भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
इस में कोई दो राय नहीं है कि भारतीय प्रवासी समुदाय दुनिया के हर कोने में बसा हुआ है। ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, लगभग 3.2 करोड़ भारतीय मूल के लोग विभिन्न देशों में रह रहे हैं, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा एनआरआई के रूप में जाना जाता है। यह समुदाय न केवल भारत के सांस्कृतिक दूत की भूमिका निभाता है बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था में भी अहम योगदान देता है। एनआरआई हर साल अरबों डॉलर की राशि भारत भेजते हैं, जिससे देश की विदेशी मुद्रा भंडार और विकास को मजबूती मिलती है। लेकिन हाल के वर्षों में कई देशों में प्रवासियों के खिलाफ़ बढ़ता आक्रोश एक चिंता का विषय बनता जा रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कई देशों से आए समाचार बताते हैं कि भारतीय मूल के लोग वहां नस्लीय भेदभाव, हिंसा और असुरक्षा की घटनाओं का सामना कर रहे हैं। ऐसे माहौल में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए। विदेशों में प्रवासियों खास कर भारतीयों के खिलाफ़ बढ़ते असंतोष के पीछे कई वजहें सामने आई हैं। आर्थिक प्रतिस्पर्धा – कई देशों में यह धारणा बन गई है कि प्रवासी भारतीय स्थानीय लोगों की नौकरियां छीन रहे हैं। विशेषकर आईटी सेक्टर, स्वास्थ्य सेवाओं और व्यापार में भारतीयों की तेज़ी से बढ़ती उपस्थिति ने कुछ वर्गों में असंतोष को जन्म दिया है। सांस्कृतिक टकराव – भारतीय अपनी संस्कृति और परंपराओं को साथ लेकर चलते हैं। कई बार यह स्थानीय संस्कृति से मेल न खाने पर असहज माहौल पैदा करता है, जिसे कुछ समूह "बाहरी प्रभाव" मानकर विरोध करने लगते हैं। राजनीतिक कारण – कुछ देशों की आंतरिक राजनीति में प्रवासी मुद्दा बड़ा हथियार बन चुका है। सत्ताधारी दल प्रवासियों को बलि का बकरा बनाकर जनता का ध्यान असली मुद्दों से भटकाने का प्रयास करते हैं। नस्लीय भेदभाव – रंगभेद और नस्लवाद अभी भी कई पश्चिमी देशों की बड़ी समस्या है। भारतीयों सहित एशियाई मूल के लोग अक्सर इसका शिकार बनते हैं। गर हम हाल के घटनाक्रमों की बात करें तो पिछले कुछ महीनों में कनाडा और ब्रिटेन से भारतीयों के खिलाफ़ हिंसा की खबरें आई हैं। कनाडा में भारतीय छात्रों और कामकाजी युवाओं पर हमले बढ़े हैं। ब्रिटेन में भी दक्षिण एशियाई समुदाय पर अपमानजनक टिप्पणियां और हमलों के मामले सामने आए। अमेरिका में नस्लीय गोलीबारी की घटनाओं में भारतीय मूल के लोग मारे गए हैं। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी भारतीय मूल के प्रवासियों को स्थानीय असंतोष का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति इस तथ्य को और गंभीर बनाती है कि इन देशों में लाखों भारतीय बसे हुए हैं और भारत के लिए ये बाजार और संबंध दोनों ही रणनीतिक महत्व रखते हैं। अब बात करते हैं भारत सरकार की जिम्मेदारी की। भारतीय संविधान हर नागरिक की सुरक्षा की गारंटी देता है, चाहे वह देश के भीतर हो या बाहर। विदेशों में बसे भारतीयों की सुरक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। इसके लिए भारत सरकार को बहु-आयामी कदम उठाने होंगे। भारतीय दूतावासों और उच्चायोगों को उन देशों की सरकारों से लगातार संवाद करना चाहिए जहां भारतीयों पर हमले हो रहे हैं। स्पष्ट संदेश देना होगा कि भारतीय समुदाय की सुरक्षा से समझौता स्वीकार्य नहीं है। प्रवासी भारतीयों को तुरंत कानूनी और काउंसलिंग सहायता उपलब्ध कराने के लिए विशेष तंत्र होना चाहिए। 24x7 हेल्पलाइन, मोबाइल ऐप और डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए उन्हें आपातकालीन मदद दी जा सकती है।भारतीय प्रवासी संगठनों को सक्रिय करके एक मजबूत नेटवर्क तैयार करना चाहिए ताकि किसी भी संकट की घड़ी में सामूहिक सहयोग मिल सके।विदेश जाने वाले छात्रों और कामगारों को पहले ही सुरक्षा नियमों और स्थानीय कानूनों की जानकारी दी जानी चाहिए, जिससे वे खुद को संभावित खतरों से बचा सकें।जिन परिवारों के सदस्य विदेश में हमलों का शिकार होते हैं, उन्हें भारत सरकार से आर्थिक सहायता और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रवासी भारतीयों ने विश्व स्तर पर भारत की साख बढ़ाई है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी दिग्गज कंपनियों के शीर्ष पदों पर भारतीय मूल के लोग बैठे हैं। खेल, विज्ञान, राजनीति और कला के क्षेत्र में भी भारतीय समुदाय ने अपनी प्रतिभा से वैश्विक पहचान बनाई है। यही कारण है कि आज भारत को "वैश्विक भारतीयता" पर गर्व है।हर साल एनआरआई भारत को लगभग 90 अरब डॉलर से अधिक का रेमिटेंस भेजते हैं। यह राशि भारत की जीडीपी और विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत बनाने में अहम योगदान देती है। इसलिए उनकी सुरक्षा केवल मानवता का प्रश्न नहीं है, बल्कि भारत की आर्थिक और रणनीतिक जरूरत भी है। प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित करना केवल भारत सरकार का ही नहीं, बल्कि उन देशों की भी जिम्मेदारी है जहां वे रहते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर "शून्य सहिष्णुता" नीति अपनानी होगी ताकि नस्लीय भेदभाव और हिंसा की घटनाओं पर तुरंत और कड़ी कार्रवाई हो। भारत सरकार को चाहिए कि वह बहुपक्षीय मंचों—जैसे संयुक्त राष्ट्र, जी 20 और राष्ट्रमंडल—पर इस मुद्दे को उठाए और प्रवासी सुरक्षा को वैश्विक एजेंडा का हिस्सा बनाए। इसके अलावा, भारत को अपने प्रवासियों के बीच भी भरोसा जगाना होगा कि संकट की घड़ी में उनका देश हमेशा उनके साथ खड़ा है। भारत सरकार को राजनयिक, कानूनी और सामाजिक स्तर पर मजबूत कदम उठाने होंगे ताकि भारतीय प्रवासियों को सुरक्षित माहौल मिल सके और वे गर्व से यह कह सकें कि उनका देश हर परिस्थिति में उनके साथ है।