राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) इस वर्ष अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है। 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर से शुरू हुई यह संस्था आज देश के सबसे बड़े सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों में गिनी जाती है। शताब्दी वर्ष को ऐतिहासिक बनाने के लिए संघ ने देशभर में विशेष कार्यक्रमों की श्रृंखला शुरू की है, जिनमें समाज सेवा, सांस्कृतिक जागरण और राष्ट्रीय एकता को प्रमुखता दी गई है।
सूत्रों के मुताबिक, शताब्दी वर्ष समारोह की औपचारिक शुरुआत नागपुर में हुई, जहां संघ प्रमुख मोहन भागवत और लाखों स्वयंसेवकों ने एकत्र होकर संगठन की उपलब्धियों और भविष्य की योजनाओं को साझा किया। इस मौके पर संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार और गुरुजी गोलवलकर को याद किया गया।
शताब्दी समारोह के तहत आरएसएस ने समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुँच बनाने का लक्ष्य रखा है। ग्रामीण विकास, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर विशेष कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। संघ से जुड़े विभिन्न सहयोगी संगठनों ने भी अपने-अपने क्षेत्र में सेवा कार्यों को और गति देने का संकल्प लिया है।
इस अवसर पर आयोजित संगोष्ठियों और सांस्कृतिक आयोजनों में संघ की विचारधारा और उसकी भूमिका पर चर्चा हो रही है। इतिहासकारों और सामाजिक चिंतकों का मानना है कि पिछले सौ वर्षों में संघ ने भारतीय समाज में गहरी पैठ बनाई है और अब आने वाले समय में उसकी भूमिका और बढ़ सकती है।
कार्यक्रम में युवाओं की भागीदारी पर भी जोर दिया जा रहा है। संघ का मानना है कि भारत का भविष्य युवा शक्ति के हाथों में है और शताब्दी वर्ष का मुख्य संदेश “सशक्त भारत, संगठित समाज” होगा। इसके तहत देशभर के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान और शिविर आयोजित किए जा रहे हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित इस महाअभियान का समापन 2026 में होगा। तब तक संघ देश के सभी राज्यों और प्रमुख शहरों में बड़े स्तर पर कार्यक्रम करने की योजना बना रहा है। शताब्दी वर्ष केवल संगठन के गौरव का उत्सव नहीं है बल्कि इसे समाज के साथ गहरे जुड़ाव का अवसर माना जा रहा है।