अंटार्कटिका में हेक्टोरिया ग्लेशियर ने विज्ञान जगत को झकझोरते हुए एक नया रिकॉर्ड तोड़ दिया है। हाल ही में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, यह ग्लेशियर सिर्फ 15 महीनों में लगभग 25 किलोमीटर पीछे खिसक गया। यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन की गंभीरता का प्रतीक है और वैज्ञानिक इसे समुद्र के स्तर में संभावित वृद्धि के लिए चेतावनी के रूप में देख रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने उपग्रह और भौगोलिक सर्वेक्षणों के माध्यम से यह स्थिति दर्ज की है। रिपोर्ट के अनुसार, ग्लेशियर की तेजी से पीछे खिसकने की मुख्य वजह समुद्री तापमान में लगातार वृद्धि और बर्फ की सतह पर गर्म हवाओं का प्रभाव है। हेक्टोरिया ग्लेशियर अंटार्कटिका के पश्चिमी हिस्से में स्थित है और यह क्षेत्र पहले से ही जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के प्रति संवेदनशील माना जाता रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ग्लेशियर का 25 किलोमीटर पीछे खिसकना केवल दूरी का आंकड़ा नहीं है, बल्कि इससे जुड़े बर्फीले टुकड़ों का समुद्र में गिरना समुद्री स्तर बढ़ाने का कारण बन सकता है। यदि यह रुझान जारी रहता है, तो यह वैश्विक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और तटीय देशों के लिए गंभीर खतरे का संकेत है। पश्चिमी अंटार्कटिका के इस क्षेत्र में ग्लेशियरों के तेज़ पिघलने से अंतरराष्ट्रीय समुद्री स्तर अनुमान में बढ़ोतरी देखी जा सकती है।
अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान दल के अनुसार, हेक्टोरिया ग्लेशियर की यह गति पिछली दो दशकों में दर्ज किए गए सामान्य ग्लेशियर पीछे हटने की गति से कई गुना अधिक है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि ग्लेशियरों की यह गति अनियंत्रित बनी रहती है, तो आने वाले दशकों में समुद्र के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। इससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ और भूजल संकट जैसी समस्याएं गंभीर रूप से बढ़ सकती हैं।
अनुसंधान में यह भी पाया गया कि ग्लेशियर के पीछे खिसकने से अंटार्कटिका के बर्फीले क्षेत्र की संरचना बदल रही है। ढहने वाले बर्फीले हिस्सों का पानी समुद्र में मिलकर समुद्री प्रवाह और समुद्री तापमान को प्रभावित कर रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस बदलाव से वैश्विक मौसम प्रणाली पर भी असर पड़ सकता है, जिसमें समुद्री तूफान, तूफानी हवाओं और मौसमी असंतुलन शामिल हैं।
विशेषज्ञ इस स्थिति को गंभीर मानते हुए वैश्विक जलवायु परिवर्तन के खिलाफ ठोस कदम उठाने की अपील कर रहे हैं। उनका कहना है कि औद्योगिक देशों को उत्सर्जन घटाने और ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कार्रवाई करनी होगी। हेक्टोरिया ग्लेशियर का यह रिकॉर्ड न केवल विज्ञान के लिए चुनौती है, बल्कि यह दुनिया के हर नागरिक के लिए चेतावनी भी है कि पर्यावरणीय संरक्षण और सतत विकास पर ध्यान देना अब अनिवार्य हो गया है।
कुल मिलाकर, हेक्टोरिया ग्लेशियर का 15 महीनों में 25 किलोमीटर पीछे खिसकना वैश्विक जलवायु संकट की गंभीरता को उजागर करता है। यह न केवल अंटार्कटिका के परिदृश्य में बदलाव ला रहा है, बल्कि समुद्री स्तर, तटीय जीवन और अंतरराष्ट्रीय मौसम प्रणाली पर भी लंबी अवधि के प्रभाव डाल सकता है।