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संपादकीय

Coral microatolls reveal the secret: Sea level in Indian Ocean is rising faster than expected, Maldives-Lakshadweep on the verge of sinking!: कोरल माइक्रोएटोल्स ने खोला राज़: हिंद महासागर में उम्मीद से तेज़ बढ़ रहा समुद्र-स्तर, डूबने की कगार पर मालदीव-लक्षद्वीप !

September 03, 2025 07:44 PM

 भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़ 

समुद्र-स्तर में हो रही वृद्धि को लेकर वैज्ञानिक समुदाय लंबे समय से चिंतित रहा है, लेकिन हाल ही में किए गए कोरल माइक्रोएटोल्स पर शोध ने इस चिंता को और गहरा कर दिया है। अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि मध्य हिंद महासागर में समुद्र-स्तर की बढ़ोतरी पहले ही शुरू हो चुकी थी और यह पहले की अपेक्षाओं से कहीं अधिक तेज़ गति से हो रही है। यह निष्कर्ष विशेष रूप से मालदीव और लक्षद्वीप जैसे छोटे द्वीपीय देशों और द्वीपसमूहों के लिए एक गंभीर चेतावनी है। आज जब जलवायु परिवर्तन वैश्विक बहस का केंद्र बन चुका है, तब हिंद महासागर के इन नाजुक द्वीपीय क्षेत्रों पर मंडरा रहा संकट हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि यदि अब भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में स्थिति और भयावह हो सकती है। कोरल माइक्रोएटोल्स वास्तव में कोरल रीफ का ही एक विशेष रूप होते हैं। ये गोलाकार संरचनाएँ पानी की सतह के बेहद करीब पाई जाती हैं और समुद्र-स्तर के उतार-चढ़ाव को अपने विकास क्रम में सहेजकर रखती हैं। यही कारण है कि वैज्ञानिक इन्हें "प्राकृतिक समुद्र-स्तर रिकॉर्डर" कहते हैं। नए शोध में इन माइक्रोएटोल्स का विश्लेषण करके यह पाया गया कि हिंद महासागर के मध्य भाग में समुद्र-स्तर पिछले कुछ दशकों में लगातार बढ़ता रहा है। यह वृद्धि मात्र धीरे-धीरे नहीं, बल्कि अपेक्षा से कहीं तेज़ रही। इसका अर्थ है कि वैश्विक ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) और हिमनदों के पिघलने के चलते समुद्र-स्तर बढ़ोतरी की रफ्तार अब पहले की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक हो चुकी है। मालदीव और लक्षद्वीप जैसे द्वीपसमूह दुनिया के उन सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में गिने जाते हैं जहाँ समुद्र-स्तर वृद्धि का प्रभाव तुरंत दिखाई देता है। इनकी भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि इनका अधिकांश भूभाग समुद्र-स्तर से मात्र एक-दो मीटर ऊँचाई पर स्थित है। इस वजह से जरा-सी भी बढ़ोतरी इन द्वीपों के अस्तित्व को खतरे में डाल सकती है। मालदीव के मामले में अनुमान है कि यदि आने वाले दशकों में समुद्र-स्तर इसी रफ्तार से बढ़ा, तो वहाँ का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न हो सकता है। लक्षद्वीप की स्थिति भी अलग नहीं है। वहाँ की आबादी, कृषि और मत्स्य-आधारित आजीविका पर सीधा असर पड़ सकता है। यह स्थिति न केवल पर्यावरणीय संकट है बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अस्तित्व पर भी गंभीर प्रश्न खड़ा करती है। इन निष्कर्षों का सबसे बड़ा संदेश यही है कि तटीय और द्वीपीय क्षेत्रों में अब जलवायु-अनुकूल अवसंरचना विकसित करना समय की मांग है। तटीय सुरक्षा बांध, मैंग्रोव वनों का संरक्षण और कृत्रिम रीफ जैसी पहलें समुद्र के खतरों को कुछ हद तक कम कर सकती हैं। भवन निर्माण और शहरी नियोजन में ऐसे डिज़ाइन अपनाने होंगे जो समुद्र-स्तर वृद्धि और चक्रवातों जैसी आपदाओं का सामना कर सकें। जल आपूर्ति और स्वच्छता जैसी बुनियादी सेवाओं को भी नई परिस्थितियों के अनुरूप ढालना होगा। सिर्फ अवसंरचना ही नहीं, बल्कि सतत् तटीय नीतियों की भी उतनी ही आवश्यकता है। तटीय प्रबंधन में स्थानीय समुदायों को शामिल करना, संसाधनों का टिकाऊ उपयोग करना और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना अब प्राथमिकता होनी चाहिए। मत्स्य उद्योग को इस तरह संचालित किया जाए कि समुद्री जैवविविधता को नुकसान न पहुँचे।पर्यटन क्षेत्र, जो मालदीव और लक्षद्वीप की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, को भी सतत् पर्यटन मॉडल की ओर ले जाना होगा। तटीय भूमि उपयोग नीतियों में भविष्य के खतरों को ध्यान में रखकर बदलाव करना अनिवार्य है। यह स्पष्ट है कि समुद्र-स्तर वृद्धि की जड़ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन है। जब तक वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन में ठोस कमी नहीं लाई जाएगी, तब तक मालदीव, लक्षद्वीप और ऐसे अन्य द्वीपीय क्षेत्र निरंतर संकट में बने रहेंगे। भारत सहित हिंद महासागर के सभी तटीय देशों को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के वादे सिर्फ कागज़ों तक सीमित न रहें। समुद्र-स्तर वृद्धि के सटीक पूर्वानुमान ही नीति निर्माण और अनुकूलन रणनीतियों का आधार बन सकते हैं। आज उपग्रह डेटा, जियोमैपिंग और कोरल माइक्रोएटोल्स के अध्ययन से हमें कुछ अनुमान अवश्य मिलते हैं, लेकिन इनका और अधिक परिष्कृत होना आवश्यक है। भविष्य के लिए मॉडल तैयार करने में स्थानीय भूगोल, ज्वार-भाटा और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रीय प्रभावों को शामिल करना होगा। इससे सरकारें और स्थानीय प्रशासन अधिक सटीक योजनाएँ बना सकेंगे और लोगों को समय रहते सुरक्षित करने की दिशा में काम कर पाएँगे। अंत में कह सकते हैं कि कोरल माइक्रोएटोल्स पर हुआ यह शोध हमें एक गहरी सीख देता है। यह सिर्फ वैज्ञानिक खोज नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि हिंद महासागर क्षेत्र के द्वीपों और तटीय इलाकों का भविष्य समुद्र-स्तर की अनिश्चित बढ़ोतरी पर टिका है। मालदीव और लक्षद्वीप जैसे द्वीपसमूहों को बचाने के लिए अब हमें जलवायु-अनुकूल अवसंरचना, सतत् तटीय नीतियाँ, उत्सर्जन में कमी और परिष्कृत पूर्वानुमानों पर गंभीरता से काम करना होगा। यह केवल स्थानीय निवासियों का मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरे वैश्विक समुदाय के लिए चेतावनी है।

 

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