Saturday, June 07, 2025
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संपादकीय

Important for India to adopt a life-cycle approach based on cyclical principles: मौजूदा हालात में भारत के लिए चक्रीय सिद्धांतों पर आधारित जीवन-चक्र दृष्टिकोण को अपनाना बेहद जरूरी

June 05, 2025 11:09 PM

भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़  

जैसे-जैसे विश्व पर्यावरण दिवस हमें पृथ्वी के संरक्षण और सतत् विकास की दिशा में हमारे सामूहिक उत्तरदायित्व की याद दिलाता है, वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक की खपत खतरनाक रूप से बढ़ती जा रही है। अनुमान है कि वर्ष 2025 के भीतर यह खपत 500 मिलियन टन से भी अधिक हो जाएगी—जो कि पिछले एक वर्ष में लगभग 30% की अप्रत्याशित वृद्धि को दर्शाती है। यह न केवल पर्यावरण के लिए एक चेतावनी है, बल्कि वैश्विक नीति निर्माताओं और आम नागरिकों के लिए भी आत्ममंथन का समय है। भारत सरकार ने वर्ष 2024 में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों को संशोधित कर एक सराहनीय पहल की है। इन परिवर्तनों ने भारत को पर्यावरणीय कानूनों की दृष्टि से कई अन्य देशों से आगे खड़ा किया है। लेकिन महज़ नीतियाँ पर्याप्त नहीं हैं, क्योंकि नीतिगत घोषणा और व्यवहारिक क्रियान्वयन के बीच अभी भी एक बड़ा अंतर बना हुआ है। आओ समझें भारत के प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कार्य ढाँचे के अंतर्गत प्रमुख प्रावधान और संस्थागत तंत्र को। भारत ने पर्यावरण संरक्षण और प्लास्टिक प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में बीते कुछ वर्षों में कई अहम विधायी और संस्थागत सुधार किए हैं। इन सुधारों ने न केवल अपशिष्ट प्रबंधन की दिशा तय की, बल्कि चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने का मार्ग भी प्रशस्त किया। आइए एक नज़र डालते हैं भारत सरकार द्वारा अब तक उठाए गए प्रमुख कदमों में ये शामिल हैं। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016-इन नियमों ने स्रोत पर कचरे के पृथक्करण, निर्माता की उत्तरदायित्व नीति और उपयोगकर्ता शुल्क व्यवस्था पर ज़ोर दिया। इस पहल का मुख्य उद्देश्य था वैज्ञानिक ढंग से ठोस अपशिष्ट का संग्रहण, प्रबंधन और निपटान सुनिश्चित करना। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016-प्लास्टिक उत्पादकों के लिये विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व को लागू किया गया। इसके अंतर्गत कैरी बैग की न्यूनतम मोटाई 50 माइक्रोन कर दी गई, ताकि उनका पुनर्चक्रण संभव हो सके। ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरे के पृथक्करण और सुरक्षित निपटान को भी अनिवार्य बनाया गया। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2018-इन नियमों ने गैर-पुनर्चक्रणीय बहुस्तरीय प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की दिशा में कदम उठाया। साथ ही उत्पादकों के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तहत पंजीकरण प्रणाली शुरू की गई, जिससे जवाबदेही और निगरानी की व्यवस्था सशक्त हुई। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021-इस नियम के अंतर्गत वर्ष 2022 तक एकल-उपयोग प्लास्टिक पूर्ण प्रतिबंध की घोषणा की गई। प्लास्टिक बैग की मोटाई को बढ़ाकर 120 माइक्रोन कर दिया गया और पैकेजिंग अपशिष्ट के नियम अधिक कठोर बनाए गए। पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग को बढ़ावा देने वाले डिज़ाइनों को प्राथमिकता दी गई। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2022-इस संस्करण में अनुपालन न करने वालों पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति लागू की गई। साथ ही अनिवार्य पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग लक्ष्य निर्धारित किए गए। इस नीति ने भारत में चक्रीय अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से आगे बढ़ाया। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2024-नवीनतम संशोधन के तहत निर्माताओं के पंजीकरण, रिपोर्टिंग और प्रमाणन प्रक्रियाओं को पुनर्परिभाषित किया गया। बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के लिये अलग से प्रमाणन प्रक्रिया प्रारंभ की गई और उपभोक्ता-पूर्व प्लास्टिक कचरे की रिपोर्टिंग को अनिवार्य किया गया। एकल-उपयोग प्लास्टिक के लिये राष्ट्रीय डैशबोर्ड- सप को समाप्त करने की दिशा में राष्ट्रीय स्तर पर एक जागरूकता अभियान चलाया गया। साथ ही शिकायत निवारण ऐप की शुरुआत की गई, जिससे नागरिक अवैध प्लास्टिक गतिविधियों की रिपोर्ट कर सकें और अनुपालन की निगरानी कर सकें। इंडिया प्लास्टिक पैक्ट-यह भारत का पहला व्यापक प्लास्टिक समझौता है, जिसमें प्लास्टिक के प्रयोग में कमी, पुनःउपयोग और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विभिन्न हितधारकों—उद्योग, सरकार, एनजीओ और उपभोक्ताओं—को एक मंच पर लाया गया। प्रोजेक्ट रीप्लान-खादी और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा संचालित इस परियोजना में प्लास्टिक बैग का विकल्प प्रस्तुत करते हुए कपड़े के थैलों को बढ़ावा दिया गया। यह ग्रामीण आजीविका को सशक्त बनाने और प्लास्टिक उपयोग को कम करने की एक संयुक्त पहल है। आइये समझते हैं भारत के प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कार्यढाँचे की प्रभावशीलता को कमज़ोर करने वाले कारकों को। भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन अब भी कई चुनौतियों से जूझ रहा है। शहरी क्षेत्रों में पुनर्चक्रण और संग्रहण हेतु बुनियादी ढांचे की कमी, सप पर कमजोर प्रवर्तन, वैकल्पिक सामग्रियों की सीमित उपलब्धता और खंडित ईपीआर प्रणाली प्रभावशीलता को बाधित करते हैं। देश में प्रतिदिन उत्पन्न 26,000 टन प्लास्टिक में से केवल 10% ही पुनर्चक्रित होता है। जागरूकता की कमी और अनौपचारिक क्षेत्र का 60% योगदान, शासन में समन्वय की कमी को दर्शाता है। नीति और क्रियान्वयन के बीच की यह खाई भारत को सतत अपशिष्ट प्रबंधन लक्ष्यों से दूर रखती है। भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये कई उपाय किये जा सकते हैं जैसे भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की सफलता विकेंद्रीकृत रणनीतियों, तकनीकी नवाचार और सामुदायिक भागीदारी पर निर्भर है। वार्ड स्तर पर मटेरियल रिकवरी फैसिलिटीज की स्थापना से न केवल परिवहन लागत घटेगी, बल्कि पुनर्चक्रण दर में भी सुधार होगा। सूक्ष्म स्तर पर अपशिष्ट पृथक्करण को बढ़ावा देकर, स्थानीय सहभागिता और जागरूकता में उल्लेखनीय इज़ाफा किया जा सकता है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के ज़रिये ए आई-आधारित छंटाई तकनीकों और 3डी प्रिंटिंग जैसी आधुनिक प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित किया जा सकता है। चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये सरकार को कर छूट और क्रेडिट जैसे प्रोत्साहनों का सहारा लेना चाहिए। साथ ही, बायोप्लास्टिक और कंपोस्टेबल विकल्पों के लिए विनियमित बाज़ार विकसित किया जाना ज़रूरी है। व्यवहार परिवर्तन हेतु राष्ट्रीय जागरूकता अभियान, स्कूल-स्तरीय शिक्षा और मोबाइल ऐप आधारित निगरानी तंत्र भी लागू किए जा सकते हैं। अपशिष्ट बीनने वालों को औपचारिक तंत्र में शामिल कर पुनर्चक्रण प्रणाली की दक्षता बढ़ाई जा सकती है। इसके साथ ही, प्लास्टिक क्रेडिट प्रणाली और एस एम ई को तकनीकी सहयोग प्रदान कर देश को स्थायी प्लास्टिक प्रबंधन की दिशा में अग्रसर किया जा सकता है। अंत में कह सकते हैं कि नवाचार के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना और चक्रीय अर्थव्यवस्था-आधारित प्रोत्साहन स्थापित करना भारत के संधारणीय प्लास्टिक प्रबंधन में बदलाव को गति दे सकता है। ये प्रयास भारत के अपशिष्ट को कम करने, पुनर्चक्रण को बढ़ाने और पर्यावरणीय संवहनीयता को बढ़ावा देने के लक्ष्यों के अनुरूप हैं।

 

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