भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सड़क सुरक्षा को लेकर एक ऐतिहासिक पहल की है। 1 सितंबर 2025 से पूरे प्रदेश में ‘नो हेलमेट-नो फ्यूल’ अभियान शुरू कर दिया गया है। इस अनूठे नियम के तहत अब किसी भी पेट्रोल पंप पर उन लोगों को ईंधन उपलब्ध नहीं कराया जाएगा, जो दोपहिया वाहन चलाते समय हेलमेट नहीं पहनते। यह कदम न सिर्फ सड़क हादसों में कमी लाने की दिशा में अहम माना जा रहा है, बल्कि यह आमजन में सुरक्षा के प्रति गंभीर चेतना जगाने का भी काम करेगा। याद रहे भारत सड़क दुर्घटनाओं के मामले में दुनिया के सबसे प्रभावित देशों में शामिल है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि हर साल देश में लगभग 1.5 लाख लोगों की मौत सड़क हादसों में होती है। इनमें से बड़ी संख्या दोपहिया चालकों और सवारियों की होती है, जिनमें से अधिकांश ने हेलमेट नहीं पहना होता। उत्तर प्रदेश भी इस समस्या से अछूता नहीं है। राज्य में प्रतिवर्ष हजारों लोग सड़क दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। हेलमेट न पहनने की आदत न केवल व्यक्तिगत लापरवाही है, बल्कि यह पूरे परिवार को संकट में डाल देती है। ‘नो हेलमेट-नो फ्यूल’ अभियान का मुख्य उद्देश्य लोगों को अनिवार्य रूप से हेलमेट पहनने की आदत डालना है। सरकार का मानना है कि केवल चालान काटने या दंड लगाने से लोग ज्यादा देर तक नियमों का पालन नहीं करते। लेकिन जब हेलमेट न पहनने पर ईंधन ही नहीं मिलेगा, तो यह सीधे तौर पर उनकी रोज़मर्रा की जरूरतों को प्रभावित करेगा। इस तरह लोग मजबूरी में सही आदत अपनाने लगेंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद जनता से अपील की है कि लोग इस अभियान को केवल कानून मानकर न देखें, बल्कि इसे अपने जीवन की सुरक्षा से जोड़ें। उनका कहना है कि “पहले हेलमेट, बाद में ईंधन” का नियम हर नागरिक के लिए एक तरह से जीवन बीमा है। सरकार ने पेट्रोल पंप मालिकों और कर्मचारियों को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए हैं। पंपों पर इस नियम का सख्ती से पालन कराने के लिए निगरानी समितियां भी गठित की गई हैं। प्रशासनिक स्तर पर भी जिलाधिकारियों और पुलिस अधिकारियों को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे सुनिश्चित करें कि अभियान का प्रभावी क्रियान्वयन हो। लखनऊ, वाराणसी, कानपुर, गोरखपुर और नोएडा जैसे बड़े शहरों में पहले दिन से ही इस अभियान का असर दिखाई देने लगा। कई जगहों पर बिना हेलमेट पहुंचे बाइक चालकों को ईंधन नहीं दिया गया। परिणामस्वरूप, लोग तत्काल नजदीकी दुकानों से हेलमेट खरीदने पर मजबूर हो गए। यह पहल केवल एक प्रशासनिक नियम भर नहीं है, बल्कि इसे सामाजिक बदलाव की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक जनता खुद जागरूक नहीं होगी, तब तक किसी भी कानून का असर स्थायी नहीं होता। यह अभियान लोगों को मजबूर करेगा कि वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता दें। समय के साथ यह आदत जीवनशैली का हिस्सा बन जाएगी। डॉक्टरों और ट्रैफिक विशेषज्ञों का मानना है कि सड़क दुर्घटनाओं में मौत के मामलों को 40 से 60 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है, यदि दोपहिया वाहन चालक और पीछे बैठने वाला व्यक्ति दोनों हेलमेट पहनें। हेलमेट सिर की चोट से बचाता है, जो अक्सर हादसों में मौत या विकलांगता का कारण बनती है। विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि हेलमेट पहनना केवल कानूनी बाध्यता नहीं, बल्कि परिवार और समाज के प्रति जिम्मेदारी भी है। एक व्यक्ति की लापरवाही उसके पूरे परिवार के भविष्य को प्रभावित कर सकती है। जहां सरकार इस पहल को बड़ी उपलब्धि मान रही है, वहीं कुछ लोगों का तर्क है कि इससे पेट्रोल पंपों पर विवाद बढ़ सकते हैं। कई जगहों पर पंप कर्मचारियों और ग्राहकों के बीच बहस की घटनाएं भी सामने आई हैं। हालांकि सरकार का कहना है कि प्रारंभिक असुविधा के बाद लोग इसे आदत बना लेंगे। सामाजिक संगठनों और सड़क सुरक्षा कार्यकर्ताओं ने इस अभियान का स्वागत किया है। उनका मानना है कि यह पहल युवाओं में सबसे अधिक प्रभाव डालेगी, जो अक्सर हेलमेट पहनने को बोझ मानते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को जागरूकता अभियान, स्कूलों और कॉलेजों में कार्यशालाएं, टीवी-रेडियो और सोशल मीडिया पर प्रचार जैसे कदम भी उठाने होंगे। जब तक लोग हेलमेट पहनने को फैशन और गर्व की बात नहीं समझेंगे, तब तक यह नियम केवल मजबूरी के तौर पर ही अपनाया जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि उत्तर प्रदेश में यह अभियान सफल रहता है, तो अन्य राज्य भी इसे अपना सकते हैं। पहले से ही तमिलनाडु, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इस तरह के प्रयोगों की चर्चा हो चुकी है, लेकिन यूपी का मॉडल व्यापक और सख्त माना जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार का ‘नो हेलमेट-नो फ्यूल’ अभियान निस्संदेह सड़क सुरक्षा और सामाजिक जागरूकता की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह कदम उन लाखों परिवारों की जिंदगी बचा सकता है, जो हर साल सड़क हादसों की त्रासदी झेलते हैं।