दिल्ली में आई हालिया बाढ़ को लेकर आम धारणा यही रही कि यमुना नदी इसका मुख्य कारण है। लेकिन नई सैटेलाइट तस्वीरें इस सोच को गलत साबित करती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बाढ़ की असली वजह अनियंत्रित शहरीकरण, अवैज्ञानिक निर्माण और प्रशासनिक चूक है, न कि नदी का प्राकृतिक बहाव।
यमुना से जुड़ी हालिया सैटेलाइट इमेजेज में साफ दिख रहा है कि नदी का प्राकृतिक मार्ग वर्षों से सिकुड़ता गया है। इसके दोनों किनारों पर अनधिकृत बस्तियों, सड़क परियोजनाओं और व्यावसायिक गतिविधियों ने कब्जा जमा लिया है। इससे नदी का फैलाव रुक गया और बारिश के दौरान अतिरिक्त पानी फैलने के बजाय शहर की सड़कों और निचले इलाकों में घुस गया।
जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली के बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का अधिकांश हिस्सा यमुना के पुराने जलग्रहण क्षेत्र में आता है। शहरी विकास योजनाओं में इसे नजरअंदाज कर दिया गया। यही वजह रही कि जब भारी वर्षा हुई और पहाड़ी राज्यों से अतिरिक्त पानी छोड़ा गया, तो यमुना का दबाव सीधे शहर पर पड़ा।
सैटेलाइट तस्वीरों से यह भी सामने आया है कि नदी किनारे की हरी पट्टी और नमी सोखने वाले क्षेत्र लगभग खत्म हो चुके हैं। इन इलाकों पर पक्के ढांचे और कंक्रीट बिछने से पानी का रिसाव रुक गया। नतीजतन, थोड़ी भी अधिक वर्षा ने जलजमाव और बाढ़ की स्थिति पैदा कर दी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि नदी को उसका प्राकृतिक स्थान और पर्याप्त फैलाव मिल जाता, तो स्थिति इतनी भयावह नहीं होती। बाढ़ नियंत्रण के नाम पर जो तात्कालिक उपाय किए जाते हैं, वे अस्थायी साबित होते हैं। ज़रूरत है दीर्घकालिक योजना की—जिसमें नदी के जलग्रहण क्षेत्रों को संरक्षित किया जाए, अतिक्रमण हटाया जाए और वर्षा जल प्रबंधन को वैज्ञानिक तरीके से लागू किया जाए।
दिल्ली के बाढ़ संकट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दोष यमुना का नहीं बल्कि हमारी विकास नीतियों और प्रशासनिक उदासीनता का है। सैटेलाइट तस्वीरें गवाही दे रही हैं कि यदि हम अब भी नहीं चेते तो भविष्य में राजधानी और भी गंभीर जल आपदाओं का सामना कर सकती है।