भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत का दवा उद्योग (फार्मास्युटिकल क्षेत्र), जिसका मूल्य वर्ष 2024 में 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर है और वर्ष 2030 तक 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, वहनीय दवाओं की आपूर्ति में एक वैश्विक महाशक्ति बना हुआ है। हालाँकि, अमेरिकी प्रशासन द्वारा विभिन्न क्षेत्रों पर लगाए गए हाल के व्यापक पारस्परिक शुल्कों के बावजूद, फार्मास्यूटिकल्स को महत्त्वपूर्ण छूट प्राप्त हुई है, जो इस क्षेत्र के रणनीतिक महत्त्व को रेखांकित करती है। व्यापारिक तनावों से यह छूट, वैश्विक स्तर पर सस्ती स्वास्थ्य सेवा बनाए रखने में भारत की अपरिहार्य भूमिका को दर्शाती है, साथ ही नवाचार और गुणवत्ता सुधार के माध्यम से आगे के विकास के अवसर भी प्रस्तुत करती है। आईये बात करते हैं भारत में फार्मास्यूटिकल क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले वर्तमान नियामक ढाँचे के बारे में। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन सी डी एस सी ओ भारत में फार्मास्यूटिकल्स की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार शीर्ष नियामक निकाय है। यह नई दवाओं के अनुमोदन, नैदानिक परीक्षणों, विनिर्माण लाइसेंसों तथा चिकित्सा उपकरणों और सौंदर्य प्रसाधनों के विनियमन की देखरेख करता है। सी डी एस सी ओ औषधि परीक्षण और लेबलिंग के लिये मानक निर्धारित करता है, तथा दवा उत्पादन के लिये अच्छे विनिर्माण अभ्यास के कार्यान्वयन में भी शामिल है। औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम भारत के औषधि विनियामक ढाँचे की आधारशिला है। यह देश में दवाओं, सौंदर्य प्रसाधनों और चिकित्सा उपकरणों के निर्माण, बिक्री और वितरण को नियंत्रित करता है।यह सुनिश्चित करता है कि केवल सुरक्षा और प्रभावकारिता मानकों को पूरा करने वाली दवाओं को ही अनुमोदित किया जाए और बाज़ार में बेचा जाए। राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण एक सरकारी एजेंसी है, जो भारत में आवश्यक दवाओं की कीमतों को विनियमित करने के लिये ज़िम्मेदार है। यह सुनिश्चित करता है कि आवश्यक दवाएँ जनता को किफायती कीमतों पर उपलब्ध हों तथा निर्माता और आपूर्तिकर्त्ता बाज़ार का शोषण न कर सकें। यह नियमित रूप से आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (हाल ही में 1.74% की वृद्धि) के अंतर्गत दवाओं की कीमतों में संशोधन करता है तथा मूल्य नियंत्रण तंत्र का अनुपालन सुनिश्चित करता है। केंद्रीय प्राधिकरणों के अतिरिक्त, भारत में अलग-अलग राज्यों के अपने औषधि नियंत्रण विभाग हैं, जो क्षेत्रीय स्तर पर औषधि कानूनों के प्रवर्तन के लिये ज़िम्मेदार हैं। भारत में क्लिनिकल परीक्षणों को औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के अनुपालन में सी डी एस सी ओ द्वारा विनियमित किया जाता है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद नैदानिक परीक्षणों के संचालन के लिये नैतिक दिशा-निर्देश प्रदान करता है, जिसमें अच्छे नैदानिक अभ्यास मानकों का पालन किया जाना चाहिये।फार्मास्युटिकल विज्ञापन और प्रचार का विनियमन भारत के फार्मा क्षेत्र विनियमन का एक और महत्त्वपूर्ण पहलू है। ओषधि और चमत्कारिक उपचार ( आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 औषधियों के विज्ञापन को नियंत्रित करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि विपणन में किये गए दावे सत्य हों तथा भ्रामक न हों।यह भी सच है कि भारतीय फार्मा क्षेत्र में भी विनियामक दक्षता में सुधार लाने के उद्देश्य से हाल ही में कई सुधार किये गए हैं। राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति, 2023 और औषधि प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना महत्त्वपूर्ण चिकित्सा उपकरणों तथा दवाओं के विकास पर ध्यान केंद्रित करती है। भारत के फार्मास्युटिकल क्षेत्र की वृद्धि को प्रेरित करने वाले प्रमुख कारकों की बात करें तो विनिर्माण में लागत दक्षता, सरकारी सहायता और नीतिगत पहल, जेनेरिक दवाओं की बढ़ती वैश्विक मांग, जैव प्रौद्योगिकी और बायोलॉजिक्स में प्रगति, अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों का विस्तार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और वैश्विक भागीदारी, चिकित्सा उपकरण और डिजिटल स्वास्थ्य क्षेत्र का विस्तार आदि हैं। हम बात कर सकते हैं भारत के फार्मास्युटिकल क्षेत्र के समक्ष प्रमुख मुद्दों के बारे में। गुणवत्ता नियंत्रण और विनियामक अनुपालन, बौद्धिक संपदा और पेटेंट संबंधी चुनौतियाँ, सक्रिय फार्मास्युटिकल अवयवों के लिये आयात पर निर्भरता, जेनेरिक दवाओं पर अत्यधिक निर्भरता, प्रतिभा की कमी और कौशल अंतराल, पर्यावरणीय स्थिरता के मुद्दे आदि हैं। भारत के फार्मा क्षेत्र में सुधार के लिये कई उपाय अपनाए जा सकते हैं जैसे नवाचार और अनुसंधान एवं विकास निवेश पर ध्यान केंद्रित करना, ए पी आई विनिर्माण क्षमताओं को मज़बूत करना, हरित एवं सतत् विनिर्माण प्रथाओं का कार्यान्वयन, डिजिटल स्वास्थ्य और एआई एकीकरण का विस्तार, स्वास्थ्य अवसंरचना के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी, उन्नत चिकित्सा में कौशल और प्रतिभा विकास, पुरानी बीमारियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए घरेलू दवा बाज़ार को पुनर्जीवित करने के तहत मधुमेह, हृदय संबंधी बीमारियों और कैंसर जैसी गैर-संचारी बीमारियों के बढ़ते बोझ को पूरा करने के लिये, भारत को अपने घरेलू दवा बाज़ार को पुरानी बीमारियों के उपचार पर केंद्रित करना होगा। दीर्घकालिक, उच्च-मूल्य चिकित्सा पर ध्यान केन्द्रित करने से न केवल घरेलू स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकताएँ पूरी होंगी, बल्कि बढ़ते वैश्विक दीर्घकालिक रोग बाजार में निर्यात के अवसर भी उत्पन्न होंगे। विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में सस्ती दवाओं तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये, भारत को जन औषधि योजना और अन्य सरकारी पहलों के विस्तार सहित वितरण नेटवर्क को बढ़ाना होगा। सस्ती दवा दुकानों की पहुँच बढ़ाकर भारत लागत और पहुँच संबंधी उन समस्याओं का समाधान कर सकता है, जो अनेक नागरिकों को समय पर देखभाल प्राप्त करने से रोकती हैं। भारत को अगली पीढ़ी की फार्मास्यूटिकल प्रौद्योगिकियों, जैसे कोशिका-आधारित चिकित्सा और जीन थेरेपी में निवेश करना चाहिये, ताकि जेनेरिक दवाओं से आगे बढ़ा जा सके और वैश्विक उच्च-मूल्य वाली दवा बाज़ार में नेतृत्व की स्थिति स्थापित की जा सके। यह दूरदर्शी दृष्टिकोण भारत को नवीन चिकित्सा के केंद्र के रूप में स्थापित करेगा तथा इसके निर्यात प्रोफाइल और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाएगा। अंत में कह सकते हैं कि भारत का फार्मास्यूटिकल क्षेत्र एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है, जहाँ यह "विश्व की फार्मेसी" होने से आगे बढ़कर उच्च-मूल्य नवाचार में वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर हो रहा है। अनुसंधान एवं विकास, डिजिटल स्वास्थ्य और कौशल विकास में रणनीतिक सुधार और मजबूत सार्वजनिक-निजी साझेदारी इस क्षेत्र के अगले चरण को अनलॉक करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। आत्मनिर्भरता और वैश्विक उत्कृष्टता की दृष्टि के साथ, भारत सस्ती और अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं के भविष्य को आकार देने की दिशा में सुदृढ़ स्थिति में है।