पेरिस में 5 सितंबर 2025 को आयोजित एक अहम बैठक ने यूक्रेन संकट को नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। इस बैठक में सुरक्षा गारंटी और युद्धविराम के बाद की रणनीति पर चर्चा की गई, जिसमें 26 देशों ने यूक्रेन में सैनिक तैनात करने की इच्छा जताई। यह कदम न केवल रूस-यूक्रेन युद्ध की जटिलताओं को कम करने की दिशा में देखा जा रहा है, बल्कि यूरोप की सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को भी मजबूत करने की कोशिश है।
पेरिस बैठक का एजेंडा
फ्रांस की राजधानी में हुई इस उच्चस्तरीय वार्ता में यूरोपीय संघ, अमेरिका, कनाडा और एशिया के कुछ सहयोगी देशों ने हिस्सा लिया। बैठक का मुख्य मुद्दा था—युद्धविराम के बाद यूक्रेन की सुरक्षा और पुनर्निर्माण सुनिश्चित करना। विशेषज्ञों का मानना है कि बिना ठोस सुरक्षा गारंटी के युद्धविराम स्थायी नहीं हो सकता। इसलिए सहयोगी देशों ने मिलकर यह निर्णय लिया कि वे यूक्रेन की सीमाओं और संवेदनशील क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय बल तैनात करेंगे।
सैनिक तैनाती की रूपरेखा
चर्चा के मुताबिक, सैनिकों की तैनाती केवल शांति बनाए रखने और युद्धविराम की निगरानी के लिए होगी। यह बल सीधे किसी सैन्य कार्रवाई में शामिल नहीं होगा, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक और शांति रक्षक की भूमिका निभाएगा। माना जा रहा है कि नाटो (NATO) के सदस्य देश इस बल में अग्रणी रहेंगे, जबकि गैर-नाटो देश भी अपनी क्षमता के अनुसार सहयोग करेंगे।
अमेरिका और यूरोप की भूमिका
अमेरिका ने स्पष्ट किया कि वह यूक्रेन की संप्रभुता और सुरक्षा के लिए हर संभव समर्थन देगा, हालांकि सैनिकों की संख्या और जिम्मेदारियों पर अंतिम निर्णय अभी बाकी है। जर्मनी और फ्रांस ने भी यह संकेत दिया कि वे युद्धविराम के बाद की निगरानी में सक्रिय भूमिका निभाएंगे। ब्रिटेन और पोलैंड पहले ही यूक्रेन को सैन्य और मानवीय सहायता देने में अग्रणी रहे हैं, और अब वे शांति बल का हिस्सा बनने के लिए भी तैयार हैं।
रूस की प्रतिक्रिया
रूस ने इस अंतर्राष्ट्रीय सैनिक तैनाती पर कड़ी आपत्ति जताई है। मॉस्को का तर्क है कि यूक्रेन में किसी भी बाहरी बल की मौजूदगी उसके खिलाफ सैन्य दबाव बनाने का प्रयास है। क्रेमलिन का कहना है कि यदि यह कदम उठाया गया, तो युद्धविराम की प्रक्रिया बाधित हो सकती है। विश्लेषकों का मानना है कि रूस की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक है क्योंकि वह नहीं चाहता कि पश्चिमी देश यूक्रेन में स्थायी उपस्थिति दर्ज करें।
हालांकि 26 देशों का एकजुट होकर आगे आना यूक्रेन के लिए बड़ी राहत की बात है, लेकिन यह योजना व्यवहारिक रूप से कितनी सफल होगी, यह आने वाला समय बताएगा। सबसे बड़ी चुनौती होगी—सैनिकों की तैनाती के लिए कानूनी ढांचा तैयार करना और रूस को इस व्यवस्था से सहमत कराना। इसके अलावा, यूक्रेन के पुनर्निर्माण और शरणार्थियों की वापसी भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने बड़ी जिम्मेदारी है।पेरिस बैठक से यह स्पष्ट हो गया है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय यूक्रेन को अकेला नहीं छोड़ना चाहता। 26 देशों की सैनिक तैनाती की तैयारी शांति बहाली की दिशा में बड़ा कदम है। हालांकि रूस की असहमति इस योजना के क्रियान्वयन को जटिल बना सकती है, लेकिन यदि सभी पक्ष संयम और सहयोग से आगे बढ़ें, तो यूक्रेन में स्थायी शांति की संभावना मजबूत हो सकती है।