मध्य पूर्व में एक बार फिर शांति की उम्मीदों को झटका लगा है। फिलिस्तीनी उग्रवादी संगठन हमास (Hamas) ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पेश किए गए गाजा शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है। हमास ने ट्रंप के प्रस्तावों को “बेतुका और एकतरफा” बताते हुए इसे इज़राइल के पक्ष में झुका हुआ करार दिया है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन की मध्यस्थता में तैयार किया गया यह समझौता गाजा पट्टी में चल रहे संघर्ष को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा था। प्रस्ताव में फिलिस्तीनी प्रशासन और इज़राइल के बीच युद्धविराम, मानवीय सहायता के लिए गलियारों का निर्माण, और गाजा के पुनर्निर्माण के लिए अंतरराष्ट्रीय कोष की स्थापना का प्रावधान था।
हालांकि, हमास के राजनीतिक ब्यूरो प्रमुख इस्माइल हनिया ने कहा कि यह समझौता “फिलिस्तीनी स्वायत्तता और प्रतिरोध की भावना को कमजोर करता है।” उन्होंने आरोप लगाया कि ट्रंप की योजना इज़राइल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैधता दिलाने की कोशिश है जबकि फिलिस्तीन की जनता की मूलभूत मांगों – स्वतंत्र राष्ट्र, सीमा नियंत्रण और यरुशलम की स्थिति – को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है।
हनिया ने एक बयान में कहा, “हम किसी भी ऐसे समझौते का हिस्सा नहीं बन सकते जो कब्जे को वैध ठहराए। गाजा की जनता को न्याय और स्वतंत्रता चाहिए, न कि दान या शर्तों पर आधारित राहत।”
इज़राइली नेतृत्व ने हमास के इस रुख पर निराशा जताई है। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि इस इनकार से गाजा में शांति स्थापित करने के प्रयासों को गहरा झटका लगा है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया कि वह हमास पर दबाव बनाए ताकि निर्दोष नागरिकों की जान बचाई जा सके।
अमेरिकी विदेश विभाग ने भी बयान जारी कर कहा कि यह योजना पूरी तरह मानवीय आधार पर बनाई गई थी और इसका उद्देश्य क्षेत्र में स्थायी शांति लाना था। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप के प्रस्ताव में राजनीतिक संतुलन की कमी थी और यह फिलिस्तीन के हितों को पर्याप्त महत्व नहीं देता था।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। उन्होंने कहा कि गाजा में लगातार बिगड़ती मानवीय स्थिति को देखते हुए तत्काल युद्धविराम की आवश्यकता है।
इस बीच, गाजा में हालात अब भी तनावपूर्ण बने हुए हैं। इज़राइली सेना ने सीमावर्ती इलाकों में अपनी तैनाती बढ़ा दी है, जबकि स्थानीय नागरिक अब भी भोजन, पानी और दवाओं की भारी कमी से जूझ रहे हैं।
मध्य पूर्व विश्लेषकों का मानना है कि अगर हमास और इज़राइल जल्द किसी ठोस वार्ता प्रक्रिया में शामिल नहीं हुए, तो क्षेत्र में हिंसा का चक्र और लंबा खिंच सकता है।