भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
नेपाल एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता के चक्रव्यूह से निकलने का प्रयास करता दिखाई दे रहा है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे और काठमांडू की सड़कों पर फैली अव्यवस्था के बीच नेपाल में Gen-Z प्रदर्शनों के बीच सुशीला कार्की का नाम अंतरिम प्रधानमंत्री के तौर पर सबसे आगे उभरा है। वर्चुअल बैठक में 5000 से अधिक युवाओं ने उनका समर्थन किया। ओली के इस्तीफे के बाद पूर्व मुख्य न्यायाधीश कार्की को नई अंतरिम सरकार के नेतृत्व के लिए संभावित उम्मीदवार माना जा रहा है। यह नाम नेपाल के संवैधानिक और राजनीतिक इतिहास में नई ऊर्जा का संकेत है, क्योंकि कार्की देश की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश रह चुकी हैं और उनकी छवि निडर, पारदर्शी तथा न्यायप्रिय नेता के रूप में जानी जाती है। सवाल यह है कि अगर वे नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री बनती हैं तो यह पड़ोसी भारत के लिए क्या मायने रखता है? आगे बढ़ने से पहते आइये जानते हैं सुशीला कार्की के अब तक के सफर के बारे में। सुशीला कार्की 2016 में नेपाल की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश बनी थीं। अपने कार्यकाल में उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले दिए, जिनमें भ्रष्टाचार विरोधी कदम और सत्ता के दुरुपयोग पर रोकथाम प्रमुख रहे। उन्हें संविधान और कानून के प्रति गहरी निष्ठा रखने वाली शख्सियत माना जाता है। कार्की की पहचान किसी राजनीतिक दल की कठपुतली के रूप में नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष व्यक्तित्व के रूप में रही है। यही वजह है कि मौजूदा अस्थिरता के दौर में विभिन्न समूह उन्हें एक भरोसेमंद विकल्प के रूप में देख रहे हैं। यह सच है कि नेपाल में लगातार बदलती सरकारों, राजनीतिक दलों की आपसी खींचतान और युवाओं के उग्र प्रदर्शनों ने शासन व्यवस्था को अस्थिर कर दिया है। जनता अब ऐसे नेतृत्व की तलाश में है, जो न केवल राजनीतिक दलों से ऊपर उठकर फैसले ले सके बल्कि संविधान के ढांचे में रहकर स्थायित्व भी दे सके।
कार्की की साख और न्यायपालिका से जुड़ा उनका अनुभव उन्हें इस समय एक ‘सहमति वाली शख्सियत’ बना रहा है। यही कारण है कि काठमांडू की गलियों से लेकर अंतरराष्ट्रीय विश्लेषणों तक, उनका नाम चर्चा में है। दूसरी ओर इस में कोई दो राय नहीं है कि भारत और नेपाल का रिश्ता केवल राजनीतिक या कूटनीतिक नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आधार पर गहराई से जुड़ा हुआ है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में यह रिश्ता उतार-चढ़ाव से गुजरा है। सीमा विवाद, नक्शे को लेकर मतभेद और चीन की बढ़ती सक्रियता ने भारत-नेपाल संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया था। ऐसे में अगर सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री बनती हैं तो उनकी स्वतंत्र छवि भारत के लिए एक सकारात्मक अवसर हो सकती है। कार्की कानून और संविधान की पृष्ठभूमि से आती हैं। ऐसे में उनसे उम्मीद की जा सकती है कि वे विवादित मुद्दों को भावनात्मक और राजनीतिक दृष्टिकोण से हटकर, कानूनी व संवाद आधारित समाधान की दिशा में आगे बढ़ेंगी। नेपाल की राजनीति में चीन लगातार प्रभाव बढ़ा रहा है। ओली सरकार को चीन-समर्थक माना जाता रहा है। लेकिन कार्की जैसी स्वतंत्र सोच वाली नेता नेपाल को ‘संतुलित विदेश नीति’ की ओर ले जा सकती हैं, जिससे भारत-नेपाल संबंधों में नई जान फूँकने का अवसर मिलेगा। नेपाल की नई पीढ़ी पारदर्शिता और विकास चाहती है। कार्की का अब तक का रिकॉर्ड भ्रष्टाचार विरोधी और पारदर्शी प्रशासन का समर्थन करता है। अगर वे युवाओं की आकांक्षाओं को दिशा दे पाती हैं तो इसका सीधा लाभ भारत को भी मिलेगा, क्योंकि स्थिर नेपाल भारत के रणनीतिक हितों के लिए जरूरी है। हालाँकि यह मान लेना जल्दबाजी होगी कि कार्की की नियुक्ति से भारत-नेपाल संबंध तुरंत सुधर जाएंगे। नेपाल की राजनीति में जातीय समीकरण, क्षेत्रीय असंतोष और दलों की खींचतान बेहद गहरी है। कार्की को भी इन जटिलताओं से जूझना पड़ेगा। भारत को यह समझना होगा कि कार्की किसी दल विशेष के पक्ष में नहीं झुकेंगी। उनकी प्राथमिकता नेपाल के संवैधानिक मूल्यों को बचाना और जनता के विश्वास को कायम करना होगा। ऐसे में भारत को भी धैर्य और संतुलन से कदम बढ़ाने होंगे। काठमांडू से लेकर तराई तक लोग इस समय असमंजस में हैं। रोज़गार, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं की कमी ने युवाओं को सड़क पर ला दिया है। कार्की अगर अंतरिम प्रधानमंत्री बनती हैं, तो जनता उनसे पारदर्शी शासन और लोकतांत्रिक मूल्यों की बहाली की उम्मीद रखेगी। महिला नेतृत्व के रूप में उनका आना नेपाल में लैंगिक समानता की दिशा में भी एक मजबूत संदेश देगा। अंत में कह सकते हैं कि नेपाल इस समय जिस संकट से गुजर रहा है, उसमें सुशीला कार्की का नाम एक उम्मीद की तरह उभर रहा है। उनका अतीत बताता है कि वे संविधान और न्याय के रास्ते से समझौता नहीं करतीं। भारत के लिए यह एक सकारात्मक अवसर हो सकता है, बशर्ते दोनों देश आपसी मतभेदों को संवाद से सुलझाने की दिशा में कदम बढ़ाएँ। अगर कार्की वास्तव में अंतरिम प्रधानमंत्री बनती हैं, तो यह नेपाल की राजनीति में पारदर्शिता और संतुलन की नई शुरुआत होगी। भारत के लिए भी यह पड़ोसी देश के साथ रिश्तों को सुधारने और विश्वास बहाली का अहम मौका साबित हो सकता है।