड़ी चुनौती लाखों प्रभावित लोगों को राहत पहुंचाने और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर बसाने की है। सरकार ने केंद्र से मदद मांगी है, ताकि पुनर्वास कार्य को तेज किया जा सके और बाढ़ के कारण हुए नुकसान की भरपाई की जा सके।