भारत ने रूस और चीन के साथ रणनीतिक संवाद को पुनर्जीवित करने की दिशा में स्पष्ट संकेत दिए हैं। 2025 के शुरुआती महीनों में भले ही भारत-चीन सीमा तनाव और यूक्रेन युद्ध को लेकर वैश्विक समीकरणों में बदलाव देखने को मिले हों, लेकिन अब "RIC" यानी Russia-India-China तिकड़ी को फिर से सक्रिय करने की कोशिशें सामने आ रही हैं।
हाल ही में नई दिल्ली में हुई एक उच्चस्तरीय कूटनीतिक बैठक के दौरान विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि भारत बहुपक्षीय मंचों पर संतुलित और उद्देश्यपूर्ण संवाद के पक्ष में है। भारत ने यह भी कहा कि “RIC जैसे पुराने और प्रभावशाली मंचों को फिर से प्रासंगिक बनाना आवश्यक है, ताकि वैश्विक दक्षिण की आवाज को मजबूती मिल सके।” यह बयान ऐसे समय आया है जब वैश्विक ध्रुवीकरण गहराता जा रहा है और BRICS, SCO तथा G20 जैसे मंचों पर भारत सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
भारत, रूस और चीन के बीच "RIC" संवाद की शुरुआत 2002 में हुई थी, जिसका उद्देश्य तीनों शक्तिशाली देशों के बीच आपसी सहयोग, वैश्विक स्थिरता और बहुपक्षीय हितों को साधना था। हालांकि हाल के वर्षों में चीन के साथ लद्दाख सीमा पर तनातनी और रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की तटस्थ भूमिका के चलते यह मंच निष्क्रिय-सा हो गया था।
लेकिन अब जब रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों का दबाव बढ़ रहा है और चीन वैश्विक मंचों पर अलग-थलग पड़ने की आशंका से घिरा है, तब RIC जैसे पुराने गठजोड़ की पुनर्वापसी की संभावना बनती दिख रही है। भारत के लिए यह मौका है कि वह एक “बैलेंसर” की भूमिका में रहकर दोनों देशों के साथ अपने रणनीतिक हितों को सुरक्षित रखते हुए वैश्विक मामलों में नेतृत्व दिखाए।
हालांकि भारत इस मंच को पुनर्जीवित करने में बेहद सावधानी से आगे बढ़ रहा है। चीन के साथ सीमा विवाद अब भी पूरी तरह सुलझा नहीं है, और भारत अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं करना चाहता। वहीं रूस के साथ भारत की ऊर्जा, रक्षा और व्यापार साझेदारी काफी मजबूत है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि RIC सक्रिय होता है, तो यह पश्चिमी गुटों जैसे QUAD और NATO के विस्तारवादी रवैये के मुकाबले में एक संतुलन प्रस्तुत कर सकता है। साथ ही यह मंच ग्लोबल साउथ के देशों के लिए एक साझा आवाज बन सकता है, जो विश्व व्यवस्था में अपनी भागीदारी को और मुखर बनाना चाहते हैं।