भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत सरकार ने हाल ही में वस्तु एवं सेवा कर की दरों में अहम बदलाव किए हैं। यह फैसला आम जनता से लेकर उद्योग जगत तक सभी पर असर डालेगा। रोज़मर्रा की जरूरतों की वस्तुएं सस्ती होंगी तो कुछ लग्ज़री और सेवा क्षेत्र की चीज़ों पर जेब ढीली करनी पड़ेगी। सवाल यह है कि इन बदलावों का असर साधारण उपभोक्ता, उद्योगपति और समग्र अर्थव्यवस्था पर कैसा होगा? आईये समझते हैं कि आखिर वस्तु एवं सेवा कर में बदलाव क्यों ज़रूरी है। याद रहे 2017 में वस्तु एवं सेवा कर लागू होने के बाद इसका उद्देश्य एकीकृत कर प्रणाली स्थापित करना था ताकि "एक राष्ट्र, एक टैक्स" का सपना साकार हो। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं पर अलग-अलग वर्गीकरण के कारण कई विसंगतियां पैदा हुईं। आम लोगों की शिकायत थी कि ज़रूरत की चीज़ें महंगी पड़ रही हैं। उद्योग जगत को कई दरों के कारण भ्रम और अतिरिक्त लागत झेलनी पड़ रही थी। सरकार को राजस्व संतुलन बनाए रखने की चुनौती थी। इन्हीं कारणों से वस्तु एवं सेवा कर परिषद ने हालिया बैठक में दरों में संशोधन कर स्पष्टता और संतुलन लाने का निर्णय लिया। गौरतलब है कि नए बदलावों के बाद कई ऐसी वस्तुएं और सेवाएं सस्ती होंगी जो आम उपभोक्ता की जिंदगी से सीधा जुड़ी हैं। सिलाई मशीन, धागे, सूई जैसी वस्तुओं पर वस्तु एवं सेवा कर घटाकर 5% कर दिया गया है। इससे कपड़ा उद्योग और छोटे दर्जियों को राहत मिलेगी। पैक्ड दही, पनीर, लस्सी और कुछ अनाजों पर टैक्स दर कम हुई है। इससे ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के उपभोक्ताओं को सीधा फायदा होगा। ट्रैक्टर के पुर्जों और कुछ कृषि औजारों पर वस्तु एवं सेवा कर घटाया गया है। इसका असर खेती की लागत कम करने में होगा। बच्चों की पढ़ाई से जुड़ी कई सामग्री पर टैक्स घटाया गया है। दूसरी ओर जहां आम वस्तुएं सस्ती हुईं, वहीं कुछ लग्ज़री या उच्च श्रेणी की सेवाओं पर टैक्स बढ़ा दिया गया है। बिज़नेस क्लास और इंटरनेशनल ट्रैवल पर वस्तु एवं सेवा कर दर बढ़ाई गई है। अब हवाई यात्रा महंगी हो जाएगी। होटल उद्योग – पाँच सितारा और प्रीमियम कैटेगरी होटलों पर कर दरें बढ़ाई गई हैं। इसका असर पर्यटन और लग्ज़री उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। एस यू वीज़ और लग्ज़री गाड़ियों पर अतिरिक्त टैक्स लगाया गया है, जिससे यह वाहन आम उपभोक्ता की पहुंच से और दूर हो जाएंगे। कुछ हाई-एंड गैजेट्स और उपकरण महंगे होंगे। आम उपभोक्ता पर इसके असर की बात करें तो दूध उत्पाद, सिलाई-सामग्री और कुछ कृषि उपकरण सस्ते होने से ग्रामीण और मध्यम वर्ग को राहत मिलेगी। हवाई टिकट, लग्ज़री होटल और गाड़ियां महंगी होने से ऊपरी वर्ग पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा। सामान्य परिवार को यह बदलाव मिश्रित असर देगा। घरेलू बजट में कुछ राहत जरूर मिलेगी, लेकिन यात्रा और गैजेट्स पर खर्च बढ़ेगा। व्यापारियों और उद्योगपतियों ने इस बदलाव का स्वागत भी किया है और आलोचना भी। वस्तु एवं सेवा कर दरों में कमी से बुनकरों और छोटे दर्जियों को सीधा लाभ मिलेगा। इससे रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे। लागत घटने से किसानों को फायदा होगा और खाद्य पदार्थों की कीमतों पर दबाव कम होगा। पर्यटन और एविएशन सेक्टर पर टैक्स बढ़ने से उद्योग को नुकसान की आशंका है, खासकर उस समय जब कोविड-19 के बाद से सेक्टर पहले ही चुनौतियों से जूझ रहा है। सरकार का मानना है कि यह बदलाव राजस्व संतुलन और सामाजिक न्याय को ध्यान में रखकर किया गया है। ज़रूरत की चीज़ें सस्ती करके सरकार ने गरीब और मध्यम वर्ग को राहत दी है।लग्ज़री और प्रीमियम सेवाओं को महंगा कर राजस्व बढ़ाने की कोशिश की गई है। सरकार का यह भी दावा है कि इन बदलावों से टैक्स प्रणाली और सरल होगी और चोरी के मामले कम होंगे। गर हम इसके अर्थव्यवस्था पर असर की बात करें तो आवश्यक वस्तुएं सस्ती होने से महंगाई पर कुछ हद तक लगाम लगेगी। लग्ज़री और प्रीमियम वस्तुओं पर टैक्स बढ़ने से सरकारी खजाना मजबूत होगा। आम उपभोक्ता सस्ती वस्तुएं ज्यादा खरीदेगा जबकि महंगी सेवाओं पर खर्च घट सकता है। कपड़ा और कृषि क्षेत्र में मांग बढ़ने से रोजगार सृजन की संभावना है। हालांकि बदलावों से राहत मिलेगी, लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली की जटिलता अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई। छोटे व्यापारी अब भी रिटर्न दाखिल करने की प्रक्रिया को बोझिल मानते हैं। टैक्स चोरी और इनपुट टैक्स क्रेडिट से जुड़ी दिक्कतें बनी हुई हैं। राज्यों और केंद्र के बीच राजस्व साझा करने का विवाद भी पूरी तरह हल नहीं हुआ है। सूई से लेकर हवाई जहाज़ तक वस्तु एवं सेवा कर दरों में किया गया यह बदलाव आम जनता के लिए राहत और उद्योग जगत के लिए चुनौती दोनों लेकर आया है। गरीब और मध्यम वर्ग को रोज़मर्रा की वस्तुओं में राहत मिलेगी, लेकिन लग्ज़री और यात्रा सेवाओं पर खर्च बढ़ेगा। सरकार ने जहां राजस्व संतुलन साधने की कोशिश की है, वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि आगे चलकर वस्तु एवं सेवा कर को और सरल और पारदर्शी बनाना ही असली सुधार होगा।