पंजाब इस समय भयंकर प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है। प्रदेश के कई हिस्सों में भारी बारिश और बाढ़ ने तबाही मचा दी है। ताज़ा जानकारी के मुताबिक अब तक 43 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि हजारों लोग बेघर हो गए हैं। प्रशासन और सेना मिलकर राहत-बचाव कार्यों में जुटे हैं, लेकिन हालात सामान्य होने में समय लग सकता है।
पठानकोट जिले में पहाड़ दरकने की घटनाओं ने स्थिति और गंभीर कर दी है। पहाड़ी इलाकों से बड़े-बड़े पत्थर और मलबा गिरने से कई गांवों का संपर्क टूट गया है। सड़कों पर आवाजाही ठप हो गई है और लोग घरों में कैद होकर रह गए हैं। वहीं, लुधियाना जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में पानी भर जाने से आर्थिक गतिविधियां ठप हो गईं। शहर के कई हिस्सों में जलमग्न स्थिति बनी हुई है, जिसके चलते सेना को राहत कार्यों की कमान संभालनी पड़ी।
राज्य सरकार के अनुसार, बाढ़ से प्रभावित इलाकों में राहत शिविर लगाए गए हैं, जहां लोगों को भोजन, दवाइयां और सुरक्षित ठिकाने उपलब्ध कराए जा रहे हैं। सेना और एनडीआरएफ की टीमें नावों और हेलिकॉप्टरों की मदद से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा रही हैं। हालांकि कई दूरदराज़ गांवों तक पहुंचना अभी भी चुनौती बना हुआ है।
विशेषज्ञों का कहना है कि बाढ़ का मुख्य कारण लगातार भारी वर्षा के साथ-साथ नदियों और नालों में जलभराव है। पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि धंसने की घटनाओं ने जोखिम और बढ़ा दिया है। वहीं, निचले इलाकों में बसे गांवों और कस्बों में पानी का स्तर तेजी से बढ़ने से स्थानीय लोगों को रातों-रात घर छोड़ने पड़े।
मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से तुरंत राहत पैकेज और अतिरिक्त मदद की मांग की है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार हर संभव कोशिश कर रही है, लेकिन आपदा का स्तर बहुत बड़ा है। उधर, विपक्षी दल सरकार पर बाढ़ प्रबंधन में लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं।
पंजाब में आई इस त्रासदी ने न केवल जान-माल की हानि की है बल्कि आने वाले समय में आर्थिक और सामाजिक स्तर पर गहरे घाव भी छोड़ सकती है। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राज्य अपनी आपदा प्रबंधन नीतियों को मजबूत कर पाएगा या हर साल ऐसी आपदाओं का सामना करता रहेगा।