भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
मोदी सरकार के प्रयासों से पूर्वोत्तर भारत एक बार फिर राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में है। यह इलाका जिसे देश का “रणनीतिक प्रवेश द्वार” कहा जाता है, भौगोलिक और सांस्कृतिक दृष्टि से न केवल भारत, बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए विशेष महत्व रखता है। प्राकृतिक संसाधनों, जलवायु विविधता और सांस्कृतिक धरोहर से संपन्न यह क्षेत्र दक्षिण-पूर्व एशिया से जुड़ने का प्राकृतिक सेतु भी है। यही कारण है कि यह क्षेत्र भारत की विदेश नीति, व्यापार और सुरक्षा रणनीति में निर्णायक भूमिका निभाता है। पूर्वोत्तर भारत में असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे राज्य शामिल हैं। यह क्षेत्र चीन, म्यांमार, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल की सीमाओं से घिरा है। सामरिक दृष्टि से संवेदनशील होने के कारण यहां स्थिरता और सुरक्षा बनाए रखना हमेशा से केंद्र सरकार की प्राथमिकता रही है। साथ ही, “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” के तहत भारत ने पूर्वोत्तर को दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से व्यापारिक और सांस्कृतिक रिश्तों का प्रमुख केंद्र बनाने की दिशा में कई कदम बढ़ाए हैं। सीमा विवाद, अवैध घुसपैठ और क्रॉस-बॉर्डर मूवमेंट जैसी चुनौतियों के बावजूद यह क्षेत्र भारत के लिए क्षेत्रीय सहयोग का मंच बन सकता है। इसके लिए भारत को सुरक्षा के साथ-साथ पड़ोसी देशों के साथ आर्थिक साझेदारी और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी समान महत्व देना होगा। पूर्वोत्तर को प्राकृतिक संसाधनों का खजाना कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यहां की नदियों में जलविद्युत उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। यही कारण है कि इसे “ग्रीन एनर्जी हब” बनाने की योजना पर तेजी से काम हो रहा है। सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में भी यहां निवेश की अपार संभावनाएं हैं। यदि पारदर्शी नीतियों और पर्याप्त निवेश के साथ इन अवसरों का उपयोग किया जाए, तो पूर्वोत्तर न केवल अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी कर सकेगा, बल्कि पूरे देश को स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध कराने में अग्रणी बन सकता है। यह क्षेत्र 200 से अधिक जनजातियों, भाषाओं और परंपराओं का घर है। यहां की सांस्कृतिक विविधता भारत की बहुलतावादी पहचान को और मजबूत बनाती है। साथ ही यह दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ ऐतिहासिक और सामाजिक संबंधों को भी गहरा करती है। यही कारण है कि पूर्वोत्तर में इको-टूरिज्म और सांस्कृतिक पर्यटन की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। यदि पर्यटन अवसंरचना पर पर्याप्त निवेश किया जाए, तो यह क्षेत्र राष्ट्रीय और वैश्विक पर्यटन का प्रमुख आकर्षण बन सकता है। लेकिन सच यह भी है कि विकास की राह में इस क्षेत्र ने कई कठिन दौर देखे हैं। लंबे समय से असम, नागालैंड और मणिपुर जैसे राज्यों में उग्रवाद और अलगाववादी आंदोलनों ने स्थिरता को प्रभावित किया है। हिंसा और असुरक्षा ने निवेश को हतोत्साहित किया, वहीं सड़क, रेल और हवाई संपर्क की कमी ने इस क्षेत्र को मुख्यधारा के आर्थिक प्रवाह से दूर रखा। डिजिटल नेटवर्क, स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा का अभाव युवाओं के लिए अवसरों की कमी का कारण बना। यही वजह है कि यहां से बड़े पैमाने पर पलायन हुआ।पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र की चुनौतियों को कम करने और अवसरों को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। नीसिड्स (पूर्वोत्तर विशेष अवसंरचना विकास योजना), भारतमाला परियोजना और बीबीआईएन कॉरिडोर जैसे कार्यक्रमों ने कनेक्टिविटी और व्यापारिक अवसरों को गति दी है। डिजिटल इंडिया मिशन के तहत इंटरनेट नेटवर्क को मजबूत करने और स्वास्थ्य अवसंरचना में सुधार पर ध्यान दिया जा रहा है। शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों से युवाओं को नए अवसर देने की कोशिशें भी जारी हैं। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि सिर्फ अवसंरचना और सुरक्षा पर ध्यान देना पर्याप्त नहीं है। पूर्वोत्तर भारत की योजनाओं की सफलता स्थानीय समुदायों और जनजातियों की सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करती है। विकास के साथ-साथ स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का सम्मान करना आवश्यक है। यदि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में सुधार सुनिश्चित किया जाए और युवाओं को अवसर दिए जाएं, तो क्षेत्रीय असंतोष स्वतः ही कम होगा। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शनिवार को मणिपुर के चूड़ाचांदपुर जिले का दौरा इसी संदर्भ में अहम माना जा रहा है। वे यहां सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा और कनेक्टिविटी से जुड़ी कई परियोजनाओं की आधारशिला रखेंगे। उम्मीद की जा रही है कि इन योजनाओं से स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़ेगा और सामाजिक-आर्थिक विकास को नई दिशा मिलेगी। अंत में कह सकते हैं कि पूर्वोत्तर भारत चुनौतियों और अवसरों का संगम है। जहां एक ओर उग्रवाद और अवसंरचना की कमी ने इसकी विकास यात्रा को प्रभावित किया है, वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधन, सांस्कृतिक धरोहर और सामरिक स्थिति इसे विशेष महत्व देती है। आज का दौर अवसरों का है। यदि सरकार सुरक्षा, अवसंरचना और समावेशी नीतियों को संतुलित तरीके से लागू करती है, तो यह क्षेत्र न केवल भारत की “रणनीतिक ढाल” रहेगा, बल्कि आर्थिक प्रगति का “विकास इंजन” भी बन सकता है। हरित ऊर्जा, क्षेत्रीय व्यापार और सांस्कृतिक शक्ति के बल पर पूर्वोत्तर भारत 21वीं सदी में “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” को नई ऊंचाई तक पहुंचा सकता है।