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संपादकीय

The 'brain-eating' infection wreaked havoc in Kerala: ‘केरल में दिमाग खाने वाले’ इंफेक्शन ने मचाई तबाही, छः लोगों की ली जान, केंद्र और राज्य सरकार तत्काल कदम उठाने की दरकार

September 11, 2025 08:29 PM

 

 भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़     

कोरोना के बाद अब एक और जानलेवा बीमारी भारत में पैर पसारने लगी है और इसकी शुरात केरल से हो चुकी है इसका नाम है प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफेलाइटिस (पीएएम), इसे ‘दिमाग खाने वाले इंफेक्शन’ के नाम से भी जाना जाता है। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, यह संक्रमण नेगलेरिया फाउलेरी नामक अमीबा के कारण होता है, जो दुर्लभ होने के बावजूद बेहद घातक माना जाता है। पानी के जरिए फैलने वाले इस संक्रमण ने राज्य की जनता के बीच दहशत फैला रखी है। लगातार हो रही मौतें केवल स्वास्थ्य प्रणाली पर ही नहीं, बल्कि सरकार की तैयारी और आपदा प्रबंधन क्षमता पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं। आइये समझते हैं इस घातक संक्रमण और इसके लक्षणों के बारे में। ‘दिमाग खाने वाला इंफेक्शन’ मस्तिष्क पर हमला करता है, यह संक्रमण ज्यादातर नाक के रास्ते मस्तिष्क तक पहुंचता है और वहां जाकर ब्रेन टिश्यू को नष्ट करना शुरू कर देता है। शुरूआती लक्षणों में तेज सिरदर्द, बुखार, उल्टी और दौरे शामिल हैं, लेकिन जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, मरीज बेहोशी की हालत में पहुंच जाता है। मौत की दर इतनी अधिक है कि समय रहते इलाज शुरू होने पर भी मरीज को बचाना कठिन हो जाता है। पैम के मामले ट्रॉपिकल और सबट्रॉपिकल (उष्णकटिबंधीय एवं उप-उष्णकटिबंधीय) इलाकों में अधिक होते हैं, क्योंकि अमीबा नेगलेरिया फाउलेरी गर्म पानी, झीलों, नदी-तटों, गर्म झरनों और कभी-कभी नाक या साइनस धोने वाले पानी आदि में पनपता है।  अमेरिका में: कोई-कोई मामलों की रिपोर्ट होती है; वहाँ की गर्मी के महीनों में झीलों या ताजे पानी में तैरने वाले लोग प्रभावित होते हैं। एशिया: कई देशों में पाए गए हैं—थाईलैंड, चीन, भारत आदि। यूरोप: कुछ मामले दर्ज हुए हैं, उदाहरण के लिए इटली आदि। अफ्रीका: वहाँ भी कुछ मामूली पैम  के दस्तावेज़ मिलते हैं, लेकिन रिपोर्टिंग कम है और आमतौर पर जागरूकता व संसाधन कम होने के कारण कई मामलों का पता नहीं लगता। 2025-के ताज़ा मामलों पर गौर करें तो केरल, भारत में 2025 में अब तक 42 पुष्ट मामले दर्ज हुए हैं। हाल ही में कोज़िकोड मेडिकल कॉलेज में एक 47-वर्षीय व्यक्ति (मनोंतबड़ी, वायनाड से), एक 55-वर्षीय महिला मलप्पूरम से, एक 9-वर्षीय बच्ची, और एक 3-महीने का शिशु सहित कई मौतें हुई हैं। इसी प्रकार पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान में 2025 में कम से कम दो मौतें हुई हैं इस से। एक 23-वर्षीय युवक कराची का था, दूसरे केस में एक महिला शामिल थी। प्रदेश स्वास्थ्य विभागों का कहना है कि पानी की गुणवत्ता एक बड़ा कारण है। संयुक्त राज्य अमेरिका के टेक्सास में एक 71-वर्षीय महिला ने आर वी के पानी से नासिक (नाक) की सिंचाई करने के बाद पैम से मृत्यु पाई। वर्ष 1962-2024 के बीच कुल 167 पुष्ट मामले दर्ज हैं, जिनमें से बहुत कम लोग बच पाएँ। चीन में एक दुर्लभ पेडियाट्रिक (बच्चों के) मृत्युदर मामला हाल ही में रिपोर्ट किया गया है। ऑस्ट्रेलिया पानी की सप्लाई में पैम का पता चला है (उदाहरण के लिए क्वीनसलैंड के कुछ शहरों में)। हालांकि अभी तक बीमारी की पुष्ट बीमारी दर्ज नहीं हुई हो सकती, लेकिन जोखिम संभव है। गौरतलब है कि इस संक्रमण में लक्षण दिखने से लेकर मृत्यु की अवधि बहुत कम होती है — आमतौर पर कुछ दिनों के अंदर। बचने वाले बहुत कम हैं; उदाहरण के लिए एक अध्ययन में 99 मरीजों में से लगभग 11 लोग ही जीवित बचे। कई मामले मृत्यु के बाद ही पुष्टि होते हैं क्योंकि शुरुआत में इसे वायरल या बैक्टीरियल मेनिन्जाइटिस समझा जाता है। यह भी सच है कि केरल में दर्ज हालिया मामलों ने साबित किया है कि यह बीमारी केवल मेडिकल चुनौती नहीं बल्कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन चुकी है। मौतों का सिलसिला बढ़ना यह बताता है कि संक्रमण की जड़ को खोजने और रोकथाम करने में कहीं न कहीं चूक हो रही है।केरल जैसे राज्य में जहां मानसून के बाद बाढ़ और जलभराव की स्थिति आम है, वहां ऐसे संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग ने जांच शुरू कर दी है, लेकिन अभी तक संक्रमण के स्रोत का स्पष्ट पता नहीं लग पाया है। जब तक इसका मूल कारण सामने नहीं आता, तब तक रोकथाम की रणनीति अधूरी ही रहेगी। यही वजह है कि सरकार को जलस्रोतों की व्यापक जांच करनी होगी और जनता को साफ पानी उपलब्ध कराने के ठोस उपाय करने होंगे। केरल के अस्पतालों में इस संक्रमण के लिए खास तरह के डायग्नोस्टिक टेस्ट और दवाइयां सीमित हैं। कई मामलों में बीमारी की पहचान ही देर से हो पाती है, जिससे मौत का खतरा बढ़ जाता है। इस स्थिति से निपटने के लिए राज्य सरकार को हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करना होगा और डॉक्टरों को विशेष प्रशिक्षण देना होगा। गर सरकार की बात करें तो सरकार को स्रोत की पहचान करनी चाहिए– संक्रमण फैलाने वाले जलस्रोतों की वैज्ञानिक जांच जरूरी है। जनजागरूकता अभियान – गांव-गांव तक यह संदेश पहुंचे कि लोग असुरक्षित पानी में न नहाएं और न ही उसका इस्तेमाल करें। आपातकालीन स्वास्थ्य सुविधाएं – हर जिला अस्पताल में इस संक्रमण के इलाज की व्यवस्था होनी चाहिए। सुरक्षित जल आपूर्ति – शुद्ध और क्लोरीनयुक्त पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करना सबसे अहम कदम है। राष्ट्रीय स्तर पर निगरानी – चूंकि यह संक्रमण केवल केरल तक सीमित नहीं रह सकता, इसलिए केंद्र सरकार को भी इसमें सक्रिय भूमिका निभानी होगी। याद रहे इस बार पूरे भारत में उम्मीद से ज्यादा मानसून की बरसात हुई है और कई जगह तो जलभराव अभी भी जारी है एसे में केंद्र सरकार को समय के रहते कदम उठाने होंगे अन्यथा देर भी हो सकती है।

 

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