अमेरिका और रूस की परमाणु शक्ति के बीच तीव्र बढ़ती तनातनी ने एक नए युग का संकेत दे दिया है। डॉनल्ड ट्रम्प ने हाल ही में परमाणु परीक्षणों को तुरंत फिर शुरू करने का आदेश दिया, जिसके तुरंत बाद रूस ने व्लादिमीर पुतिन के नेतृत्व में अपने परमाणु परीक्षणों और मिसाइल क्षमताओं को फिर से सक्रिय करने का ऐलान कर एक नए रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता दौर की शुरुआत कर दी है।
ट्रम्प के आदेश के तहत, अमेरिका ने बिना वारहेड वाले इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) Minuteman III का परीक्षण किया, यह संकेत देते हुए कि अमेरिकी परमाणु हथियारों की तत्परता और प्रभावशीलता पर पुनर्विचार किया जा रहा है। इसके बाद, रूस ने अपने तकनीकी दांव बढ़ाते हुए परमाणु-चालित क्रूज मिसाइल Burevestnik का परीक्षण सफलतापूर्वक करने का दावा किया, जिसे पुतिन ने “दुनिया में कहीं और नहीं मिलने वाली युद्ध प्रणाली” करार दिया।
इस बदलाव का वैश्विक सुरक्षा पर गहरा असर दिख रहा है-- ट्रम्प ने पुतिन को सीधे कहा कि युद्ध को समाप्त करना चाहिए, न कि मिसाइलों की होड़ बढ़ानी चाहिए: “एक ऐसा युद्ध जो एक हफ्ते में खत्म हो जाना चाहिए था, अब चौथे वर्ष में है।” वहीं पुतिन ने स्पष्ट किया कि रूस अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु किसी बाहरी दबाव से नहीं हिलेगा और परमाणु क्षमताओं की तैयारी में लगे रहेगा।
यह स्थिति अब केवल बयानबाजी नहीं रही बल्कि रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता में बदल चुकी है। रूस द्वारा परमाणु-चालित मिसाइल के परीक्षण ने पश्चिमी रक्षा तंत्रों को चुनौती दी है और अमेरिका ने भी अपने उपग्रीविणी (submarine) आधारित परमाणु क्षमताओं का उल्लेख कर जवाब दिया है।
विश्लेषकों की राय है कि यह एक नए हथियार-दौड़ की शुरुआत हो सकती है, जिसमें दोनों महाशक्तियाँ अपनी-अपनी ताकत दिखाने में जुट जाएँगी। हालांकि तकनीकी विशेषज्ञों ने रूस के दावों पर संशय जताया है, लेकिन इस प्रतिस्पर्धा की दिशा ही खतरा बन चुकी है।
इस बीच, यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में यह झुकाव और भी चिंताजनक हो जाता है। जहाँ ट्रम्प ने रूस को युद्ध खत्म करने का सुझाव दिया, वहीं रूस ने इसे शांति की दिशा से हटकर मिसाइल परीक्षणों की दिशा में पहला कदम माना है।
अमेरिका-रूस परमाणु प्रतिद्वंद्विता एक बार फिर उभर कर सामने आई है। ट्रम्प का आदेश और पुतिन का जवाब दोनों मिलकर एक नए युग की ओर संकेत कर रहे हैं, जहाँ आसमान में मिसाइलें भड़ास निकालने की तैयारी में हैं। ऐसी स्थिति में वैश्विक शांति-सुरक्षा की रूपरेखा फिर से परीक्षण में होगी- और यह देखना होगा कि यह प्रतिस्पर्धा क्यों, कहाँ तक और किस दिशा में मुड़ती है।