भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
यह सच है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहाँ 96.88 करोड़ से अधिक मतदाता संविधान के तहत अपने प्रतिनिधियों का चयन करते हैं। लेकिन यह व्यापक चुनावी प्रक्रिया समय के साथ कई चुनौतियों से घिर गई है—जिनमें धनबल, अपराधीकरण, फर्जी मतदान, और असमान प्रचार तंत्र प्रमुख हैं। पारदर्शिता की कमी और संस्थागत खामियों ने चुनावी निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। अतः यह आवश्यक हो गया है कि कुछ बुनियादी और व्यापक सुधार किए जाएं, जिससे भारत का लोकतंत्र और अधिक मज़बूत, भरोसेमंद और प्रतिनिधित्वपूर्ण बन सके। आइये समझते हैं भारत में चुनाव संचालन की वर्तमान व्यवस्था के बारे में। भारत में चुनावों को नियंत्रित करने वाले मुख्य प्रावधानों शामिल हैः-विधान का अनुच्छेद 324-यह भारत के चुनाव आयोग को देश के चुनावों का संचालन, पर्यवेक्षण और नियंत्रण करने का अधिकार देता है।लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951-पहला अधिनियम मतदाता सूची और निर्वाचन क्षेत्रों के निर्धारण को निर्देशित करता है, जबकि दूसरा चुनावी प्रक्रिया, उम्मीदवारों की योग्यता और चुनाव विवादों का निर्धारण करता है। मतदाता पंजीकरण नियम, 1960-यह नियम मतदाता सूची की शुद्धता और सुधार की प्रक्रिया तय करता है, जिससे मतदाता डेटा की एकरूपता बनी रहती है।परिसीमन अधिनियम, 2002-यह कानून जनसंख्या के अनुसार निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करता है, जिससे जनसांख्यिकीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है।आदर्श आचार संहिता- यह एक नैतिक संहिता है, जो चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के आचरण को नियंत्रित करती है। एरोनेट प्रणाली चुनाव आयोग की यह डिजिटल व्यवस्था पूरे देश की मतदाता सूची को केंद्रीकृत और मानकीकृत करती है।अब बात करते हैं प्रमुख चुनावी समस्यओं की। वी वी पैट सत्यापन की सीमाएं-वर्तमान में केवल पाँच मशीनों का मिलान किया जाता है, जिससे पारदर्शिता पर प्रश्न उठते हैं। मतदाता सूची में विसंगतियाँ-फर्जी नाम और डुप्लिकेट एपिक नंबर के चलते मतदान की शुचिता पर संकट बना रहता है। आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन-स्टार प्रचारकों द्वारा भड़काऊ भाषण और सांप्रदायिक टिप्पणियाँ बार-बार देखी जाती हैं, लेकिन कार्रवाई कम होती है। राजनीतिक दलों का अनियंत्रित खर्च- जहां उम्मीदवारों पर खर्च सीमा तय है, वहीं दलों पर कोई प्रभावी सीमा नहीं है। 2024 चुनाव में ही ₹1.35 लाख करोड़ से अधिक खर्च हुआ। राजनीति का अपराधीकरण-2024 में 46% सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज थे। इससे लोकतांत्रिक वैधता कमजोर होती है। डिजिटल दुष्प्रचार और डीपफेक- सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों और डीपफेक वीडियो से मतदाताओं को गुमराह किया जाता है।एकाधिक सीटों से चुनाव लड़ना- इससे उपचुनावों की आवश्यकता उत्पन्न होती है और सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी होती है। राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी-पार्टियों में पारदर्शी चुनाव और नेतृत्व की समय-सीमा नहीं होती, जिससे जवाबदेही प्रभावित होती है। तीन प्रमुख सुधार जो लोकतंत्र को दे सकते हैं नया आधारःवी वी पैट सत्यापन की वैज्ञानिक प्रणाली- वी वी पैट मिलान को क्षेत्रीय और नमूना-आधारित बनाना आवश्यक है। यदि किसी क्षेत्र में ईवीएम और वी वी पैट में अंतर पाया जाए, तो वहां की सभी मशीनों की मैन्युअल गिनती अनिवार्य होनी चाहिए। इससे मतदाता विश्वास बढ़ेगा और तकनीकी भरोसे को बल मिलेगा। राजनीतिक दलों के चुनावी खर्च पर नियंत्रण- उम्मीदवारों की तरह राजनीतिक दलों के लिए भी खर्च की अधिकतम सीमा तय होनी चाहिए। इसके साथ ही आर टी आई के तहत दलों को लाने से उनके वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता बढ़ेगी। साथ ही ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ जैसी अवधारणाओं को लागू करने से बार-बार के चुनावों की लागत को भी कम किया जा सकता है। अपराधीकरण पर कड़ी कार्रवाई- सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य प्रकटीकरण के अलावा, उम्मीदवारों पर मुकदमे लंबित होने की स्थिति में तेजी से निर्णय के लिये फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाने चाहिए। जिन पर गंभीर आरोप तय हो जाएं, उन्हें चुनाव लड़ने से रोकने के लिये कड़े प्रावधान लागू करने होंगे। अन्य ज़रूरी सुधारः-टोटलाइज़र मशीनों का प्रयोग: जिससे मतदाता की गोपनीयता बनी रहे और मतदान केंद्र-वार धमकियों को रोका जा सके।एपिक नंबर को आधार से जोड़ना: जिससे डुप्लिकेट प्रविष्टियाँ हटाई जा सकें, लेकिन डेटा सुरक्षा के मजबूत उपायों के साथ।स्टार प्रचारक का दर्जा रद्द करना: आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर बार-बार माफी देने के बजाय कड़े कदम जरूरी हैं। उम्मीदवारों के लिए निर्वाचन क्षेत्र बदलने पर प्रतिबंध: सीट बदलने की सीमा तय करने से क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व मजबूत होगा। आर टी आई और आयकर अधिनियम के तहत राजनीतिक दल: जिससे जनता को जानकारी मिले कि पैसा कहां से आया और कैसे खर्च हुआ।स्वीप कार्यक्रम का विस्तार: जिसमें नैतिक मतदान, फर्जी समाचार और डिजिटल साक्षरता को शामिल किया जाए। राजनीतिक अभियानों का राज्य वित्तपोषण: जिससे पैसे की ताकत का प्रभाव घटे और समान अवसर बढ़ें।अंत में कह सकते हैं कि भारत का लोकतंत्र तभी सशक्त और विश्वसनीय बनेगा जब चुनावी प्रणाली में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता का पूरी तरह पालन हो। मतदाता को उसके वोट की ताकत का भरोसा हो, यही किसी लोकतंत्र की असली परीक्षा होती है। इसके लिये केवल चुनाव आयोग नहीं, बल्कि न्यायपालिका, राजनीतिक दल, मीडिया और नागरिक समाज—सभी को मिलकर प्रणालीगत खामियों को दूर करने में अपना सक्रिय योगदान देना होगा। तीन सुधार—वी वी पैट सत्यापन की पारदर्शिता, दलों के खर्च पर नियंत्रण, और अपराधीकरण पर कड़ा रुख—अगर ईमानदारी से लागू किए जाएं, तो भारत न केवल सबसे बड़ा बल्कि सबसे विश्वसनीय लोकतंत्र बन सकता है।