अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति के पटल पर एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। अमेरिका ने ईरान के सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम में करीब 30 अरब डॉलर (लगभग ₹2.5 लाख करोड़ रुपये) के निवेश की योजना बनाई है। इस रणनीतिक पहल के तहत वॉशिंगटन ईरान के असैन्य परमाणु विकास में भागीदारी करेगा और साथ ही, कुछ आर्थिक प्रतिबंधों में भी नरमी लाने की तैयारी कर रहा है।
सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम को मिलेगा प्रोत्साहन
सूत्रों के अनुसार, यह निवेश मुख्यतः ईरान के असैन्य परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को गति देने के लिए किया जाएगा। इसमें आधुनिक रिएक्टर तकनीक, ईंधन आपूर्ति और परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के उद्देश्य शामिल हैं। अमेरिकी प्रशासन का मानना है कि अगर ईरान को शांतिपूर्ण उद्देश्य से परमाणु ऊर्जा विकसित करने की अनुमति दी जाती है, तो इससे दोनों देशों के बीच विश्वास की नई शुरुआत हो सकती है।
प्रतिबंधों में राहत की तैयारी
अमेरिका की योजना के तहत, ईरान पर लगाए गए कुछ कठोर आर्थिक प्रतिबंधों में राहत देने पर विचार किया जा रहा है। इनमें तेल निर्यात, बैंकों पर लगे प्रतिबंध और विदेशी निवेश की सीमाएं शामिल हैं। हालांकि, इस प्रस्ताव को अंतिम रूप देने से पहले अमेरिका यह सुनिश्चित करना चाहता है कि ईरान अपनी सैन्य परमाणु गतिविधियों को पूरी तरह रोक दे और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की निगरानी में पारदर्शिता बनाए रखे।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और वैश्विक असर
इस संभावित डील को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। इज़राइल ने पहले ही इस योजना का विरोध जताया है, जबकि यूरोपीय यूनियन ने इसे पश्चिम एशिया में स्थिरता की दिशा में सकारात्मक कदम बताया है। अमेरिकी कांग्रेस के कुछ रिपब्लिकन सदस्यों ने भी इस निवेश योजना को "अत्यधिक नरम रुख" करार देते हुए राष्ट्रपति बाइडन प्रशासन की आलोचना की है।
अमेरिका-ईरान संबंधों में नई शुरुआत?
वर्षों से तनावपूर्ण रहे अमेरिका-ईरान संबंधों में यह प्रस्ताव संभावित बदलाव की ओर संकेत करता है। 2015 की ऐतिहासिक Joint Comprehensive Plan of Action (JCPOA) समझौते के बाद यह पहली बार है जब दोनों देश असैन्य सहयोग के किसी बड़े समझौते की ओर बढ़ रहे हैं।
यदि यह प्रस्ताव अमल में आता है, तो यह न केवल अमेरिका और ईरान के संबंधों को एक नई दिशा देगा, बल्कि वैश्विक परमाणु संतुलन और ऊर्जा सुरक्षा पर भी दूरगामी असर डालेगा। हालांकि यह स्पष्ट है कि यह कदम जोखिमों से भरा है, लेकिन इसकी सफलता मध्य-पूर्व में शांति और सहयोग की नई इबारत लिख सकती है।