चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) अब अपने दूसरे चरण यानी CPEC 2.0 में प्रवेश कर चुका है। पाकिस्तान और चीन ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना को और विस्तारित करते हुए इसमें पांच नए कॉरिडोर जोड़ने की घोषणा की है। इन नए गलियारों का लक्ष्य केवल आर्थिक सहयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह क्षेत्रीय रणनीति और सुरक्षा समीकरणों को भी प्रभावित करने वाला कदम माना जा रहा है। भारत के लिए यह प्रोजेक्ट कई नई चुनौतियां खड़ी कर सकता है।
CPEC 2.0 में क्या नया?
CPEC का पहला चरण मुख्य रूप से सड़क, ऊर्जा और आधारभूत ढांचे के निर्माण पर केंद्रित था। अब दूसरे चरण में चीन और पाकिस्तान ने इसे औद्योगिक, कृषि, डिजिटल, ग्रीन एनर्जी और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी कॉरिडोर तक बढ़ा दिया है। इसका उद्देश्य पाकिस्तान में निवेश और रोजगार के अवसर पैदा करना है, वहीं चीन को पश्चिम एशिया और अफ्रीकी बाजारों तक आसान पहुंच दिलाना भी इसकी बड़ी रणनीति है।
भारत के लिए चिंता क्यों?
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रणनीतिक दबाव: CPEC का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (PoK) से गुजरता है। भारत पहले से ही इसका विरोध करता रहा है। अब CPEC 2.0 के विस्तार से इस क्षेत्र में चीन की मौजूदगी और मजबूत होगी, जिससे भारत की संप्रभुता को सीधी चुनौती मिलती है।
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आर्थिक प्रतिस्पर्धा: नए औद्योगिक और डिजिटल कॉरिडोर चीन-पाकिस्तान को एक मजबूत आर्थिक साझेदार बना सकते हैं। इससे भारत की क्षेत्रीय आर्थिक बढ़त को चुनौती मिल सकती है।
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सुरक्षा पहलू: चीन और पाकिस्तान के संयुक्त प्रयासों से आतंक प्रभावित इलाकों में सुरक्षा ढांचे को और मजबूत किया जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इसका इस्तेमाल सामरिक दबाव बढ़ाने के लिए भी हो सकता है।
चीन का उद्देश्य
चीन लंबे समय से वन बेल्ट, वन रोड (OBOR) पहल के तहत एशिया, यूरोप और अफ्रीका को जोड़ने की कोशिश कर रहा है। CPEC इस पहल का सबसे अहम हिस्सा है, क्योंकि यह चीन को सीधे अरब सागर और ग्वादर पोर्ट से जोड़ता है। CPEC 2.0 के जरिए चीन अपनी ऊर्जा सुरक्षा, आपूर्ति श्रृंखला और वैश्विक व्यापार नेटवर्क को और मजबूत करना चाहता है।
पाकिस्तान की उम्मीदें
पाकिस्तान आर्थिक संकट से जूझ रहा है। उसे उम्मीद है कि CPEC 2.0 के जरिए विदेशी निवेश, रोजगार और तकनीकी सहयोग मिलेगा। कृषि और ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर से स्थानीय उत्पादन क्षमता बढ़ाने का दावा किया जा रहा है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि इससे पाकिस्तान की आर्थिक निर्भरता चीन पर और गहरी होगी।
भारत की रणनीतिक चुनौती
भारत ने शुरुआत से ही CPEC का विरोध किया है और इसे अपनी संप्रभुता के खिलाफ बताया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि CPEC 2.0 से भारत को तीन स्तरों पर चुनौती मिलेगी—
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भौगोलिक: PoK में चीन की बढ़ती उपस्थिति
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आर्थिक: क्षेत्रीय व्यापार और निवेश में प्रतिस्पर्धा
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सुरक्षा: सीमा और समुद्री क्षेत्रों में चीन-पाक गठजोड़
CPEC 2.0 सिर्फ एक आर्थिक प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि भारत के लिए रणनीतिक और सुरक्षा संबंधी नई चुनौतियों का संकेत है। भारत के लिए ज़रूरी है कि वह इस क्षेत्रीय समीकरण का संतुलन साधने के लिए अपने सहयोगी देशों के साथ नई नीतिगत पहल करे।