भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां यह बात सौलह आने सच है कि भारत के आर्थिक विकास का अगला चरण मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की मजबूती पर निर्भर करता है। सेवाओं में भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन यदि देश को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनना है और करोड़ों युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराना है, तो मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को नई दिशा देनी होगी। इसके लिए आवश्यक है कि सरकार और उद्योग एक साथ मिलकर उन चुनौतियों का समाधान करें जो इस क्षेत्र की गति को धीमा कर रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की विनिर्माण सफलता तीन प्रमुख स्तंभों – मनी (धन), मैट्रियल् (सामग्री) और मैन पावर (जनशक्ति) – पर आधारित है। गर हम मनी की बात करें तो किसी भी बड़े औद्योगिक निवेश के लिए सबसे पहली आवश्यकता भूमि और पूंजी की होती है। भारत में भूमि अधिग्रहण अब भी एक जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया है। कई बार निवेशक इस कारण से पीछे हट जाते हैं। इस चुनौती से निपटने के लिए राज्यों को पारदर्शी और निवेशक-हितैषी नीतियां अपनानी होंगी। साथ ही, वित्तीय संस्थानों को दीर्घकालिक ऋण के लिए सरल प्रक्रियाएं सुनिश्चित करनी होंगी ताकि उद्योगपतियों को सस्ती दरों पर पूंजी उपलब्ध हो सके। हाल ही में कई राज्यों ने भूमि बैंक बनाने और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए आवंटन जैसी पहल की है। हालांकि, इसे व्यापक स्तर पर लागू करने और भ्रष्टाचार-मुक्त प्रणाली बनाने की आवश्यकता है। वित्तीय मोर्चे पर, विनिर्माण क्षेत्र के लिए विशेष प्रोत्साहन पैकेज और कम ब्याज दरों पर कर्ज की सुविधा विकास को गति दे सकती है। इसी प्रकार मैट्रियल् यानि विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला और लॉजिस्टिक्स के चलते कोविड-19 महामारी और उसके बाद आई वैश्विक भू-राजनीतिक अस्थिरता ने आपूर्ति श्रृंखलाओं की कमजोरी को उजागर किया। चीन पर अत्यधिक निर्भरता से निकलने के लिए दुनिया भर में कंपनियां नए विकल्प तलाश रही हैं। यह भारत के लिए एक सुनहरा अवसर है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि देश की लॉजिस्टिक व्यवस्था और इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत हो। हालांकि भारत ने सड़क, रेल और बंदरगाह कनेक्टिविटी सुधारने में प्रगति की है, लेकिन अब भी लॉजिस्टिक लागत जीडीपी के मुकाबले अधिक है। इसे वैश्विक औसत के अनुरूप लाना होगा। साथ ही, कच्चे माल की स्थायी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए खनन नीतियों में सुधार और घरेलू उत्पादन क्षमता को बढ़ाना आवश्यक है। ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहल तभी सफल होगी जब उत्पादन के लिए आवश्यक सामग्री समय पर और प्रतिस्पर्धी लागत पर उपलब्ध हो। दूसरी ओर मैन पावर से अभिप्राय श्रम सुधार और कौशल विकास से है। भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी जनसंख्या है। लेकिन यही ताकत चुनौती भी बन सकती है अगर इसे सही दिशा में न ले जाया जाए। विनिर्माण क्षेत्र को बड़ी संख्या में कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। हालांकि, वर्तमान श्रम कानून अब भी कई मामलों में जटिल और कठोर हैं। सरकार ने कुछ सुधार किए हैं, जैसे चार श्रम संहिताओं का प्रस्ताव, लेकिन इनका पूर्ण कार्यान्वयन अब भी लंबित है। इसके अलावा, कौशल विकास कार्यक्रमों को उद्योग की जरूरतों के अनुरूप बनाना होगा। केवल प्रमाणपत्र देने से रोजगार नहीं मिलेगा, बल्कि व्यावहारिक प्रशिक्षण और तकनीकी दक्षता पर जोर देना होगा। ऑटोमेशन और एआई के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, नए कौशलों पर भी ध्यान देना समय की मांग है। यह सच है कि वैश्विक आपूर्ति शृंखला और भारत का अवसर देखें तो वर्तमान समय भारत के लिए एक ‘संकीर्ण खिड़की’ लेकर आया है। वैश्विक कंपनियां चीन प्लस वन रणनीति अपना रही हैं और उत्पादन के नए केंद्रों की तलाश कर रही हैं। यदि भारत तेजी से सुधार करता है, तो वह न केवल विदेशी निवेश आकर्षित कर सकता है, बल्कि अपने घरेलू उद्योगों को भी प्रतिस्पर्धी बना सकता है। लेकिन यह अवसर स्थायी नहीं है। राजनीतिक इच्छाशक्ति और नीतिगत स्पष्टता के बिना यह मौका हाथ से निकल सकता है।अंत में कह सकते हैं कि भारत की विनिर्माण छलांग केवल नारों से नहीं, बल्कि ठोस कदमों से संभव होगी। तीन ‘मनी (धन), मैट्रियल् (सामग्री) और मैन पावर (जनशक्ति) का संतुलित समाधान ही सफलता की गारंटी है। भूमि और वित्त तक आसान पहुंच, आपूर्ति श्रृंखला का सुदृढ़ीकरण, और लचीली श्रम नीतियों के साथ कौशल विकास—ये सब मिलकर भारत को वैश्विक विनिर्माण मानचित्र पर अग्रणी बना सकते हैं। यदि ये सुधार समय पर लागू हुए, तो आने वाले दशक में भारत न केवल वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ेगा, बल्कि लाखों रोजगार सृजित कर समावेशी आर्थिक वृद्धि को भी गति देगा। यही वह मार्ग है जो भारत को आत्मनिर्भर और विश्व अर्थव्यवस्था का प्रमुख केंद्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ा सकता है।