Thursday, July 31, 2025
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संपादकीय

Small businesses, big hopes: India's inclusive and sustainable future through MSMEs: छोटे उद्योग, बड़ी उम्मीदें: एम एस एम ई के जरिए भारत का समावेशी और टिकाऊ भविष्य

June 13, 2025 09:45 PM

भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़  

जी हां भारत का एम एस एम ई क्षेत्र  तीव्र गति से प्रगति कर रहा है, जहाँ ऋण प्रवृत्ति में वार्षिक 13% की वृद्धि दर्ज की गयी है और यह वृद्धि स्तर उल्लेखनीय रूप से बढ़ चुके हैं। इस वृद्धि को नये उधारकर्त्ताओं  की मज़बूत माँग से बल मिला है, जो कुल नये ऋणों के लगभग आधे हिस्से के लिये उत्तरदायी हैं। इस उत्साहजनक प्रवृत्ति के बावजूद, एम एस एम ई क्षेत्र अब भी औपचारिक ऋण की सीमित उपलब्धता और जटिल नियामक प्रक्रियाओं जैसी दीर्घकालिक चुनौतियों से जूझ रहा है। भारत के लिये आवश्यक है कि यह इन संरचनात्मक समस्याओं का समाधान शीघ्रतापूर्वक समग्र नीतिगत सुधारों तथा व्यवसाय-हितैषी प्रक्रियाओं के सरलीकरण के माध्यम से करे, ताकि एम एस एम ई क्षेत्र सतत् आर्थिक विकास की रीढ़ के रूप में प्रभावी रूप से स्थापित हो सके। आईये समझते हैं कि कैसे भारत का एम एस एम ई क्षेत्र आर्थिक संवृद्धि को गति दे रहा है। एम एस एम ई भारत में सबसे बड़े रोज़गार प्रदाता हैं, जो कार्यबल में लगभग 60% का योगदान करते हैं। अनुमानतः 7.34 करोड़ एम एस एम ई के साथ, यह क्षेत्र भारत की युवा, विस्तारित श्रम शक्ति को समाहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अकेले प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम  ने सत्र 2023-24 में 89,118 उद्यमों को समर्थन दिया, जिससे 7.1 लाख से अधिक नौकरियों का सृजन हुआ। एम एस एम ई क्षेत्र भारत के निर्यात प्रदर्शन का एक प्रमुख चालक है, जिसने सत्र 2024-25 तक भारत के कुल निर्यात में 45.79% का योगदान दिया है। वैश्विक व्यापार में उनकी बढ़ती भागीदारी भारत के व्यापार संतुलन को सुधारने तथा वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में इसकी स्थिति को मज़बूत करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। एक प्रमुख नीतिगत पहल, सार्वजनिक क्रय नीति ने एम एस एम ई की सरकारी खरीद तक पहुँच को बढ़ाया है तथा निर्यात क्षमताओं को बढ़ावा दिया है। एम एस एम ई के लिये ऋण सुगम्यता सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों में से एक है, लेकिन मुद्रा योजना और ऋण गारंटी कोष  जैसी हालिया सरकारी पहल इस अंतर को समाप्त कर रही हैं। मुद्रा ऋण योजना ने एम एस एम ई को 5.41 लाख करोड़ रुपए (वित्त वर्ष 24) वितरित किये हैं, जिससे व्यवसायों को विस्तार और नवाचार करने में सशक्त बनाया गया है। संपार्श्विक-मुक्त ऋण की पेशकश और ऋण गारंटी का विस्तार करके, ये उपाय MSME को अत्यंत आवश्यक वित्त समर्थन प्रदान करते हैं। डिजिटल परिवर्तन और प्रौद्योगिकी का अंगीकरण डिजिटल परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, जो दक्षता और बाज़ार पहुँच में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण है।  लगभग 72% एम एस एम ई अब डिजिटल भुगतान को प्राथमिकता देते हैं, जिससे पारदर्शिता बढ़ती है और लेन-देन लागत कम होती है। यू पी आई इकोसिस्टम ने वर्ष 2024 में 23.48 लाख करोड़ रुपए मूल्य के लेन-देन संसाधित किये, जो इस क्षेत्र की बढ़ती डिजिटल भागीदारी और भविष्य में विकास की इसकी क्षमता को दर्शाता है। सरकार ने एम एस एम ई  के लिये अपने आवंटन में उल्लेखनीय वृद्धि की है, विकास को समर्थन देने के लिये वित्त वर्ष 2026 में 23,168 करोड़ रुपए का बजट आवंटन किया गया है। निवेश और टर्नओवर सीमा बढ़ाने तथा प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना शुरू करने जैसे सुधारों से कारीगरों, विशेषकर महिलाओं एवं ग्रामीण उद्यमियों को विशेष सहायता मिलेगी। एम एस एम ई क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण हैं, विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में। पारंपरिक उद्योगों के निधि पुनरुद्धार की योजना) जैसी योजनाओं ने पारंपरिक क्षेत्रों में बदलाव लाकर ग्रामीण कारीगरों की उत्पादकता बढ़ाई है। इसके अलावा, अकेले जम्मू और कश्मीर ने पी एम ई जी पी के तहत 3.56 लाख नौकरियाँ उत्पन्न कीं, जिससे क्षेत्रीय असमानताओं में काफी कमी आई। संवहनीयता एम एस एम ई  विकास के लिये केंद्रीय बन रही है, हरित प्रौद्योगिकी के अंगीकरण और पर्यावरण अनुकूल विनिर्माण में तेज़ी आ रही है। आत्मनिर्भर भारत ने एम एस एम ई को सौर ऊर्जा, ई वी बैटरी और पवन टर्बाइन में स्वच्छ तकनीक पहल सहित हरित विनिर्माण प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिये प्रोत्साहित किया है। राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन का ध्यान स्वच्छ प्रौद्योगिकी, जैसे सौर पी वी सेल और ई वी बैटरी पर केंद्रित है। भारत के एम एस एम ई क्षेत्र से जुड़े प्रमुख मुद्दों की बात करें तो इस में औपचारिक ऋण तक सीमित पहुँच, विनियामक और अनुपालन बोझ, कुशल श्रम की कमी, तकनीकी अंतर और डिजिटल डिवाइड, बाज़ार तक पहुँच और प्रतिस्पर्द्धा और अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना और रसद तथा उद्यमिता में लैंगिक असमानताएँ शामिल हैं। दूसरी ओर भारत के एम एस एम ई क्षेत्र की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये भारत कई उपाय अपना सकता है जैसे नियामक कार्यढाँचे का सरलीकरण, डिजिटल ऋण के माध्यम से वित्तीय सहायता को सुदृढ़ करना, कौशल एवं कार्यबल विकास पहल, एम एस एम ई  के लिये ई-कॉमर्स और डिजिटल मार्केटिंग को बढ़ावा देना, उन्नत अवसंरचना विकास, महिला उद्यमियों के लिये केंद्रित नीति, हरित एवं संधारणीय प्रथाओं को प्रोत्साहित करना और क्षेत्र-विशिष्ट ऋण कार्यक्रम, बेहतर बाज़ार आसूचना और निर्यात सहायता, सार्वजनिक-निजी सहयोग के माध्यम से नवाचार और अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना तथा कानूनी और बौद्धिक संपदा समर्थन में सुधार शामिल हैं। अंत में कह सकते हैं कि भारत की आर्थिक महाशक्ति बनने तक की यात्रा में, भारत का सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र अभूतपूर्व वृद्धि की क्षमता रखता है। वित्तीय सुगम्यता व कौशल की कमी और नियामकीय जटिलताओं जैसी चुनौतियों का समाधान करके, ये उद्यम नवाचार तथा बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन के प्रमुख वाहक बन सकते हैं। इन व्यवसायों को डिजिटल उपकरणों, लक्षित ऋण योजनाओं तथा उन्नत बुनियादी अवसंरचना से सशक्त बनाना, उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाएगा। समावेशिता और संधारणीयता को केंद्र में रखकर, एम एस एम ई वास्तव में भारत की भावी समृद्धि की रीढ़ बन सकते हैं।

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