भारत ने चीन की ब्रह्मपुत्र नदी पर बन रही विशाल जलविद्युत परियोजनाओं के जवाब में अब अपनी रणनीतिक पनबिजली योजना शुरू करने की घोषणा की है। यह कदम न केवल ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण है, बल्कि सीमा क्षेत्रों में जल प्रवाह और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने की दृष्टि से भी अहम माना जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार ने अरुणाचल प्रदेश में सुबनसिरी और सियांग नदी घाटियों पर नई हाइड्रोपावर परियोजनाओं को मंजूरी दी है। इस योजना का उद्देश्य चीन की ओर से तिब्बत में बनाए जा रहे बड़े बांधों से संभावित जल संकट को संतुलित करना और ब्रह्मपुत्र बेसिन में भारत के अधिकारों को सुरक्षित करना है।
रिपोर्टों के मुताबिक, चीन तिब्बत क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र (यारलुंग त्सांगपो) पर दुनिया की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना विकसित कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे डाउनस्ट्रीम यानी भारत और बांग्लादेश की ओर पानी के प्रवाह पर असर पड़ सकता है। इस वजह से भारत ने न केवल तकनीकी स्तर पर बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी अपनी योजनाओं को गति देने का निर्णय लिया है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नई परियोजनाओं में पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने और स्थानीय जनजातीय समुदायों को लाभ पहुंचाने के लिए विशेष उपाय किए जाएंगे। इसके साथ ही भारत, भूटान और बांग्लादेश के साथ मिलकर ट्रांस-बॉर्डर वॉटर मैनेजमेंट सिस्टम को भी मजबूत करने की योजना बना रहा है।
विशेषज्ञ इसे भारत की “वॉटर सिक्योरिटी डिप्लोमेसी” का हिस्सा मान रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र के ऊपरी हिस्से में जल प्रवाह पर नियंत्रण को लेकर भारत की चिंताएं बढ़ी हैं। ऐसे में यह नई पहल भारत को जल नीति के मोर्चे पर मजबूत स्थिति में ला सकती है।
परियोजना का उद्देश्य सिर्फ बिजली उत्पादन नहीं, बल्कि क्षेत्रीय विकास, रोजगार सृजन और सीमा सुरक्षा को भी सुदृढ़ करना है। इसके माध्यम से उत्तर-पूर्वी राज्यों में ऊर्जा आपूर्ति बढ़ेगी और इंफ्रास्ट्रक्चर को नई गति मिलेगी।