बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग की एक प्रक्रिया ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। अनुमान है कि करीब 35.6 लाख मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जा सकते हैं, जिससे चुनाव में बड़ी संख्या में लोगों के मतदान अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
मतदाता सत्यापन प्रक्रिया का असर
निर्वाचन आयोग द्वारा राज्य भर में चलाए जा रहे वोटर वेरिफिकेशन अभियान के तहत यह कार्रवाई की जा रही है। आयोग के अनुसार, मतदाता सूची को अद्यतन और त्रुटिरहित बनाने के लिए यह कदम जरूरी है। इस प्रक्रिया के तहत फॉर्म-6 भरने वाले नए मतदाताओं और फॉर्म-7 द्वारा आपत्ति दर्ज कराने वालों के दस्तावेजों की जांच की जा रही है।
अब तक 6.60 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने फॉर्म भरकर अपना पंजीकरण या बदलाव कराया है, जबकि सूची से नाम हटाने को लेकर भी लाखों आवेदन मिले हैं। यही कारण है कि आयोग ने 35 लाख नामों को सूची से हटाने का संकेत दिया है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और विपक्ष की चिंता
इस निर्णय को लेकर विपक्षी दलों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। उनका आरोप है कि यह समयबद्ध प्रक्रिया चुनाव से ठीक पहले आना संदेह पैदा करता है। आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों ने दावा किया है कि इस प्रक्रिया के माध्यम से विशेष वर्गों को लक्ष्य बनाकर उनके नाम हटाए जा सकते हैं, जिससे चुनावी गणित प्रभावित हो सकता है।
चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण
हालांकि आयोग ने स्पष्ट किया है कि नाम हटाने की कार्रवाई केवल वैध आधार पर की जा रही है। फर्जी, दोहराए गए या मृत मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जाएंगे। इसके साथ ही 1 अगस्त तक नामों की पुष्टि और सुधार की प्रक्रिया पूरी करने की योजना है, ताकि अंतिम मतदाता सूची समय पर जारी हो सके।
राज्य निर्वाचन विभाग ने नागरिकों से अपील की है कि वे समय रहते अपने वोटर कार्ड की स्थिति ऑनलाइन या निर्वाचन कार्यालय में जाकर जांच लें, ताकि भविष्य में मतदान के अधिकार से वंचित न रहें।