मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में कफ सिरप से जुड़ी एक और दर्दनाक घटना सामने आई है। गुरुवार (2 अक्तूबर 2025) को एक और बच्चे की मौत हो गई, जिससे मृतकों की संख्या बढ़कर सात हो गई है। स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन इस मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच में जुट गया है। प्रारंभिक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि कफ सिरप बनाने में ब्रेक ऑयल का सॉल्वेंट मिलाया गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि यह बेहद खतरनाक और जानलेवा है।
मौत का सिलसिला थम नहीं रहा
छिंदवाड़ा के विभिन्न इलाकों में पिछले एक सप्ताह से बच्चों की लगातार मौतें हो रही हैं। परिजनों ने बताया कि बच्चों ने डॉक्टर की पर्ची पर दिया गया कफ सिरप लिया था, जिसके सेवन के बाद उनकी हालत बिगड़ने लगी। कई बच्चों को उल्टी, सांस लेने में दिक्कत और बेहोशी जैसे लक्षण दिखाई दिए। कुछ को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन इलाज के बावजूद सात मासूमों की जान नहीं बचाई जा सकी।
जांच में सामने आई खतरनाक सच्चाई
फॉरेंसिक जांच में जो बातें सामने आईं, उन्होंने स्वास्थ्य अधिकारियों को भी चौंका दिया। जांच दल ने पाया कि सिरप के निर्माण में महंगे औषधीय सॉल्वेंट की जगह ब्रेक ऑयल का सॉल्वेंट मिलाया गया था। इसकी वजह सिर्फ लागत घटाना और मुनाफा बढ़ाना बताया जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रेक ऑयल का इस्तेमाल इंसान के शरीर में जहर की तरह असर करता है, खासकर बच्चों पर इसका दुष्प्रभाव तुरंत दिखाई देता है।
प्रशासन ने की सख्त कार्रवाई
घटना के बाद जिला प्रशासन ने तत्काल कफ सिरप की खेप को जब्त कर लिया और उत्पादन इकाई को सील कर दिया। स्वास्थ्य विभाग ने दवा कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की तैयारी शुरू कर दी है। वहीं, प्रदेश सरकार ने मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने और दोषियों पर कठोर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है।
सवालों के घेरे में दवा नियामक प्रणाली
यह घटना दवा नियामक तंत्र और क्वालिटी कंट्रोल पर भी बड़े सवाल खड़े करती है। आखिर कैसे जहरीली दवा बाजार में बेची जा रही थी और जांच एजेंसियों को भनक तक नहीं लगी? विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिर्फ छिंदवाड़ा तक सीमित मामला नहीं, बल्कि देशभर में दवा उत्पादन पर सख्त निगरानी की जरूरत है।
छिंदवाड़ा की यह घटना स्वास्थ्य सुरक्षा की बड़ी चेतावनी है। कफ सिरप जैसी सामान्य दवा में ब्रेक ऑयल का मिलना यह साबित करता है कि मुनाफाखोरी के लिए इंसानी जिंदगी से खिलवाड़ किया जा रहा है। अब जिम्मेदारी सरकार और नियामक एजेंसियों की है कि वे न सिर्फ दोषियों को कठोर सजा दिलाएं बल्कि दवा उद्योग में पारदर्शिता और सुरक्षा सुनिश्चित करें।