भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
उत्तराखंड के हरिद्वार में धार्मिक आस्था के केंद्र माने जाने वाले मनसा देवी मंदिर के रास्ते पर 27 जुलाई, 2025 को हुई भगदड़ की घटना ने देश को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर कब सुधरेगा सिस्टम? कब जनता को आयेगी अकल। सावन माह के सोमवार की पूर्व संध्या पर दर्शन के लिए उमड़ी भारी भीड़ में अव्यवस्था और प्रशासनिक लापरवाही के चलते 8 श्रद्धालुओं की मौत हो गई, जबकि 35 से अधिक लोग घायल हो गए। यह हादसा न केवल प्रशासन की नाकामी का उदाहरण है, बल्कि श्रद्धालुओं की अनियंत्रित भीड़ और मंदिर प्रबंधन की तैयारियों पर भी सवाल खड़ा करता है। आइये समझते हैं कि आखिर यह हादसा कैसे हुआ? प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, सुबह से ही मंदिर मार्ग पर श्रद्धालुओं का भारी जमावड़ा शुरू हो गया था। जैसे-जैसे दोपहर हुआ, लोगों की संख्या हजारों में पहुंच गई। संकरे रास्ते और अव्यवस्थित कतारों में धक्का-मुक्की होने लगी, जिससे एक जगह भगदड़ मच गई। कई लोग एक-दूसरे पर गिर पड़े और देखते ही देखते मातम का माहौल बन गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस बल की संख्या बेहद कम थी और कोई स्पष्ट आपातकालीन योजना भी मौजूद नहीं थी। न तो रूट डायवर्जन था, न मेडिकल इमरजेंसी टीम की तैनाती। दूसरी ओर मंदिर प्रशासन पूरी घटना की जिम्मेवारी करंट लगने की अफवाह पर डाल रहा है। इस दर्दनाक हादसे में मरने वालों में तीन महिलाएं और दो मासूम बच्चे शामिल हैं। हरिद्वार के जिलाधिकारी ने कहा कि "प्रशासन ने तैयारी की थी, लेकिन भीड़ का दबाव अचानक असहनीय हो गया।" राज्य सरकार ने जांच के आदेश दे दिए हैं और मृतकों के परिजनों को ₹2-2 लाख तथा घायलों को ₹50-50,000 की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है। यह सच है कि हरिद्वार जैसे धार्मिक नगरों में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं, विशेषकर सावन, महाशिवरात्रि और नवरात्र जैसे पर्वों के दौरान। इसके बावजूद न तो स्थायी भीड़ नियंत्रण नीति बनाई जाती है और न ही तकनीकी समाधान अपनाए जाते हैं। प्रशासन, मंदिर ट्रस्ट और स्थानीय पुलिस – तीनों की सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि भीड़ को सुरक्षित और व्यवस्थित रखा जाए। फिर भी हर बार अव्यवस्था, ढुलमुल रवैये और असंवेदनशील प्रबंधन की पुनरावृत्ति होती है। गर हम इसके समाधान की बात करें तो दर्शन की संख्या को सीमित करने के लिए ऑनलाइन टाइम स्लॉट सिस्टम लागू किया जा सकता है।मंदिर मार्ग को एकतरफा किया जाए, और प्रमुख बिंदुओं पर सी सी टी वी तथा ड्रोन से निगरानी की व्यवस्था हो।पर्वों के दौरान अस्थायी कंट्रोल रूम व प्रशिक्षित मेडिकल स्टाफ अनिवार्य किया जाए।राज्य सरकार को धार्मिक ट्रस्टों के साथ मिलकर वार्षिक भीड़ नियंत्रण नीति लागू करनी चाहिए। इस पहले भी होते रहे हैं हादसे मगर हम ने कुछ नहीं सीखा। 2003 के नासिक कुंभ, 2013 के प्रयागराज रेलवे स्टेशन, 2014 के पटना गांधी मैदान और अब 2025 के मनसा देवी मंदिर हादसे से यही साबित होता है कि लापरवाही हमारी स्थायी रणनीति बन चुकी है।इस साल बड़ी भगदड़ की घटनाओं की बात करें तो हरिद्वार, जुलाई में 8 मरे, 35 घायल हुए, शिरडी, जून – 3 मरे, 20 घायल, भागलपुर, अप्रैल – 5 मरे, लखनऊ, मार्च – 40 घायल, जयपुर, जनवरी – 15 घायल। मनसा देवी मंदिर हादसा कोई सामान्य घटना नहीं, बल्कि व्यवस्था के ढांचे में गहराई से मौजूद खामियों की पहचान है। श्रद्धा जब भीड़ का रूप ले लेती है, तब उसे संभालने के लिए नियोजित प्रबंधन और आधुनिक तकनीक की जरूरत होती है। जब तक राज्य सरकारें और मंदिर प्रबंधन समय रहते नहीं जागते, तब तक ऐसे हादसे रुकने की उम्मीद नहीं की जा सकती।