अफगानिस्तान एक बार फिर सुर्खियों में है। तालिबान सरकार ने देशभर में इंटरनेट सेवाओं को अचानक बंद कर दिया है। इस इंटरनेट ब्लैकआउट ने न केवल आम नागरिकों को कठिनाई में डाला है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता बढ़ा दी है। सवाल यह है कि आखिर तालिबान ने ऐसा कड़ा कदम क्यों उठाया और इसके पीछे क्या वजहें हैं?
इंटरनेट ब्लैकआउट की पृष्ठभूमि
रिपोर्ट्स के अनुसार, बीते सप्ताह अफगानिस्तान के कई प्रांतों में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। खासकर महिलाओं की शिक्षा, रोज़गार और स्वतंत्रता को लेकर कई शहरों में लोग सड़कों पर उतरे। इन प्रदर्शनों की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थीं, जिससे तालिबान की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और खराब हो रही थी। इसी दबाव को रोकने के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद करने का फैसला लिया गया।
तालिबान का तर्क
तालिबान प्रवक्ता ने दावा किया है कि इंटरनेट बंद करने का फैसला "राष्ट्रीय सुरक्षा" और "झूठी खबरों" के प्रसार को रोकने के लिए लिया गया। उनका कहना है कि सोशल मीडिया के माध्यम से अफवाहें फैलाई जा रही थीं, जो देश में अस्थिरता और अराजकता को बढ़ावा दे रही थीं। हालांकि, मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि यह निर्णय नागरिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सीधा हमला है।
आम जनता पर असर
इंटरनेट ब्लैकआउट का सबसे ज्यादा असर आम नागरिकों पर पड़ा है। लोग बैंकिंग, ई-ट्रांजैक्शन, ऑनलाइन शिक्षा और रोज़गार के डिजिटल साधनों से कट गए हैं। कई छोटे व्यवसाय, जो ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर निर्भर थे, पूरी तरह ठप हो गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो हालात और भी गंभीर हैं, जहां संचार का एकमात्र साधन इंटरनेट ही था।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
अमेरिका, यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र ने तालिबान के इस फैसले की आलोचना की है। उनका कहना है कि इंटरनेट बंद करना लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवाधिकारों का उल्लंघन है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तालिबान से अपील की है कि वह जल्द से जल्द सेवाएं बहाल करे और नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करे।
अफगानिस्तान में डिजिटल दमन की परंपरा
यह पहली बार नहीं है जब तालिबान ने इंटरनेट पर अंकुश लगाया हो। इससे पहले भी कई बार सोशल मीडिया पर रोक, वेबसाइट ब्लॉक और ऑनलाइन निगरानी जैसे कदम उठाए गए हैं। जानकारों का कहना है कि तालिबान अपनी सत्ता को मजबूत करने और आलोचनाओं को दबाने के लिए डिजिटल सेंसरशिप का इस्तेमाल कर रहा है।
अफगानिस्तान का इंटरनेट ब्लैकआउट केवल तकनीकी या सुरक्षा का मामला नहीं, बल्कि मानवाधिकारों और लोकतंत्र की बुनियादी अवधारणा से जुड़ा प्रश्न है। तालिबान का यह कदम देश की पहले से बिगड़ी अंतरराष्ट्रीय छवि को और नुकसान पहुंचा सकता है। साथ ही, आम जनता की परेशानी बढ़ाकर सरकार के खिलाफ असंतोष को और गहरा कर सकता है।