करीब चार साल से जारी रूस–यूक्रेन युद्ध को लेकर एक बार फिर कूटनीतिक हलचल तेज हो गई है। नाटो की सदस्यता और डोनबास क्षेत्र के भविष्य को लेकर संभावित समझौते के संकेत मिलने से संघर्ष के थमने की संभावना बढ़ती नजर आ रही है। अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थों और कुछ पश्चिमी देशों की सक्रियता के बीच यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि दोनों पक्ष सीमित लेकिन व्यावहारिक समाधान की ओर बढ़ सकते हैं।
सूत्रों के मुताबिक, प्रस्तावित फार्मूले के तहत यूक्रेन की नाटो सदस्यता को लेकर समयबद्ध या सशर्त मॉडल पर विचार किया जा रहा है। इसमें तत्काल पूर्ण सदस्यता के बजाय सुरक्षा गारंटी, क्षेत्रीय स्थिरता और भविष्य में जनमत आधारित फैसले जैसे विकल्प शामिल हो सकते हैं। रूस लंबे समय से यूक्रेन की नाटो सदस्यता का विरोध करता रहा है, जबकि कीव इसे अपनी सुरक्षा के लिए जरूरी मानता है। ऐसे में बीच का रास्ता निकालने की कोशिशें तेज हुई हैं।
डोनबास क्षेत्र, जो युद्ध का केंद्र रहा है, उसके भविष्य पर भी बातचीत के संकेत मिले हैं। चर्चा है कि डोनबास के कुछ हिस्सों में विशेष स्वायत्तता, स्थानीय प्रशासन को अधिक अधिकार और अंतरराष्ट्रीय निगरानी में चुनाव जैसे विकल्पों पर सहमति बन सकती है। हालांकि यूक्रेन अपनी संप्रभुता से किसी भी तरह के समझौते को लेकर सतर्क है, वहीं रूस वहां रूसी-भाषी आबादी की सुरक्षा को प्रमुख मुद्दा बताता रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लंबा युद्ध दोनों देशों के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी भारी पड़ा है। ऊर्जा संकट, खाद्य आपूर्ति में बाधा और रक्षा खर्च में बढ़ोतरी ने कई देशों को प्रभावित किया है। ऐसे में अमेरिका, यूरोपीय संघ और तुर्की जैसे मध्यस्थ देश युद्धविराम और स्थायी समाधान की दिशा में दबाव बना रहे हैं।
हाल के महीनों में मोर्चे पर किसी बड़े निर्णायक बदलाव के संकेत नहीं मिले हैं। सैन्य थकान, आर्थिक दबाव और घरेलू असंतोष ने दोनों पक्षों को कूटनीति की ओर देखने के लिए मजबूर किया है। इसी पृष्ठभूमि में युद्धविराम, कैदियों की अदला-बदली और मानवीय गलियारों जैसे छोटे लेकिन अहम कदमों को व्यापक समझौते की भूमिका के तौर पर देखा जा रहा है।
हालांकि चुनौतियां अभी भी कम नहीं हैं। यूक्रेन चाहता है कि किसी भी समझौते में उसकी क्षेत्रीय अखंडता और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा गारंटी स्पष्ट हों। वहीं रूस प्रतिबंधों में राहत और नाटो के विस्तार पर ठोस आश्वासन की मांग कर सकता है। ऐसे में बातचीत का रास्ता आसान नहीं माना जा रहा।
फिर भी, मौजूदा संकेत बताते हैं कि युद्ध के बजाय संवाद को प्राथमिकता देने की इच्छा बढ़ रही है। अगर नाटो सदस्यता और डोनबास जैसे संवेदनशील मुद्दों पर संतुलित समझौता होता है, तो यह न सिर्फ रूस–यूक्रेन युद्ध को रोकने की दिशा में बड़ा कदम होगा, बल्कि यूरोप और दुनिया के लिए भी स्थिरता का नया अध्याय खोल सकता है।