भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत में एक बड़ा झटका तब लगा जब संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने भारत से आयातित वस्तुओं पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ़ लगाने का आधिकारिक नोटिफिकेशन जारी कर दिया। यह बढ़ा हुआ शुल्क 27 अगस्त, 2025 को सुबह 12:01 बजे (ईएसटी) के बाद अमेरिका में खपत के लिए आयात होने वाले या गोदाम से निकाले जाने वाले उत्पादों पर लागू होगा। अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी ने कस्टम्स एंड बॉर्डर प्रोटेक्शन के माध्यम से सार्वजनिक सूचना जारी कर इस निर्णय की जानकारी दी। इस कदम ने ट्रंप प्रशासन की उस नीति को और मजबूती दी है जिसके तहत भारत को रूस से कच्चा तेल खरीदने पर दंडात्मक कदम उठाए जा रहे हैं। व्हाइट हाउस का तर्क है कि भारत की रूसी तेल खरीदारी यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा देती है। ट्रंप प्रशासन का दावा है कि ये टैरिफ़ यूक्रेन-रूस युद्ध को समाप्त करने के उद्देश्य से लगाए गए हैं। अमेरिका पहले भी रूसी मूल के तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाने वाले आदेश जारी कर चुका है। इस क्रम में 8 मार्च, 2022 का कार्यकारी आदेश 14066 महत्वपूर्ण था, जिसने रूसी तेल, पेट्रोलियम और संबंधित उत्पादों के आयात को अवैध करार दिया। 6 अगस्त 2025 को जारी नवीनतम आदेश में कहा गया कि राष्ट्रपति ट्रंप ने वरिष्ठ अधिकारियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर पाया है कि रूस की नीतियां अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बनी हुई हैं। इसीलिए भारत जैसे देशों पर दबाव बढ़ाना आवश्यक है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रूसी तेल का आयात कर रहे हैं। गौरतलब है कि अमेरिका भारत से आयातित कुछ उत्पादों पर पहले से 25 प्रतिशत टैरिफ़ लगा रहा था। नई घोषणा के साथ यह शुल्क दोगुना होकर 50 प्रतिशत हो गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों में एक नई तनावपूर्ण स्थिति पैदा करेगा। भारत के लिए यह खबर चिंताजनक है क्योंकि अमेरिका उसका तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। दोनों देशों के बीच कुल व्यापार 130 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है, जो केवल खाड़ी सहयोग परिषद और यूरोपीय संघ से पीछे है। आइये समझते हैं कि इस अतिरिक्त टैरिफ से कौन-कौन से उत्पाद प्रभावित होंगे? नोटिफिकेशन के मुताबिक, अतिरिक्त शुल्क कई श्रेणियों के उत्पादों पर लागू होगा। इनमें धातु (लोहा, इस्पात, एल्युमीनियम), ऑटो पार्ट्स, औद्योगिक मशीनरी और उपभोक्ता वस्तुएं शामिल हैं। हालांकि, कुछ अपवाद भी दिए गए हैं: 27 अगस्त से पहले ट्रांज़िट में मौजूद शिपमेंट (यदि 17 सितंबर 2025 से पहले प्रवेश करती है) मानवीय दान (भोजन, दवा, कपड़े) सूचनात्मक सामग्री (पुस्तकें, फिल्में, सीडी, समाचार सामग्री, कला कृतियां) दवाइयों और मोबाइल फोनों को फिलहाल टैरिफ़ से छूट। पहले से अन्य अमेरिकी टैरिफ़ कार्यक्रमों में शामिल औद्योगिक उत्पाद। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने प्रेस वार्ता में बताया कि भारत और अमेरिका के बीच इस मुद्दे पर बातचीत जारी है। भारत ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि उसकी ऊर्जा रणनीति राष्ट्रीय हितों के अनुरूप है और वह रूसी तेल खरीद पर किसी तरह के अंतरराष्ट्रीय दबाव को स्वीकार नहीं करेगा। कूटनीतिक स्तर पर यह विवाद गहराता दिख रहा है। अगर भारत इस कदम के खिलाफ प्रतिशोधात्मक टैरिफ़ लगाता है, तो यह स्थिति ‘ट्रेड वॉर’ में बदल सकती है। इससे न केवल द्विपक्षीय व्यापार प्रभावित होगा बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा। याद रहे कि अमेरिका भारत के लिए एक बड़ा निर्यात बाजार है। भारतीय स्टील, ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग और टेक्सटाइल कंपनियों को भारी नुकसान होने की आशंका है। बढ़े हुए टैरिफ़ से अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पाद महंगे हो जाएंगे, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धा कम हो जाएगी। इसका सीधा असर रोजगार और उत्पादन पर पड़ सकता है। भारत के सामने अब दो प्रमुख विकल्प हैं: कूटनीतिक समाधान: अमेरिका से बातचीत कर टैरिफ़ में राहत की मांग। नए बाजार तलाशना: यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका में निर्यात बढ़ाने पर जोर देना। साथ ही, भारत को घरेलू उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए लागत कम करने और प्रौद्योगिकी निवेश पर ध्यान देना होगा। ट्रंप प्रशासन का यह फैसला केवल एक व्यापारिक कदम नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक दबाव का हिस्सा है। भारत के लिए यह समय कूटनीतिक कुशलता और आर्थिक रणनीति का है। अगर भारत इस चुनौती को अवसर में बदलने में सफल रहा, तो वह न केवल मौजूदा संकट से उबरेगा, बल्कि वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति और मजबूत कर सकेगा। दूसरी ओर मोदी सरकार अमेरिका द्वारा लगाए गए अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ़ को लेकर नई रणनीति तैयार कर रही है। सरकार का फोकस इस झटके को कम करने और भारतीय उद्योगों को राहत देने पर है। सूत्रों के मुताबिक, निर्यात को बढ़ावा देने, वैकल्पिक बाजारों की तलाश और घरेलू उत्पादन को मजबूत करने के उपायों पर काम किया जा रहा है। केंद्र का मानना है कि व्यापारिक संतुलन बनाए रखने के लिए कूटनीतिक वार्ता भी जरूरी होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम भारत की आर्थिक नीति और अंतरराष्ट्रीय व्यापार संबंधों पर बड़ा असर डाल सकता है।