भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां भारतीय राजनीति में 9 सितंबर 2025 एक ऐतिहासिक तारीख बन गई जब राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के उम्मीदवार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता सीपी राधाकृष्णन ने उपराष्ट्रपति चुनाव में विजय हासिल की। उन्हें कुल 452 वोट मिले और वे देश के 15वें उपराष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। उनकी इस जीत ने न केवल संसद के ऊपरी सदन यानी राज्यसभा के स्वरूप को प्रभावित करने का संकेत दिया है, बल्कि भाजपा की दीर्घकालिक राजनीतिक रणनीति और भविष्य की संभावनाओं को भी नई दिशा दी है। उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार राधाकृष्णन का मुकाबला विपक्षी गठबंधन के साझा उम्मीदवार से था। परिणाम भाजपा और उसके सहयोगियों के पक्ष में भारी अंतर से आए। यह भाजपा के संगठनात्मक कौशल और केंद्र सरकार की वर्तमान नीतियों के प्रति जनप्रतिनिधियों के विश्वास का भी द्योतक है। भाजपा ने इस चुनाव को केवल एक संवैधानिक पद हासिल करने की लड़ाई नहीं माना, बल्कि इसे विपक्ष को राजनीतिक संदेश देने के अवसर के रूप में पेश किया। 452 वोटों की स्पष्ट बहुमत से मिली जीत दर्शाती है कि भाजपा के पास न केवल लोकसभा में, बल्कि राज्यसभा में भी प्रभाव बढ़ाने की पर्याप्त क्षमता है। आइये जानते हैं कि आखिर कौन हैं सीपी राधाकृष्णन ? सीपी राधाकृष्णन का राजनीतिक जीवन संगठन और सेवा भाव से जुड़ा रहा है। वे तमिलनाडु भाजपा के प्रमुख नेताओं में गिने जाते हैं और लंबे समय से पार्टी को दक्षिण भारत में मज़बूत करने के लिए काम कर रहे हैं। उनकी छवि एक सहज, सुलभ और विचारधारा के प्रति समर्पित नेता की रही है। तमिलनाडु जैसे राज्य से उपराष्ट्रपति पद पर उनकी नियुक्ति भाजपा के लिए रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि पार्टी दक्षिण भारत में अपने राजनीतिक विस्तार की लगातार कोशिश कर रही है। उपराष्ट्रपति पद केवल औपचारिक नहीं है, बल्कि संसदीय राजनीति में इसका अहम महत्व है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं। इस लिहाज से राधाकृष्णन की जीत भाजपा के लिए खास मायने रखती है। राज्यसभा में अक्सर विपक्ष सरकार के विधेयकों को अटकाता रहा है। लेकिन अब भाजपा को अपेक्षा है कि नए सभापति के रूप में राधाकृष्णन संसदीय कामकाज को अधिक सुचारू और संतुलित ढंग से आगे बढ़ाएंगे। यह स्थिति भाजपा सरकार को अपने विधायी एजेंडे को तेजी से लागू करने का अवसर प्रदान कर सकती है। विशेषकर विवादित या व्यापक सुधार वाले बिलों को पारित कराने में यह भूमिका निर्णायक साबित हो सकती है। भाजपा ने हाल के वर्षों में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में लगातार सफलता पाई है। यह दर्शाता है कि पार्टी ने केवल चुनावी राजनीति ही नहीं, बल्कि संवैधानिक संस्थाओं में अपनी पकड़ मज़बूत करने पर भी ध्यान दिया है। इससे पार्टी की दीर्घकालिक रणनीति स्पष्ट होती है—राष्ट्रीय राजनीति में अपनी निर्णायक उपस्थिति सुनिश्चित करना। सीपी राधाकृष्णन जैसे नेता की जीत से भाजपा को दक्षिण भारत के मतदाताओं के बीच भी सकारात्मक संदेश भेजने का अवसर मिला है। यह कदम क्षेत्रीय राजनीति में भाजपा की पकड़ मज़बूत करने का प्रयास है। इस परिणाम ने विपक्षी गठबंधन के लिए गंभीर संदेश छोड़ा है। 2024 लोकसभा चुनाव में अपेक्षित प्रदर्शन न कर पाने के बाद विपक्ष उपराष्ट्रपति चुनाव में भी एकजुट होकर निर्णायक असर नहीं दिखा सका। यह स्थिति विपक्ष की संगठनात्मक कमजोरी और भविष्य की रणनीति पर सवाल खड़े करती है। इसके साथ ही, यह साफ हो गया है कि भाजपा संसद के दोनों सदनों में मजबूत स्थिति में है और विपक्ष की चुनौतियां और बढ़ने वाली हैं। सीपी राधाकृष्णन की जीत भाजपा को आने वाले वर्षों में कई मोर्चों पर मदद करेगी: विधायी सुधारों में तेजी – राज्यसभा में संतुलन बनाए रखने से सरकार को सुधारात्मक बिलों को आसानी से पास कराने का मौका मिलेगा। दक्षिण भारत में पैठ – तमिलनाडु से उपराष्ट्रपति बनने से भाजपा को दक्षिण भारत के राज्यों में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने का अवसर मिलेगा। राजनीतिक संदेश – यह जीत भाजपा को 2029 की रणनीति बनाने में मनोबल और आत्मविश्वास देगी। संवैधानिक संस्थाओं में मजबूती – राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद पर अपने उम्मीदवारों की जीत से भाजपा ने दिखाया है कि उसकी पकड़ संस्थागत स्तर पर मजबूत हो रही है। सीपी राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति पद तक पहुँचना केवल एक व्यक्ति की उपलब्धि नहीं है, बल्कि भाजपा की व्यापक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। यह परिणाम भाजपा की दीर्घकालिक सोच और संगठनात्मक कौशल का परिचायक है। हालांकि, इससे उम्मीद भी बंधती है कि राधाकृष्णन अपने संवैधानिक दायित्वों को निष्पक्षता से निभाएँगे और राज्यसभा को सरकार और विपक्ष के बीच संतुलन बनाने वाला मंच बनाएंगे। भाजपा के लिए यह जीत आने वाले समय में राजनीतिक लाभ लेकर आ सकती है, लेकिन इसके साथ ही यह जिम्मेदारी भी जुड़ी है कि सत्ता का इस्तेमाल लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए हो, न कि केवल पार्टीगत हितों के लिए। सीपी राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति पद तक पहुँचना भाजपा की राजनीति में एक और महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह न केवल पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर स्थिति को मजबूत करता है, बल्कि दक्षिण भारत में उसके विस्तार की दिशा में भी अहम संकेत देता है। विपक्ष के लिए यह चेतावनी है कि यदि वह संगठित नहीं हुआ तो आने वाले वर्षों में भाजपा का प्रभाव और बढ़ेगा। भारतीय लोकतंत्र के लिए यह क्षण महत्वपूर्ण है—अब देखना होगा कि राधाकृष्णन अपने पद का इस्तेमाल किस तरह से संसद और राजनीति को संतुलन और मजबूती देने के लिए करते हैं।