केंद्र सरकार ने हाल ही में जीएसटी स्लैब में बड़ा बदलाव किया है, जिसे उद्योग जगत के लिए अहम कदम माना जा रहा है। इस बदलाव का सबसे ज्यादा असर लघु और मध्यम उद्योगों (MSME) पर पड़ने वाला है, जो लंबे समय से कर ढांचे की जटिलताओं और ऊंची दरों से जूझ रहे थे। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह संशोधन वास्तव में उनकी परेशानी कम करेगा या फिर नए नियम भी कुछ नई चुनौतियां खड़ी करेंगे।
नए संशोधन के तहत कई आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को निचली कर श्रेणी में शामिल किया गया है। कुछ वस्तुओं पर कर दर घटाई गई है, जबकि कुछ को पूरी तरह से जीएसटी से बाहर किया गया है। सरकार का दावा है कि इससे उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी और छोटे उद्योगों की लागत घटेगी। इससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बढ़ेगी और बाज़ार में टिकना आसान होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि लघु उद्योगों को सबसे बड़ी राहत कंप्लायंस बोझ से मिलेगी। अब छोटे कारोबारियों को जीएसटी रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया में कुछ छूट दी गई है। इससे समय और धन की बचत होगी। साथ ही, कर दरों में कमी से उत्पादन की लागत भी कम होगी, जिसका सीधा फायदा रोजगार सृजन और निवेश वृद्धि में देखने को मिल सकता है।
हालांकि, उद्योग संगठनों का एक वर्ग यह भी कह रहा है कि केवल दरों में बदलाव से समस्या हल नहीं होगी। उनका तर्क है कि लघु उद्योगों के लिए कच्चे माल की महंगाई, कर्ज तक आसान पहुंच और तकनीकी उन्नयन जैसी चुनौतियां भी उतनी ही बड़ी हैं। अगर सरकार इन मुद्दों पर ठोस कदम नहीं उठाती, तो जीएसटी सुधार का असर सीमित रह सकता है।
आर्थिक विश्लेषकों का अनुमान है कि जीएसटी स्लैब में यह बदलाव अल्पकाल में राहत तो देगा, लेकिन दीर्घकालीन प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार अन्य सुधारों को किस तरह लागू करती है। खासकर, डिजिटल भुगतान को आसान बनाने, टैक्स चोरी पर रोक लगाने और राज्यों के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करने की दिशा में प्रयास जरूरी होंगे।
कुल मिलाकर, जीएसटी स्लैब में यह संशोधन लघु उद्योगों के लिए उम्मीद की किरण जरूर है। लेकिन इसे असली सहारा तभी कहा जा सकता है जब सरकार समानांतर आर्थिक चुनौतियों के समाधान पर भी ठोस काम करे।