भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत और यूरोपीय संघ के बीच रणनीतिक साझेदारी इन दिनों एक नए दौर में प्रवेश कर चुकी है। बदलती वैश्विक स्थितियाँ, जैसे यूक्रेन युद्ध, ऊर्जा संकट, जलवायु परिवर्तन और प्रौद्योगिकीय उथल-पुथल के बीच, दोनों पक्ष एक-दूसरे के पूरक साझेदार के रूप में उभर रहे हैं। हाल ही में यूरोपीय संघ द्वारा घोषित 2030 तक 800 बिलियन यूरो के रक्षा निवेश की योजना भारत के लिए विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण बन गई है, क्योंकि यह उसकी बढ़ती रक्षा निर्माण क्षमता और निर्यात रणनीति के अनुकूल अवसर प्रस्तुत करती है। भारत के रक्षा निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो अब 2.76 बिलियन डॉलर के आँकड़े को पार कर चुका है। ऐसे में यूरोप, जहाँ रणनीतिक स्वायत्तता की माँग और सुरक्षा चिंताएँ बढ़ रही हैं, भारत को एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में देख रहा है। यह सहयोग दोनों के लिए एक वैश्विक शक्ति संतुलन को साधने और बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था को मजबूत करने का अवसर बनता जा रहा है। भारत-ईयू संबंधों की जड़ें 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद स्थापित राजनयिक संवाद में हैं। प्रारंभिक वर्षों में भारत की गुटनिरपेक्ष विदेश नीति और उपनिवेशवाद-विरोधी दृष्टिकोण ने दोनों पक्षों को करीब रखा। हालांकि, उस समय यूरोप की प्राथमिकताएँ सीमित थीं और भारत ने भी मुख्य रूप से अपने पारंपरिक साझेदारों – जैसे सोवियत संघ – के साथ गहरे संबंध बनाए रखे। शीत युद्ध की समाप्ति और सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत ने वैश्विक आर्थिक प्रणाली में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू की। 1990 के दशक में भारत ने "पूर्व की ओर देखो" नीति अपनाई और दक्षिण-दक्षिण सहयोग को प्राथमिकता दी। इसी समय, यूरोप के मध्य और पूर्वी हिस्से के देशों के साथ भारत के संबंधों में आर्थिक कूटनीति को बढ़ावा मिला। 2004 में भारत और ईयू के बीच रणनीतिक साझेदारी की औपचारिक स्थापना हुई, जिसने आपसी सहयोग को नई दिशा और गहराई दी। इस साझेदारी ने रक्षा, शिक्षा, ऊर्जा, सूचना प्रौद्योगिकी, और नवाचार के क्षेत्र में परस्पर हितों को बढ़ाया। पोलैंड, चेक गणराज्य, स्लोवाकिया और हंगरी जैसे देश भारत के लिए यूरोप में प्रमुख साझेदार बनकर उभरे। 2010 के बाद के दशक में भारत की विदेश नीति में बहुपक्षीयता और रणनीतिक विविधता का प्रभाव बढ़ा। यूरोपीय संघ भारत के लिए एक प्रमुख व्यापारिक और तकनीकी सहयोगी बन गया। दोनों पक्षों ने वैश्विक मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, साइबर सुरक्षा, और सतत विकास पर एक साझा दृष्टिकोण विकसित किया। 2016 में ‘स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु साझेदारी’ की शुरुआत हुई, जो नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु अनुकूलन और पर्यावरणीय सततता के क्षेत्रों में सहयोग को दर्शाती है। हाल ही के वर्षों में यह साझेदारी और अधिक रणनीतिक हो गई है। भारत और यूरोपीय संघ दोनों ही बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अपनी स्थिति को परिभाषित करने के लिए साझा हितों और मूल्यों के आधार पर गठबंधन कर रहे हैं। डिजिटल तकनीकों, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा संरक्षण, और साइबर नीति जैसे क्षेत्रों में यूरोप की नीतियाँ भारत के लिए तकनीकी सहयोग का एक नया मार्ग खोलती हैं। भारत और ईयू के बीच रक्षा और सुरक्षा सहयोग को लेकर नई ऊर्जा देखी जा रही है। रक्षा औद्योगिक सहयोग, सह-उत्पादन, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, संयुक्त अनुसंधान एवं विकास, और सैन्य अभ्यास जैसे क्षेत्रों में साझा रुचि उभर रही है। भारत यूरोप की रक्षा आवश्यकताओं का एक भरोसेमंद भागीदार बन सकता है, खासकर जब यूरोपीय देश अमेरिका-निर्भरता से हटकर रणनीतिक आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ना चाहते हैं। हालाँकि, साझेदारी में कुछ अवरोधक भी हैं। भारत और ईयू के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत कई वर्षों से जारी है, लेकिन इसमें अब तक ठोस प्रगति नहीं हुई है। इसके अलावा, डेटा संरक्षण, बौद्धिक संपदा अधिकार, श्रम और पर्यावरण मानकों पर दोनों पक्षों की सोच में अंतर भी अक्सर गतिरोध पैदा करता है। इसके बावजूद, भारत के पास यूरोपीय संघ के साथ साझेदारी को मजबूत करने के कई अवसर हैं। तकनीकी नवाचार, डिजिटल परिवर्तन, हरित ऊर्जा, और रणनीतिक बुनियादी ढाँचे के क्षेत्रों में सहयोग को आगे बढ़ाया जा सकता है। एक समग्र प्रवासन नीति और गतिशीलता समझौता भारत-ईयू संबंधों को और मजबूत बना सकता है। रक्षा सहयोग में भारत को एयरोस्पेस, साइबर सुरक्षा, और रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में संयुक्त उत्पादन और तकनीकी साझेदारी को बढ़ावा देना चाहिए। इससे भारत की घरेलू रक्षा उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी और वह वैश्विक आपूर्ति शृंखला का एक अहम हिस्सा बन सकेगा। यूरोपीय संघ भी इससे लाभान्वित होगा, क्योंकि वह अमेरिका पर अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए निर्भरता कम करने की दिशा में काम कर रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका को देखते हुए यूरोपीय संघ अब उसे इस क्षेत्र में एक रणनीतिक सहयोगी मानने लगा है। समुद्री सुरक्षा, आपदा प्रबंधन, और मुक्त नौवहन की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भारत-ईयू साझेदारी महत्वपूर्ण हो सकती है। साथ ही, खुफिया साझाकरण और आतंकवाद से निपटने के लिए समन्वित रणनीति तैयार की जा सकती है। अंततः यह कहा जा सकता है कि भारत और यूरोपीय संघ की रणनीतिक साझेदारी एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। यदि दोनों पक्ष आपसी विश्वास, सहकार और साझा हितों के आधार पर आगे बढ़ते हैं, तो यह सहयोग वैश्विक व्यवस्था में संतुलन और स्थायित्व लाने में अहम भूमिका निभा सकता है।