भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
भारत की अर्थव्यवस्था आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए मजबूत और आधुनिक लॉजिस्टिक्स प्रणाली जरूरी है। यह क्षेत्र न केवल व्यापारिक दक्षता का आधार है, बल्कि सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने का भी महत्वपूर्ण साधन है। अगर सुधारों को प्रभावी ढंग से लागू किया गया, तो भारत का लॉजिस्टिक्स क्षेत्र 2047 तक विकसित भारत के विज़न को साकार करने में अहम भूमिका निभा सकता है। आइये विस्तार से समझते हैं लॉजिस्टिक्स के आर्थिक महत्व और मौजूदा चुनौतियों को। भारत में लॉजिस्टिक्स लागत जी डी पी का करीब 13-14 प्रतिशत है, जबकि विकसित देशों में यह 8-10 प्रतिशत के बीच रहती है। यह अंतर भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करता है। उच्च लागत के कारण निर्यात महंगा पड़ता है और घरेलू उद्योग पर भी दबाव बढ़ता है। खराब बुनियादी ढांचा, पारदर्शिता की कमी, जटिल विनियम और सीमित तकनीकी एकीकरण जैसी चुनौतियाँ लंबे समय से इस क्षेत्र की प्रगति में बाधा बनी हुई हैं। देश में सड़क, रेल, जल और वायु मार्ग के बीच असंतुलित उपयोग भी लागत को बढ़ाता है। जहां सड़क परिवहन का हिस्सा लगभग 60 प्रतिशत है, वहीं जलमार्ग और रेल की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम है। यह असंतुलन न केवल महंगा है, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी प्रतिकूल है। यह सच है कि सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति 2022 का लक्ष्य लॉजिस्टिक्स लागत को 2030 तक जी डी पी के 8 प्रतिशत तक लाना है। पीएम गति शक्ति मास्टर प्लान ने मल्टीमॉडल इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर जोर दिया है। डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर परियोजना से माल परिवहन की गति बढ़ेगी और लागत कम होगी। भारतमाला और सागरमाला परियोजनाएँ सड़क और बंदरगाह कनेक्टिविटी को मजबूत करेंगी। इन योजनाओं का उद्देश्य लागत घटाना, आपूर्ति श्रृंखला को सुचारु बनाना और व्यापारिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना है। लॉजिस्टिक्स क्षेत्र में तकनीकी एकीकरण समय की जरूरत है आई ओ टी , ब्लॉकचेन, ए आई और बिग डेटा एनालिटिक्स जैसे उपकरणों से पारदर्शिता, गति और लागत में सुधार होगा। उदाहरण के लिए, आई ओ टी आधारित सेंसर ट्रैकिंग से रीयल-टाइम डेटा उपलब्ध होता है, जबकि ब्लॉकचेन सप्लाई चेन की सुरक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है। डिजिटलीकरण से न केवल प्रक्रिया तेज होगी, बल्कि अनावश्यक विलंब और भ्रष्टाचार की संभावनाएँ भी घटेंगी। ई-लॉजिस्टिक्स प्लेटफॉर्म्स और एकीकृत पोर्टल्स व्यापारिक पारिस्थितिकी तंत्र को सरल बनाएंगे। लॉजिस्टिक्स सेक्टर का पर्यावरणीय प्रभाव काफी बड़ा है। डीजल आधारित ट्रक और पारंपरिक परिवहन पद्धतियाँ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ाती हैं। ऐसे में हरित परिवहन अपनाना अनिवार्य है। इलेक्ट्रिक और एल एन जी वाहनों का उपयोग। सौर ऊर्जा आधारित वेयरहाउस। हाइड्रोजन फ्यूल सेल ट्रकों का विकास। ये बदलाव सतत विकास लक्ष्य 13 (जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई) को आगे बढ़ाएंगे और भारत को कार्बन-न्यूट्रल सप्लाई चेन की दिशा में अग्रसर करेंगे। तकनीक अपनाने के साथ-साथ कार्यबल की क्षमता बढ़ाना भी जरूरी है। वर्तमान में लॉजिस्टिक्स में प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी है। ड्रोन डिलीवरी, ऑटोमेटेड वेयरहाउसिंग और डिजिटल ट्रैकिंग जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले कर्मियों की मांग बढ़ रही है। सरकार को निजी क्षेत्र के साथ मिलकर कौशल विकास कार्यक्रम चलाने होंगे। यह पहल न केवल रोजगार सृजन में मदद करेगी, बल्कि सतत विकास लक्ष्य 8 (उत्कृष्ट श्रम और आर्थिक विकास) को भी साकार करेगी। लॉजिस्टिक्स क्षेत्र का आधुनिकीकरण सीधे तीन बड़े सतत विकास लक्ष्यों से जुड़ा है: सतत विकास लक्ष्य 8: रोजगार सृजन और आर्थिक विकास, सतत विकास लक्ष्य 9: उद्योग, नवाचार और बुनियादी ढांचे का सुदृढ़ीकरण, सतत विकास लक्ष्य 13: जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रभावी कार्रवाई। गर हम भविष्य के रोडमैप: विकसित भारत 2047 की बात करें तो भारत का लक्ष्य 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का है। इस लक्ष्य को पाने के लिए एक मजबूत, हरित और डिजिटल लॉजिस्टिक्स प्रणाली अनिवार्य है। यह न केवल व्यापारिक लागत कम करेगी, बल्कि कृषि, ई-कॉमर्स, विनिर्माण और एम एस एम ई क्षेत्र को गति देगी। भविष्य की लॉजिस्टिक्स प्रणाली ऐसी होनी चाहिए, जो मल्टीमॉडल, हरित, तकनीक-प्रधान और कौशलयुक्त कार्यबल पर आधारित हो। अंत में कह सकते हैं कि लॉजिस्टिक्स क्षेत्र भारत की विकास यात्रा का इंजन है। यदि सुधारों को प्रभावी ढंग से लागू किया गया, तो यह क्षेत्र न केवल अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाई देगा, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और सामाजिक कल्याण के साथ विकास का नया मॉडल प्रस्तुत करेगा। विकसित भारत-2047 की राह में लॉजिस्टिक्स का आधुनिकीकरण कोई विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता है।