‘बॉर्डर खोल दो, हमें बचा लो’—यह दर्दभरी अपील इन दिनों बांग्लादेश में फंसे हिंदू समुदाय की आवाज़ बन गई है। हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि वहां रहने वाले कई हिंदू परिवार खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और भारत सरकार से मानवीय मदद की गुहार लगा रहे हैं। सोशल मीडिया और विभिन्न मानवाधिकार मंचों पर सामने आ रही रिपोर्टों ने इस मुद्दे को एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय ध्यान के केंद्र में ला दिया है।
सूत्रों और स्थानीय संगठनों के अनुसार, बांग्लादेश के कुछ इलाकों में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर दबाव, डर और असुरक्षा का माहौल बढ़ा है। कई परिवारों का कहना है कि वे लंबे समय से भय के साये में जी रहे हैं। मंदिरों और धार्मिक स्थलों को लेकर तनाव की खबरें भी सामने आई हैं, जिससे समुदाय में चिंता और गहराती जा रही है। इन हालात में लोगों की मांग है कि भारत सरकार मानवीय आधार पर हस्तक्षेप करे।
भारत-बांग्लादेश सीमा से सटे क्षेत्रों में रहने वाले कुछ लोगों ने दावा किया है कि सीमा पार करने की कोशिशें बढ़ी हैं, लेकिन कड़े सुरक्षा इंतजामों के चलते हालात और जटिल हो गए हैं। पीड़ित परिवारों का कहना है कि वे शरण नहीं, बल्कि सुरक्षा और सम्मान के साथ जीवन चाहते हैं। उनका आग्रह है कि दोनों देशों के बीच कूटनीतिक स्तर पर बात हो और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
इस मुद्दे पर भारत में भी राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं तेज हो गई हैं। कई संगठनों और नेताओं ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह बांग्लादेश सरकार से बातचीत कर हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का ठोस आश्वासन ले। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इस विषय को उठाने की मांग की जा रही है, ताकि मानवीय संकट को गंभीरता से लिया जा सके।
कूटनीतिक जानकारों का मानना है कि भारत और बांग्लादेश के संबंध ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे हैं, लेकिन ऐसे संवेदनशील मामलों में संतुलित और संवेदनशील कूटनीति की जरूरत होती है। किसी भी कदम से पहले क्षेत्रीय स्थिरता, अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवीय मूल्यों को ध्यान में रखना जरूरी है।
फिलहाल, बांग्लादेश में फंसे हिंदू परिवारों की उम्मीदें भारत की ओर टिकी हैं। उनकी अपील सिर्फ एक देश की सीमा पार करने की नहीं, बल्कि डर से मुक्ति और सुरक्षित भविष्य की है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि इस मानवीय संकट पर भारत और बांग्लादेश किस तरह का रास्ता अपनाते हैं और अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा को लेकर क्या ठोस कदम उठाए जाते हैं।