भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
इस में कोई दो राय नहीं है कि भारत में वायु प्रदूषण एक गंभीर जनस्वास्थ्य और पर्यावरणीय संकट बन चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्टों के अनुसार, भारत के कई शहर वायु गुणवत्ता के मामले में दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिने जाते हैं। इस संकट के कारण प्रतिवर्ष लाखों लोगों की समय से पहले मृत्यु हो जाती है और अस्थमा, कैंसर, हृदय रोग जैसी बीमारियाँ लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे में अब यह केवल पर्यावरण का नहीं, बल्कि मानव अधिकारों का भी प्रश्न बन चुका है — क्या हर नागरिक को शुद्ध हवा में सांस लेने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए? सरकार अब इस दिशा में निर्णायक कदम उठाती दिख रही है। नीति निर्माताओं ने यह स्वीकार किया है कि वायु प्रदूषण को केवल औद्योगिक या यातायात नियंत्रण तक सीमित दृष्टिकोण से नहीं सुलझाया जा सकता। इसके लिए समग्र, बहु-आयामी रणनीति की आवश्यकता है जो स्वास्थ्य, पर्यावरण और आर्थिक प्रगति—तीनों को एक साथ साधे। भारत सरकार ने हाल ही में जो दृष्टिकोण अपनाया है, वह तीन प्रमुख स्तंभों पर आधारित है —लोग, पृथ्वी और लाभ। यह रणनीति सतत विकास लक्ष्यों के साथ भी मेल खाती है, विशेषतः एस डी जी-3 (स्वास्थ्य), एस डी जी -11 (सतत शहर) और एस डी जी -13 (जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई)। इसका उद्देश्य न केवल प्रदूषण को कम करना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि विकास और जनकल्याण के बीच संतुलन बना रहे। नई रणनीति में तकनीकी नवाचार को प्राथमिकता दी गई है। इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना, सौर और पवन ऊर्जा को मुख्यधारा में लाना, उद्योगों में ग्रीन टेक्नोलॉजी को अनिवार्य बनाना — ये सभी कदम प्रदूषण में भारी कमी ला सकते हैं। इसके अलावा, स्मार्ट सिटी मिशन के तहत वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों का विस्तार और रियल टाइम डेटा विश्लेषण को भी गति दी जा रही है। कई बार नीतियाँ बनती हैं, लेकिन क्रियान्वयन में ढिलाई प्रदूषण के समाधान में बाधा बनती है। नई नीति के तहत प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों और संस्थानों पर सख्त दंडात्मक कार्रवाई के प्रावधान शामिल किए गए हैं। राज्यों और शहरी निकायों को जवाबदेह बनाया गया है कि वे अपने-अपने क्षेत्र में वायु गुणवत्ता मानकों का पालन सुनिश्चित करें। सरकार मानती है कि बिना जनभागीदारी के यह लड़ाई अधूरी है। स्कूलों, कॉलेजों और शहरी/ग्रामीण समुदायों में जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, ताकि नागरिक स्वयं पर्यावरण की रक्षा में भागीदार बनें। हरियाली बढ़ाने, कचरा जलाने से रोकने और निजी वाहनों की बजाय सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को प्रोत्साहित करने जैसे प्रयासों को जनआंदोलन में बदलने की कोशिशें हो रही हैं। भारत अब वायु प्रदूषण को रोकने के लिए सिर्फ़ योजनाएँ नहीं बना रहा, बल्कि उन्हें धरातल पर उतारने की दिशा में निर्णायक कदम भी उठा रहा है। यह बदलाव नीतिगत सोच, तकनीकी नवाचार और जनभागीदारी का समुचित मिश्रण है। जब ' लोग, पृथ्वी और लाभ ' के बीच संतुलन साधा जाएगा, तभी शुद्ध हवा हर नागरिक का वास्तविक अधिकार बन पाएगा। इस नई नीति से आशा की एक नई किरण दिखती है — एक ऐसा भारत, जहाँ हर कोई बिना डर के खुलकर सांस ले सके।