इजराइल-हमास युद्ध की आंच अभी पूरी तरह ठंडी भी नहीं हुई थी कि इजराइली राजनीति में एक नया भूचाल आ गया। ‘कतरगेट’ नाम से सामने आए कथित घोटाले ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की मुश्किलें अपने ही देश में बढ़ा दी हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा, युद्धकालीन नेतृत्व और विदेशी प्रभाव जैसे संवेदनशील मुद्दों के बीच यह मामला नेतन्याहू सरकार की साख और निर्णय प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
मीडिया रिपोर्टों और जांच एजेंसियों के खुलासों के मुताबिक, कतर से जुड़े कथित आर्थिक और कूटनीतिक संपर्कों को लेकर नेतन्याहू के करीबी सहयोगियों की भूमिका संदेह के घेरे में है। आरोप हैं कि युद्ध और कूटनीतिक दबाव के दौर में कतर के हितों को साधने की कोशिशें हुईं, जिनका असर नीति-निर्धारण और सार्वजनिक बयानबाजी पर पड़ा। हालांकि, नेतन्याहू ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे राजनीतिक साजिश करार दिया है।
इजराइल-हमास जंग के दौरान नेतन्याहू ने खुद को एक सख्त और निर्णायक नेता के रूप में पेश किया था। लेकिन युद्ध के बाद सामने आए ‘कतरगेट’ विवाद ने उनके नेतृत्व की विश्वसनीयता को झटका दिया है। विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार युद्ध का इस्तेमाल घरेलू असफलताओं और भ्रष्टाचार के आरोपों से ध्यान हटाने के लिए कर रही थी। अब जब युद्ध के बाद सवाल पूछे जा रहे हैं, तो सरकार के पास ठोस जवाबों की कमी दिखाई दे रही है।
इजराइल की जनता पहले ही लंबे समय से न्यायिक सुधारों, महंगाई और सुरक्षा नीतियों को लेकर बंटी हुई है। ऐसे में यह घोटाला जनता के असंतोष को और हवा दे सकता है। तेल अवीव और यरुशलम में सरकार विरोधी प्रदर्शनों की आहट फिर से सुनाई देने लगी है। कई विश्लेषकों का मानना है कि ‘कतरगेट’ नेतन्याहू के राजनीतिक करियर का सबसे कठिन मोड़ साबित हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस विवाद के निहितार्थ गंभीर हैं। कतर, जो एक ओर हमास से संवाद में भूमिका निभाता रहा है, वहीं दूसरी ओर पश्चिमी देशों के साथ उसके रणनीतिक रिश्ते हैं। ऐसे में इजराइल की आंतरिक राजनीति में कतर के कथित प्रभाव के आरोप क्षेत्रीय कूटनीति को और जटिल बना सकते हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों की नजर भी इस पूरे घटनाक्रम पर टिकी हुई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर जांच का दायरा बढ़ता है और नेतन्याहू के करीबी घेरे तक आरोप पुख्ता होते हैं, तो प्रधानमंत्री के लिए सत्ता में बने रहना और मुश्किल हो सकता है। फिलहाल, नेतन्याहू राजनीतिक और कानूनी—दोनों मोर्चों पर घिरते नजर आ रहे हैं। इजराइल-हमास जंग के बाद पैदा हुई यह नई चुनौती बताती है कि युद्ध के मैदान से ज्यादा कठिन लड़ाई कभी-कभी अपने ही घर में लड़नी पड़ती है।