नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) की ओर से इतिहास की पुस्तकों में मुगल काल को लेकर की गई नई समीक्षा अब विवाद का कारण बन गई है। इतिहासकारों, शिक्षाविदों और विपक्षी दलों ने इसे तथ्यों के साथ छेड़छाड़ और इतिहास को “पुनर्लेखन” का प्रयास बताया है। वहीं, NCERT ने आधिकारिक बयान जारी कर स्पष्ट किया है कि बदलाव केवल अकादमिक संतुलन और पाठ्यक्रम के बोझ को कम करने के उद्देश्य से किए गए हैं।
क्या है विवाद?
NCERT की 12वीं कक्षा की नई इतिहास पुस्तक में अब मुगल शासन की कुछ प्रमुख उपलब्धियों, नीतियों और स्थापत्य कला को संक्षेप में बताया गया है, जबकि पहले इन्हें विस्तार से पढ़ाया जाता था। आलोचकों का कहना है कि मुगल काल भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और स्थापत्य विकास का एक अहम हिस्सा रहा है, जिसे कम करके दिखाना छात्रों के लिए ऐतिहासिक दृष्टिकोण को सीमित करना है।
इतिहासकार इरफान हबीब ने इसे "चिंताजनक संकेत" बताया और कहा कि "इतिहास को वर्तमान राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए।" वहीं, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इसे सरकार द्वारा प्रायोजित वैचारिक हस्तक्षेप करार दिया है।
NCERT की सफाई
विवाद बढ़ने के बाद NCERT ने एक बयान में कहा, "यह पुनर्लेखन नहीं बल्कि पाठ्यक्रम को छात्रों के अनुकूल बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है। हमारा उद्देश्य किसी भी युग को महिमामंडित या छोटा करना नहीं, बल्कि संतुलन बनाना है।"
NCERT अधिकारियों ने यह भी स्पष्ट किया कि देश के इतिहास के सभी महत्वपूर्ण कालखंडों को समान प्राथमिकता के साथ प्रस्तुत किया गया है, और शिक्षकों को प्रशिक्षण के दौरान इसे बेहतर तरीके से समझाने की जिम्मेदारी दी गई है।
राजनीति या पाठ्यक्रम सुधार?
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या शिक्षा व्यवस्था वैचारिक टकराव का केंद्र बनती जा रही है? शिक्षाविदों का कहना है कि इतिहास के साथ छेड़छाड़ से भावी पीढ़ी का दृष्टिकोण प्रभावित हो सकता है।