वैश्विक भू-राजनीति के लगातार बदलते परिदृश्य के बीच भारत ने साफ कर दिया है कि वह गाज़ा और यूक्रेन जैसे जटिल संघर्ष क्षेत्रों में अपनी सेना नहीं भेजेगा। यूरोपीय देशों की ओर से की गई मांग को भारत ने सिरे से ठुकराते हुए कहा कि उसकी विदेश नीति हमेशा “रणनीतिक स्वायत्तता” और “शांति समाधान” के सिद्धांतों पर आधारित रही है।
यूरोपीय देशों की बढ़ती उम्मीदें
रूस-यूक्रेन युद्ध और गाज़ा पट्टी में लगातार बिगड़ते हालात ने यूरोपीय देशों की चिंता बढ़ा दी है। खासकर यूक्रेन में नाटो की थकान और गाज़ा में मानवीय संकट ने पश्चिमी देशों को नए साझेदारों की तलाश के लिए मजबूर कर दिया है। इस बीच, उन्होंने भारत से सैन्य सहयोग की उम्मीद जताई थी। लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि वह किसी भी प्रत्यक्ष सैन्य हस्तक्षेप का हिस्सा नहीं बनेगा।
भारत की रणनीतिक स्वायत्तता
विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि भारत ने हमेशा संवाद, कूटनीति और मानवीय सहायता को प्राथमिकता दी है। चाहे रूस-यूक्रेन युद्ध हो या गाज़ा का संघर्ष, भारत ने दोनों पक्षों से संयम बरतने और शांति वार्ता का रास्ता अपनाने की अपील की है। भारत का मानना है कि सीधे सैन्य भागीदारी से न केवल उसकी तटस्थता प्रभावित होगी बल्कि घरेलू और क्षेत्रीय स्थिरता पर भी असर पड़ सकता है।
गाज़ा और यूक्रेन पर भारत की भूमिका
भारत ने यूक्रेन संकट की शुरुआत से ही मानवीय सहायता भेजी है। दवाइयां, खाद्य सामग्री और राहत सामग्री भारत की ओर से कई बार भेजी गई है। वहीं, गाज़ा में भी भारत ने मानवीय राहत सामग्री उपलब्ध कराई और नागरिकों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई। परंतु, सैन्य भेजने के सवाल पर भारत का रुख स्पष्ट है – वह किसी पक्ष की ओर से युद्ध का हिस्सा नहीं बनेगा।
वैश्विक राजनीति में भारत का बढ़ता प्रभाव
विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला भारत की गुटनिरपेक्ष सोच और स्वतंत्र विदेश नीति को मजबूत करता है। आज भारत वैश्विक दक्षिण का नेतृत्व कर रहा है और उसका उद्देश्य है कि वह संघर्षों का समाधान बातचीत से निकालने में योगदान दे, न कि हथियारों से। यूरोपीय देशों की मांग ठुकराना इस बात का संकेत है कि भारत अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं से कोई समझौता नहीं करेगा।
घरेलू कारण भी अहम
सुरक्षा विश्लेषकों का कहना है कि भारत पहले से ही अपनी सीमाओं पर चुनौतियों का सामना कर रहा है—चीन और पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंध, आंतरिक सुरक्षा, और आतंकवाद की आशंका। ऐसे में विदेशों में सैनिक भेजना भारत के लिए न तो व्यावहारिक है और न ही रणनीतिक दृष्टि से लाभकारी।
भारत का यह निर्णय न केवल उसकी स्वतंत्र विदेश नीति की पुष्टि करता है बल्कि यह संदेश भी देता है कि वह वैश्विक संकटों में “शांति के पक्षधर” की भूमिका निभाना चाहता है। गाज़ा और यूक्रेन में अपनी सेना न भेजने का फैसला इस बात को रेखांकित करता है कि भारत किसी दबाव में आकर नहीं, बल्कि अपने राष्ट्रीय हित और शांति के सिद्धांतों के आधार पर निर्णय लेता है।