अरावली पहाड़ियों से जुड़ा एक अहम मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने इस विषय की गंभीरता को देखते हुए तीन जजों की पीठ गठित की है, जो आने वाले दिनों में इस मामले की सुनवाई करेगी। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े इस प्रकरण को लेकर केंद्र, राज्य सरकारों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं की नजरें अदालत के फैसले पर टिकी हुई हैं।
दरअसल, अरावली क्षेत्र में खनन गतिविधियों, अवैध निर्माण और पर्यावरणीय क्षति को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। पर्यावरणविदों का तर्क है कि अरावली पहाड़ियां उत्तर भारत के लिए एक प्राकृतिक ढाल हैं, जो प्रदूषण नियंत्रण, भूजल संरक्षण और जलवायु संतुलन में अहम भूमिका निभाती हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में किसी भी तरह की अनियंत्रित गतिविधि भविष्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है।
मामले के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के बाद यह उम्मीद जताई जा रही है कि अब इस पर स्पष्ट और सख्त दिशा-निर्देश सामने आ सकते हैं। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट अरावली क्षेत्र में खनन और निर्माण पर चिंता जता चुका है और कई बार राज्यों को पर्यावरणीय नियमों का सख्ती से पालन करने के निर्देश दे चुका है। हालांकि, जमीनी स्तर पर इन आदेशों के पालन को लेकर सवाल उठते रहे हैं।
तीन जजों की बेंच इस बात की समीक्षा करेगी कि क्या मौजूदा गतिविधियां पर्यावरण संरक्षण कानूनों के अनुरूप हैं या नहीं। साथ ही यह भी देखा जाएगा कि केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों ने अरावली को बचाने के लिए अब तक क्या कदम उठाए हैं। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह सुनवाई सिर्फ अरावली तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि देशभर में पर्यावरण से जुड़े मामलों के लिए एक नजीर भी बन सकती है।
अरावली का मुद्दा केवल कानूनी या प्रशासनिक नहीं, बल्कि सार्वजनिक हित से भी जुड़ा हुआ है। बढ़ता प्रदूषण, जल संकट और बदलता मौसम पहले ही लोगों की जिंदगी को प्रभावित कर रहा है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह कदम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।
अब सबकी नजरें तीन जजों की पीठ की सुनवाई और उसके बाद आने वाले फैसले पर टिकी हैं, जो तय करेगा कि अरावली का भविष्य किस दिशा में जाएगा।