रूस और ईरान ने कैस्पियन सागर में एक संयुक्त सैन्य युद्धाभ्यास शुरू कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खलबली मचा दी है। यह सैन्य अभ्यास ऐसे समय पर हो रहा है जब पश्चिम एशिया और पूर्वी यूरोप पहले से ही तनावपूर्ण भू-राजनीतिक स्थितियों से जूझ रहे हैं। रूस और ईरान के बीच यह बढ़ता सैन्य सहयोग अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के लिए एक नई चुनौती बनकर उभरा है, क्योंकि ईरान को अमेरिका का सबसे बड़ा विरोधी माना जाता है।
इस युद्धाभ्यास में दोनों देशों की नौसेनाएं, एयर डिफेंस यूनिट्स, मिसाइल बल और ड्रोन सिस्टम शामिल हैं। रूस और ईरान की सेनाएं समुद्र, आकाश और ज़मीन—तीनों मोर्चों पर समन्वय स्थापित करने की रणनीतियों पर काम कर रही हैं। युद्धपोतों की तैनाती, हवाई निगरानी, रेडार ब्लाइंडिंग तकनीकों और समुद्री सुरक्षा मिशनों का परीक्षण इस अभ्यास का हिस्सा है।
विश्लेषकों के अनुसार, यह केवल एक सामान्य युद्धाभ्यास नहीं, बल्कि अमेरिका और नाटो के लिए स्पष्ट राजनीतिक और सामरिक संदेश है। यह संकेत है कि रूस, यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों और कूटनीतिक अलगाव के बावजूद, अपने रणनीतिक साझेदारों के साथ मिलकर नए ध्रुवीकरण की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
कैस्पियन सागर का रणनीतिक महत्त्व भी इस घटनाक्रम को और संवेदनशील बना देता है। यह क्षेत्र तेल और गैस जैसे ऊर्जा संसाधनों से भरपूर है और मध्य एशिया, यूरोप तथा पश्चिम एशिया के लिए एक अहम जियोग्राफिकल लिंक है। यहां रूस-ईरान की संयुक्त सैन्य गतिविधियां न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को चुनौती देती हैं, बल्कि ऊर्जा आपूर्ति के वैश्विक मार्गों को भी प्रभावित कर सकती हैं।
अमेरिका ने इस युद्धाभ्यास को "भड़काऊ कदम" बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है। पेंटागन ने कहा है कि यह सैन्य गठजोड़ वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा पैदा कर सकता है। इसके अलावा, नाटो के सदस्य देश भी इस पर कड़ी नजर रखे हुए हैं और संभावित रणनीतिक जवाब की तैयारी कर रहे हैं।
ईरान और रूस पहले से ही कई मुद्दों पर सहयोग कर रहे हैं, जिसमें हथियारों का आदान-प्रदान, तेल व्यापार और पश्चिमी प्रतिबंधों का मुकाबला करना शामिल है। इस अभ्यास ने उनके सहयोग को एक नई सैन्य धार दी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह अभ्यास आने वाले समय में वैश्विक ध्रुवीकरण को और बढ़ावा देगा और अमेरिका बनाम रूस-ईरान धुरी का नया अध्याय शुरू हो सकता है।